इस महिला ने गुजरात के सबसे बदनाम गांव की बदल दी तस्‍वीर

Ranvijay SinghRanvijay Singh   15 July 2019 11:14 AM GMT

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रणविजय सिंह/मिथिलेश दुबे

अहमदाबाद (गुजरात)। साल 2005 की बात है। एक कॉलेज में पढ़ने वाली लड़की एक अखबार की कतरन लेकर गुजरात के सबसे बदनाम गांव में पहुंच जाती है। यह गांव बनासकांठा जिले का वाडिया गांव है, जो कि देह व्‍यापार के लिए जाना जाता है। लड़की का मकसद साफ था कि उसे इस गांव की तस्‍वीर बदलनी है, यहां की पहचान बदलनी है। इस लड़की ने इस गांव की तस्‍वीर बदलने के लिए इतना काम किया कि आज देह व्‍यापार के चंगुल से वाडिया निकल रहा है और बदलाव की राह पर है।

''मित्‍तल पटेल के आने से गांव में बहुत बदलावा आया है। उन्‍होंने इस गांव की लड़कियों की शादी करानी शुरू की, जिससे वो देह व्‍यापार के धंधे से दूर रह सकें। यहां के बच्‍चों को पढ़ाई करा रही हैं, ताकि वो अच्‍छा पढ़कर अच्‍छा कुछ कर सकें। इतना ही नहीं पहले गांव में कोई सड़क नहीं थी। इसे समाज से बिल्‍कुल काट कर रखा गया था। अब गांव तक सड़क है और इसकी देह व्‍यापार से अलग एक तस्‍वीर बन रही है।'' यह बात वाडिया गांव की रहने वाली महिला सूर्या बताती हैं।

मित्‍तल पटेल (38 साल) गुजरात में 'विचरता समुदाय समर्थन मंच' नाम से एक एनजीओ चलाती हैं। यह एनजीओ घुमंतू जातियों और बंजारों की जिंदगी संवारने का काम कर रहा है। मित्‍तल बताती हैं, ''जब मैं वाडिया गांव जा रही थी तो लोगों ने मुझे बिन मांगी सलाह दी कि वहां न जाऊं, वहां के लोग बुरे हैं, मेरे साथ लूट हो सकती है, मेरा मर्डर हो सकता है और भी इस तरह की बातें बताई गई। कुछ लोगों ने यह भी कहा कि उन लोगों के लिए देह व्‍यापार आसानी से पैसे कमाने का एक जरिया है, ऐसे में वो लोग इसे छोड़ेंगे नहीं, मेरी बात कोई नहीं सुनेगा।''

मित्‍तल पटेल 'विचरता समुदाय समर्थन मंच' नाम की एक संस्‍था चलाती हैं।

''इन सब बातों को दरकिनार कर मैं वाडिया गांव गई थी। जब वहां पहुंची तो देखा वहां के लोग बहुत बुरे हाल में थे। किसी के शरीर पर ढंग के कपड़े नहीं थे। पक्‍के मकान तो किसी के नहीं थे। ऐसे में यह तो साफ हो गया कि पैसा कमाना इनके लिए आसान नहीं है। यह मजबूरी में ही इस काम से जुड़े हैं। लोगों से बात करने पर पता चला कि इन लोगों को समाज से काट कर रखा गया है। किसी के पास कोई सरकारी दस्‍तावेज नहीं था। रोजगार की कोई व्‍यवस्‍था नहीं थी। देह व्‍यापार के चलते गांव का नाम इतना खराब था कि अगर कोई बाजार में सामान लेने जाता तो वाडिया गांव के होने की वजह से उन्‍हें सामान देने से इनकार कर दिया जाता। एक तरह में इस गांव को पूरी तरह से समाज से काट कर रखा गया था।''

मित्‍तल पटेल बताती हैं, ''समाज की सोच क्‍या है यह आप इसी से समझ सकते हैं कि जब मैंने गांव से बाहर की ओर जाने के लिए रोड की बात की तो लोगों ने कहा कि नहीं वहां रोड नहीं बननी चाहिए, नहीं तो वो लोग बाहर आ जाएंगे। मैनें सोचा क्‍या ये लोग समाज का हिस्‍सा नहीं हैं। कई लोगों ने तो यह भी सुझाव दिया कि इस गांव से लोगों को निकालकर हर गांव में एक परिवार बसा देना चाहिए, जिससे अगर किसी पुरुष की इच्‍छा होती है तो वो अपनी इच्‍छा की पूर्ति कर सके। इतनी घटिया सोच है समाज की।''

मित्‍तल कहती हैं, ''फिर लगा कि उनकी भलाई के लिए काम करना चाहिए। क्‍योंकि 10-12 साल की बच्‍च‍ियां तक यह काम कर रही थीं। गांव के पुरुष की काम न करने की आदत भी एक वजह थी, जिसकी वजह से उन्‍हें ऐसा करना पड़ रहा था। हमने इनके राशन कार्ड बनवाए, ताकि इन्‍हें सुविधाएं मिल सकें। मैंने आज तक उनसे यह नहीं कहा कि आप गलत कर रहे हैं, क्‍यों‍कि मैं मानती हूं कि वो मेरा अधिकार ही नहीं है। मैं यह जरूर मानती हूं कि अगर लोगों को बेहतर सुविधाएं दी जाएं तो वो लोग खुद ब खुद बाहर आएंगे।''

''हमने वहां दो बोरवेल बनाए ताकि गांव की खेती अच्‍छे से हो सके। जब मैं पहली बार वाडिया गई थी तो वो पूरा गांव बंजर सा था, आज वहां एक भी खेत बाकी नहीं है, जहां पर लोग खेती नहीं कर रहे। इसके साथ हमने पशुपालन को जोड़ा, जिससे वो पशुओं का दूध बेचकर कमाई कर सकें। हमने बिना ब्‍याज के इन लोगों को लोन देना शुरू किया, जिससे कई लोग ने रिक्‍शा खरीद कर लाए हैं, कई लोग छोटी दुकान करके अपना काम कर रहे हैं। ऐसे इन लोगों के पास कमाई का जरिया बन सका।''

''इसके बाद जिस परिवार की हमने मदद की है और वो लोग बेहतर कमाई करने लगे हैं तो अब मैं उन लोगों के सामने यह शर्त रखने लगी हूं कि वो लोग अपनी किसी बेटी को देह व्‍यापार में नहीं डालेंगे। इसके साथ ही हमने बच्‍चों की पढ़ाई के ऊपर काम किया, क्‍योंकि बच्‍चे अगर पढ़ेंगे नहीं तो बाहर की दुनिया को जानेंगे नहीं, ऐसे में अपने गांव के हिसाब से ही बने रहेंगे। ऐसे में जब बच्‍चे बाहर निकले, बाहर के बारे में जान पाए तो घर पर कहने लगे कि यह सब गलत है।''

मित्‍तल पटेल वाडिया गांव की लड़कियों की शादियां करा रही हैं, जिससे वो देह व्‍यापार की ओर न बढ़ें।

मित्‍तल पटेल बताती हैं, ''इस गांव की एक प्रथा है कि अगर किसी बच्‍ची की सगाई हो जाए तो वो देह व्‍यापार के धंधे में नहीं जाएगी। इस लिए हम छोटी बच्‍चि‍यों की भी सगाई कराते हैं, ताकि वो इस धंधे में जाने से बच सकें। कई लोग कहते हैं कि यह गलत है, लेकिन अगर उनका जीवन बच रहा है तो यह सही भी है। हमने अबतक 35 बच्‍च‍ियों की शादी भी कराई है। जब मैं शुरू में गई थी तो सोचा था कि 50 साल में अगर 2 लड़कियों को इस धंधे से बाहर निकाल पाऊंगी तो मेरा जीवन सफल हो जाएगा, लेकिन मैं 10 साल में ही बहुत बड़ा बदलाव देख पा रही हूं।''

''जब मैंने सगाई और शादी करानी शुरू की तो मुझे धमकियां भी मिलने लगीं। गांव में आने पर देख लेने की धमकी, मार देने की धमकी और भी बहुत कुछ कहा गया। क्‍यों‍कि कुछ लोग थे जो नहीं चाहते थे कि यह बदलाव आए तो वो धमका कर डराना चाहते थे। इन सब वजहों से कई बार मेरे परिवार ने भी मुझे ऐसा करने से मना किया। वो लोग कहते थे कि अगर तुम्‍हारी इच्‍छा है उन लोगों के लिए कुछ करने की तो डोनेशन दे दो, तुम क्‍यों खुद जा रही हो। मैंने उन्‍हें समझाया और बाद में वो लोग समझ भी गए।''

मित्‍तल पटेल कहती हैं ''पहले गांव में 150 परिवार थे जो देह व्‍यापार में संलिप्‍त थे। हमारे काम की वजह से इसमें से 90 परिवार बाहर आ गए हैं, बाकी के भी आ जाएंगे। हम लगातार यही प्रयास कर रहे हैं कि गांव से यह बुराई दूर हो जाए।''

मित्‍तल पटेल के साथ आज 60 लोगों की टीम काम कर रही है। गुजरात के 17 जिलों में इनकी संस्‍था काम कर रही है। मित्‍तल को अपने काम के लिए कई अवॉर्ड मिले हैं, इनमें 2017 कर नारी शक्ति सम्मान भी शामिल है। फिलहाल मित्‍तल पटेल घुमंतू जातियों के जीवन में सुधार लाने के लिए लगातार काम कर रही हैं।

  

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