बिहार में मॉब लिंचिंग: स्कूल से लड़की अगवा करने आए 3 लोगों को भीड़ ने पीट-पीटकर मारा
गाँव कनेक्शन 8 Sep 2018 1:45 PM GMT
बिहार में बेगूसराय जिले के नारायणीपर गांव में शुक्रवार को भीड़ ने तीन लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी। इन तीनों लोगों पर आरोप हैं कि ये एक स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में स्कूल की एक छात्रा का अपहरण करने की कोशिश कर रहे थे। शुक्रवार को ही देश की सर्वोच्च न्यायालय ने भीड़ की हिंसा या मॉब लिंचिंग पर रिपोर्ट पेश नहीं करने वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को फटकार लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से कहा है कि वह मॉब लिंचिंग के खिलाफ प्रचार-प्रसार के साधनों के जरिए जनता में व्यापक जागरुकता अभियान चलाएं।
Three criminals died after they were beaten up school teachers and villagers when they had entered a school premises to kidnap a student: Aditya Kumar, Begusarai Superintendent of Police #Bihar
— ANI (@ANI) September 7, 2018
बेगूसराय की घटना के बारे में पुलिस ने बताया कि शुक्रवार दोपहर चार हथियारबंद लोग स्कूल की एक छात्रा के बारे में पूछताछ करने लगे। उस छात्रा के न मिलने पर उन्होंने स्कूल की महिला प्रिंसिपल के साथ मारपीट की। शोरगुल सुनकर आसपास के लोग इकट्ठा होने लगे, यह देखकर चारों ने मौके से भागने की कोशिश की। इन लोगों ने भीड़ पर हवाई फायरिंग भी की लेकिन भीड़ ने तीन लोगों को पकड़ लिया और उन्हें लाठी-डंडों से पीटकर गंभीर रूप से घायल कर दिया।
यह भी देखें: गोरक्षकों और मॉब लिंचिंग पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, राज्यों को दी चेतावनी
पुलिस के मुताबिक, भीड़ की पिटाई से एक शख्स की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि दो ने स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र ले जाते समय दम तोड़ दिया। मृतकों की पहचान हीरा सिंह, मुकेश महतो और बौना सिंह के रूप की हुई है। बताया जाता है कि तीनों इलाके के कुख्यात अपराधी थे। पुलिस मामले की छानबीन कर रही है।
इस बीच, सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली तीन जजों की बेंच ने शुक्रवार को मॉब लिंचिंग के मामलों में राज्य सरकारों के रवैये पर नाराजगी जताते हुए कहा, समाज में हर हाल में सद्भाव बनाए रखना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने 17 जुलाई को राज्यों को इस मामले में कुछ दिशा-निर्देश दिए थे। अब तक 29 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों में से सिर्फ 11 ने ही इन्हें लागू किए जाने की रिपोर्ट पेश की है। कोर्ट ने रिपोर्ट पेश न करने वाले राज्यों को एक हफ्ते की आखिरी मोहलत दी है। मामले की अगली सुनवाई 13 सितंबर को होगी।
मॉब लिंचिंग पर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश
17 जुलाई को अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग रोकने के लिए राज्य सरकारों को तीन तरह के उपाय लागू करने के आदेश दिए थे।
निरोधक उपाय
भीड़ की हिंसा रोकने के निरोधक उपाय के तहत कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश दिए हैं कि हर जिले में एक नोडल पुलिस अधिकारी (एनपीओ) तैनात करे जो पुलिस अधीक्षक (एसपी) के पद से नीचे का न हो। यह एनपीओ एक स्पेशल टास्क फोर्स का गठन करे तो मॉब लिंचिंग में शामिल लोगों के अलावा नफरत फैलाने वाले भाषण, उत्तेजक बयान और फर्जी खबर फैलाने वाले लोगों पर खुफिया रिपोर्ट तैयार करे। राज्य सरकारों की यह भी जिम्मेदारी हागी कि वह उन इलाकों की पहचान करें जहां पिछले 5 वर्षों में भीड़ ने हिंसा की है।
हर राज्य के गृह विभाग के सचिच को एनपीओ से संपर्क में रहना होगा। एनपीओ को महीने में एक बार नफरत फैलाने वाले बयानों और ऐसी कोशिशों की पहचान करने के लिए स्थानीय खुफिया इकाइयों के साथ बैठक करनी होगी। हर तीन महीने पर एनपीओ को समीक्षा के लिए डीजीपी या गृह सचिव से मिलना होगा। कोर्ट ने कहा, हर पुलिस अधिकारी की जिम्मेदारी है कि वह लिंचिंग की आशंका होने पर भीड़ को तितर-बितर करे।
कोर्ट ने जोर देकर कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को इस संदेश को जनता में फैलाना चाहिए कि किसी भी तरह की हिंसा के गंभीर परिणाम होंगे। पुलिस को भड़काऊ संदेश प्रसारित करने वाले लोगों के खिलाफ तुरंत एफआईआर दर्ज करनी होगी।
उपचारात्मक उपाय
कोर्ट ने स्थानीय पुलिस को निर्देश दिया है कि मॉब लिंचिंग के मामले में तुरंत एफआईआर दर्ज की जाए। थाने के एसएचओ को इस एफआईआर के बारे में एनपीओ को सूचना देनी होगी। एनपीओ यह सुनिश्चित करे कि पीड़ितों के परिवार के सदस्यों का उत्पीड़न न हो। एनपीओ व्यक्तिगत रूप से जांच की निगरानी करे और सुनिश्चित करे कि आरोपपत्र समय पर दायर हो। राज्य सरकारों को एक महीने के भीतर पीड़ितों की क्षतिपूर्ति के लिए योजना तैयार करनी चाहिए। हर जिले में फास्ट ट्रैक कोर्ट बने जो रोज कार्यवाही करेंगी और संज्ञान लेने की तारीख के छह महीने के भीतर सुनवाई पूरी करेंगी। ट्रायल कोर्ट को अपराधों के लिए निर्धारित अधिकतम सजा देने का निर्देश दिया गया है। गवाहों की पहचान और उनके पते की रक्षा हो। पीड़ितों या उनके रिश्तेदारों को निशुल्क कानूनी सहायता पाने का अधिकार है यदि वे ऐसा चाहें तो।
दंडात्मक उपाय
निरोधक और उपचारात्मक निर्देशों का पालन करने में नाकाम रहे जिला प्रशासन या पुलिस प्रशासन के अधिकारी की विफलता को जानबूझकर लापरवाही माना जाएगा और इस विषय में उपयुक्त विभागीय कार्रवाई छह महीने के भीतर पूरी होनी चाहिए।
यह भी देखें: मॉब लिंचिंग : हिंसा रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिया अलग कानून बनाने का निर्देश
More Stories