मोदी सरकार ने अध्यादेश को मंजूरी देकर तीन तलाक को घोषित किया दंडनीय अपराध
गाँव कनेक्शन 19 Sep 2018 7:12 AM GMT
केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को हुई बैठक में तीन तलाक पर अध्यादेश को मंजूरी दे कर इसे दंडनीय अपराध घोषित कर दिया है। तीन तलाक बिल के राज्य सभा में पास न हो पाने की वजह से इसे लागू करने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है। इस अध्यादेश में वही प्रावधान होंगे जो कि प्रस्तावित कानून और लोकसभा से पास हो चुके विधेयक में हैं। हालांकि, सरकार को छह महीने के भीतर यानि शीत सत्र में ही इस बिल को पास कराना होगा ताकि इसका कानूनी दर्जा बना रहे।
Union Cabinet today has approved an ordinance on Triple Talaq bill, making Triple Talaq a criminal act: Sources pic.twitter.com/f0F0RnlpaP
— ANI (@ANI) September 19, 2018
दिसंबर 2017 में यह बिल लोक सभा में पास हो गया था लेकिन राज्य सभा में इसे भारी विरोध का सामना करना पड़ा। विपक्षी सांसदों की मांग थी कि इस बिल को समीक्षा के लिए सलेक्ट कमिटी के सामने भेजा जाना चाहिए। विपक्ष के बढ़ते विरोध के चलते केंद्र ने सभी राज्य सरकारों से इस मुद्दे पर उनकी राय भी मांगी थी जिसमें अधिकतर राज्यों ने इस बिल को अपना समर्थन दिया था।
बुधवार को कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कैबिनेट फैसले की जानकारी देते हुए कहा, "उच्चतम न्यायालय की ओर से तीन तलाक की कुप्रथा पर पाबंदी लगाए जाने के बाद भी यह जारी है, जिसके कारण अध्यादेश लागू करने की जरूरत महसूस हुई।" अध्यादेश का ब्यौरा देते हुए उन्होंने कहा, "अपराध को संज्ञेय बनाने के लिए महिला या उसके सगे रिश्तेदार को किसी पुलिस थाने में केस दाखिल करना होगा। ऐसे अपराध के मामलों में किसी मैजिस्ट्रेट के सामने समझौता भी हो सकता है बशर्ते प्रभावित महिला इसके लिए तैयार हो।"
कांग्रेस पर लगाया वोट की राजनीति का आरोप, फिर मांगा समर्थन
पत्रकारों से बातचीत में प्रसाद ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह वोट बैंक की राजनीति की वजह से राज्यसभा में लंबित मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक को पारित करने में सहयोग नहीं कर रही है। तीन तलाक की प्रथा को बर्बर और अमानवीय कहते हुए प्रसाद ने कहा, "करीब 22 देशों ने तीन तलाक पर नियम बनाए हैं लेकिन वोटबैंक की खातिर भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में इसकी पूरी तरह से अनदेखी की गई। मैं सोनिया जी से एक बार फिर अपील करूंगा कि वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर महिलाओं के न्याय के हित में इसे पारित करने में मदद करें।" केंद्रीय मंत्री ने बसपा सुप्रीमो मायावती और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी से भी अपील की कि वे राज्यसभा में लंबित विधेयक को पारित कराने में मदद करें।
तीन तलाक मामले में एक याचिकाकर्ता इशरत जहां ने सरकार के फैसले पर अपनी प्रसन्नता जताते हुए कहा, " तीन तलाक पर अध्यादेश एक स्वागत योग्य कदम है, मैं बहुत खुश हूं कि केंद्र ने इस तरह का निर्णय लिया।"
कांग्रेस का पलटवार- "तीन तलाक मोदी सरकार के लिए राजनीतिक फुटबॉल"
वहीं कांग्रेस ने तीन तलाक के खिलाफ केंद्र सरकार की ओर से लाए गए अध्यादेश को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा। पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का कहना था कि सरकार के लिए यह मामला मुस्लिम महिलाओं के न्याय का नहीं है, बल्कि उसके लिए यह एक राजनीतिक फुटबॉल है। सुरजेवाला ने एक प्रेसवार्ता में कहा, "तीन तलाक एक अमानवीय प्रथा थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था। जब न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया तभी यह कानून बन गया था। हमने गुजारा भत्ते का सुझाव दिया था। मोदी सरकार ने इसे नहीं माना। मोदी सरकार के लिए यह मामला राजनीतिक फुटबाल है और मुस्लिम महिलाओं के साथ न्याय का मामला नहीं है।"
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इस बिल के मुताबिक, तीन तलाक गैर जमानती अपराध होगा और उसमें दोषी को तीन साल तक के कारावास की सजा हो सकेगी। अपराध गैर जमानती और संज्ञेय होगा। इसके अलावा तीन तलाक पीडि़ता मजिस्ट्रेट की अदालत में गुजारा-भत्ता और नाबालिग बच्चों की कस्टडी की मांग कर सकती है।
बिल में फौरी तीन तलाक के सभी रूपों को शामिल किया गया है, मतलब चाहे तीन बार मुंह से तलाक, तलाक, तलाक बोला गया हो, या फोन से, व्हाट्सऐप, एसएमएस या कागज पर लिख कर तलाक दिया गया हो।
अगस्त 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक (तलाक ए बिद्दत) को तीन-दो के बहुमत से असंवैधानिक करार दिया था। तीन न्यायाधीशों ने बहुमत के फैसले कहा था कि एक साथ तीन तलाक संविधान में दिए गए बराबरी के हक का हनन करता है। चूंकि तलाक ए बिद्दत इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है इसलिए इसे संविधान में दी गई धार्मिक आजादी में संरक्षण नहीं मिल सकता।
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इसके बाद मोदी सरकार ने इस मुद्दे पर विचार करने के लिए मंत्रियों का एक समूह बनाया था। इसमें वित्त मंत्री अरुण जेटली, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद शामिल थे।
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