किसानों की उम्मीदों पर सरकार ने फेरा पानी, लागत से 50 फीसदी ज्यादा समर्थन मूल्य देने से इनकार

Ashwani NigamAshwani Nigam   19 July 2017 8:50 PM GMT

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किसानों की उम्मीदों पर  सरकार ने फेरा पानी, लागत से 50 फीसदी ज्यादा समर्थन मूल्य देने से इनकारकेंद्र सरकार ने किसानों को किया निराश। फोटो- अशोक दत्ता

लखनऊ। खरीफ की बुवाई में जी-जान से जुटे किसानों को उम्मीद थी कि इस बार सरकार उनकी मेहनत का उचित मूल्य देगी उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा लेकिन केन्द्र सरकार ने किसानों को उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। किसानों को फसल लागत मूल्य से 50 प्रतिशत अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को नकार दिया है।

लोकसभा में मंगलवार को कृषि राज्यमंत्री एसएस अहलूवालिया ने कहा कि फसल लागत पर कम से कम 50 फीसदी वृद्धि को निर्धारित करने से बाजार में विकृति आ सकती है। सरकार के इस फैसले से किसानों को झटका लगा है। भारतीय किसान यूनियन अध्यक्ष भानू प्रताप सिंह ने कहा '' देशभर में अपने हक के लिए आंदोलन कर रहे किसान सरकार के इस फैसले से निराश हैं।''

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उन्होंने कहा कि घाटे का सौदा बनती जा रही खेती को लेकर सरकार का अगर यही रवैया रहा तो किसान खेती छोड़ने पर मजबूर हो जाएगा। किसानों की समस्यओं के अंत के लिए हाल ही में मंदसौर से दिल्ली तक किसान मुक्ति यात्रा निकालने वाले स्वराज इंडिया के संयोजक योगेन्द्र यादव ने कहा '' नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी ने किसानों को वादा किया था कि उनको फसलों की लागत पर 50 प्रतिशत का मुनाफा दिलाया जाएगा। उस हिसाब से देखें तो एक भी फसल में सरकार अपने वादे का आधा भी नहीं दे रही है। ''

उन्होंने कहा कि पिछले दिनों केन्द्र सरकार ने घोषणा कि खरीफ 2017-18 के लिए सब फसलों के दाम बढ़ा दिए गए हैं। धान का समर्थन मूल्य बढ़ाकर 1550 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया गया है, जबकि अरहर-तुअर दाल के समर्थन मूल्य में 400 रुपए बढ़ाकर 5450 रुपए कर दिया गया है, लेकिन इसके पीछे जो सच है सरकार ने उसे छिपा लिया है। ''

भाजपा ने वादा किया था कि लागत पर 50 प्रतिशत का मुनाफा दिलाया जाएगा

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धान की लागत 1484 रुपए है और अगर किसान को 1550 रुपए प्रति कुंतल का समर्थन मूल्य मिल भी जाए तो उसे सिर्फ 4 प्रतिशत बचत होगी। '' योगेन्द्र यादव ने कहा कि सरकार जिस तरह समर्थन मूल्य का फैसला करती है उस पर किसान संगठनों ने बार-बार सवाल उठाए हैं। खुद सरकार की ओर से गठित रमेश चंद समिति ने मान लिया है कि सरकारी आंकड़ों में किसान की लागत को कम करके आंका जाता है। लेकिन सरकार ने इसे बदलने की कोई कोशिश नहीं की है।

कृषि नीति के जानकार धर्मेन्द मल्लिक ने बताया '' सरकार किसानों को बाजार के हवाले करने पर तुली हुई है। कृषि राज्यमंत्री ने लोकसभा में बयान दिया कि सरकार एमएसपी पर उत्पाद की खरीद करके उत्पादकों को लाभकारी मूल्य सुनिश्चित कराती है। फिर भी, किसान अपने उत्पाद खुले बाजार में बेचने के लिए स्वतंत्र हैं. '' उन्होंने कहा कि यह बयान बताता है कि सरकार अपनी जिम्मेदारियों से बच रही है।

कृषि नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने बताया '' सरकारों ने किसानों को उनके उचित आय से वंचित रखा है, जो किसानों का न्यूनतम समर्थन मूल्य से मिलता है। जब भी न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने की बात होती है, तब कहा जाता है कि इसकी जरूरत नहीं है, फसलों का मूल्य कम रखना चाहिए, नहीं तो खुदरा खाद्य कीमतों में वृद्धि होगी। यानी उपभोक्ताओं को सस्ता भोजन उपलब्ध कराने के लिए किसानों को गरीब रखा गया है। ''

ज़मीनी हकीकत: न्यूनतम समर्थन मूल्य की नीतियों में बदलाव हो

खेती में बढ़ती लागत से किसान हैं परेशान। फोटो -प्रमोद अधिकारी

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उन्होंने कहा कि केन्द्र से लेकर राज्य सरकारों को खेती-किसानी के प्रति अपना रवैया बदलना होगा। सरकार विश्व व्यापार संगठन के दबाव में किसानों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने से बचती है लेकिन समय अभी इससे आगे की सोचने का है। सरकार को चाहिए कि सबसे पहले वह किसानों की आय बढ़ाने के लिए जल्द से जल्द '' किसान आय आयोग '' का गठन करे। साथ ही ऐसी व्यवस्था जिससे किसानों को उनकी आय का लाभ प्रत्यक्ष रूप से मिल सके।

देश में किसानों की समस्याओं और कृषि संकट के अंत को लेकर एक नीति बनाने के लेकर लगातार काम कर रहे कृषि नीति विशेषज्ञ रमनदीप सिंह मान ने बताया '' न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर केन्द्र से लेकर राज्य सराकरों का रवैया किसानों के हित में नहीं है। '' उन्होंने केन्द्र सरकार की तरफ से खरीफ सीजन 2017-18 के लिए जारी न्यूनतम समर्थन मूल्य से किसानों को कोई लाभ नहीं होगा, जबतक सरकार किसानों की आय को लेकर गंभीर होकर काम नहीं करती है।

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