चार साल में पहली बार मोदी सरकार करेगी अविश्वास प्रस्ताव का सामना, शिवसेना के तेवर बागी
गाँव कनेक्शन 20 July 2018 5:14 AM GMT
2014 में सत्ता में आने के बाद पहली बार नरेंद्र मोदी सरकार शुक्रवार को अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रही है। मौजूदा मानसून सत्र के पहले दिन लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने विपक्षी दलों के अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस को मंजूरी दे दी थी। शिवसेना के रुख बागी नजर आ रहे हैं इस बीच शुक्रवार सुबह प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट करके सांसदों का समर्थन मांगते हुए कहा है कि दुनिया की निगाहें भारत की तरफ हैं।
Today is an important day in our Parliamentary democracy. I am sure my fellow MP colleagues will rise to the occasion and ensure a constructive, comprehensive & disruption free debate. We owe this to the people & the makers of our Constitution. India will be watching us closely.
— Narendra Modi (@narendramodi) July 20, 2018
अपने संख्याबल की वजह से बीजेपी अपनी जीत के प्रति आश्वस्त है लेकिन अविश्वास प्रस्ताव से कुछ घंटे पहले शिवसेना के रुख ने मोदी सरकार की चिंताएं बढ़ा दी है। शिवसेना के मुखपत्र सामना ने शुक्रवार को लिखा गया है कि, "इस समय देश में तानाशाही चल रही है इसका समर्थन करने की जगह वह जनता का समर्थन करेगी।"
लोकसभा की सदस्य संख्या 543 है जिसमें 11 सीटें खाली हैं। मतलब मौजूदा संख्या 532 है। ऐसे में बहुमत के लिए किसी भी दल को 267 सीट चाहिए, बीजेपी के पास 272 सांसद हैं। सहयोगियों समेत यह संख्या 295 है। विरोध में 147 सांसद हैं अगर शिवसेना इनमें मिल जाए तो यह 165 हो जाएगी। एआईएडीएमके ने भी अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
क्या होता है अविश्वास प्रस्ताव
संविधान के अनुच्छेद 118 के तहत हर सदन अपनी प्रक्रिया बना सकता है जबकि नियम 198 के तहत ऐसी व्यवस्था है कि कोई भी सदस्य लोकसभा अध्यक्ष को सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे सकता है। अविश्वास प्रस्ताव पारित कराने के लिए कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन हासिल होना चाहिए। जब लोकसभा अध्यक्ष इसे मंजूर कर ले इसके बाद 10 दिनों के अंदर इस पर चर्चा होती है। चर्चा के बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग कराता है।
मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की कोशिश मार्च 2018 में भी हुई थी लेकिन नाकाम रही क्योंकि विपक्ष इस पर एकजुट नहीं हो पाया था।
पहला अविश्वास प्रस्ताव जवाहर लाल नेहरू सरकार के खिलाफ अगस्त 1963 में जे. बी. कृपलानी ने रखा था। इसके पक्ष में केवल 62 वोट पड़े विरोध में 347 वोट पड़े।
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