लॉकडाउन की वजह से देश में प्रतिदिन हो रही 10 से ज्यादा मौतें, पैदल घर जा रहे मजदूरों की संख्या सबसे ज्यादा
Mithilesh Dhar 16 May 2020 6:38 AM GMT
कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए लगाये गये देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से देश में प्रतिदिन 10 से ज्यादा लोगों की मौत हो रही है। 51 दिनों में (14 मई तक) अब तक 516 लोगों की जान चुकी है। इसमें पैदल जा रहे मजदूरों की संख्या सबसे ज्यादा है।
पिछले तीन दिन में (14 से 16 मई के बीच) देश के अलग-अलग हिस्सों में हुई सड़क दुर्घटनाओं में 50 से ज्यादा मजदूरों की जान जा चुकी है।
शनिवार 16 मई को तड़के सुबह साढ़े तीन बजे उत्तर प्रदेश के औरैया जिले में ट्रक और ट्राले की टक्कर में 24 मजदूरों की मौत हो गई जबकि 35 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हैं। ये सभी मजदूर राजस्थान से निकले थे और बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड जा रहे थे।
इससे पहले पंजाब से बिहार पैदल जा रहे 10 मजदूरों को गुरुवार (14 मई) को मुजफ्फरनगर में रोडवेज की बस ने रौंद दिया था। इस हादसे में में छह मजदूरों की मौत हो हुई थी। इसी दिन उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर से बिहार के गया जा रहे मजदूर को रायबरेली की डोली ग्राम सभा के पास चार चक्का गाड़ी टक्कर मार दी जिससे उससे मौके पर मौत हो गई। गुरुवार को ही बिहार के समस्तीपुर में शंकर चौक के पास एनएच 28 पर प्रवासी मजदूरों को लेकर कटिहार जा रही बस चांदचौर के पास ट्रक से टकरा गई जिससे दो मजदूरों की मौत हो थी।
मध्य प्रदेश के गुना में बुधवार (13 मई को) देर रात 60 से अधिक मजदूरों को लेकर जा रही बस का एक्सीडेंट हो गया था। इस हादसे में आठ मजदूरों की जान चली गई। गुरुवार 14 मई को ही आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले में मजदूरों से भरा ट्रैक्टर बिजली के खंभे से जा टकराया। करंट लगने से सभी मजदूरों की मौत अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
6 migrant workers who were walking along the Muzaffarnagar-Saharanpur highway killed after a speeding bus ran over them late last night, near Ghalauli check-post. Case registered against unknown bus driver. pic.twitter.com/s81e7gpYkH
— ANI UP (@ANINewsUP) May 14, 2020
मजदूरों की ये वे कुछ मौतें हैं जो सड़क दुर्घटनाओं में हुईं। इसके अलावा कई मजदूरों की जान तो पैदल चलते-चलते चली गई। लॉकडाउन की वजह से अब तक देश में कुल 516 जानें जा चुकी हैं। देश में 25 मार्च से लॉकडाउन है, इस लिहाज से देखेंगे तो कुल 51 दिनों में ये जानें गई हैं। आंकड़ें 14 मई तक के ही हैं।
यह भी पढ़ें- औरंगाबाद ट्रेन हादसा: मृतक की पत्नी ने कहा, 'जितना पैसा सरकार अब दे रही है, उससे कम में ही मेरा पति जिंदा घर आ जाता'
इन आंकड़ों को जुटाया है तकनीकी जानकारों की एक निजी वेबसाइट www.thejeshgn.com ने। इस वेबसाइट के अनुसार लॉकडाउन की वजह से देश में अब तक कुल 516 मौतें ऐसी हुई हैं जिन्हें कोरोना नहीं था। ये आंकड़े देशभर की मीडिया रिपोर्टस को लेकर तैयार किये गये हैं। देशभर में कोरोना की वजह से अब तक 2,700 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं।
तबरक अंसारी (50) 25 मार्च को महाराष्ट्र के भिवड़ी से अपने 11 दोस्तों के साथ उत्तर प्रदेश के जिला महाराजगंज के लिए निकले थे, लेकिन अपने घर नहीं पहुंच पाये। रास्ते में मध्य प्रदेश के सेंधवा में उनकी मौत हो गई। भिवंड़ी से महाराजगंज की कुल दूरी लगभग 1,600 किलोमीटर है, लेकिन तबरक कुल 390 किमी कर सफर ही तय कर पाये। तबरक के साथ रमेश पवार भी यात्रा कर रहे थे।
उन्होंने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया, "तबरक की मौत मध्य प्रदेश के बरवानी के पास संधवा में गुरुवार 30 मार्च को हो गई थी। उसे दिला का दौरा पड़ा था। 11 लोग साइिकल से निकले थे। हम लोग मुंबई में पॉवरलुम में काम करते थे लेकिन लॉकडाउन की वजह से नौकरी चली गई थी। हमारे पास खाने के लिए एक पैसे नहीं थे।"
8 labourers lost their lives & 54 others were injured, they are being treated at the district hospital. Postmortem & further investigation underway: TS Baghel, ASP Guna #MadhyaPradesh https://t.co/4AMD28IT5g pic.twitter.com/HL5ybGcZxp
— ANI (@ANI) May 14, 2020
ऐसे ही धर्मवीर (28) 27 मार्च को अपने सात साथियों के साथ नई दिल्ली से बिहार के खगड़िया जिले के खरैता गांव के लिए साइकिल से निकले थे, लेकिन एक मई को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के पास उनकी तबियत खराब होती है और अस्पताल ले जाते-जाते उनकी मौत हो जाती है।
शाहजहांपुर कोतवाली पुलिस ने मीडिया को दिये अपने बयान में कहा, "धर्मवीर के ग्रुप में से ही किसी ने डायल 112 पर फोन करके तबियत बिगड़ने की बात कही। हमारी टीम पहुंची तो धर्मवीर सांस लेने में दिक्कत हो रही थी फिर वह अचानक बेहोश हो गया। हम उसे मेडिकल कॉलेज लेकर गए लेकिन वहां डॉक्टरों ने उसे मृत बताया।"
धर्मवीर के साथ उनके जिले और गांव के भी कई लोग थे। उन्हीं में से एक रामनिवास बताते हैं, "हम नई दिल्ली में शकूरबस्ती में रहते थे। लॉकडाउन के बाद से हमें कोई काम नहीं मिलता था। रोजगार छिन गया। हम 34 दिनों तक ही इसके बाद वहां रह पाये। लोगों से मांगकर या कहीं कोई मदद मिल जाती थी, उसी से पेट भरता था, लेकिन इससे कितने दिनों तक जिंदा रह पाते।"
यह भी पढ़ें- लॉकडाउन: 26 साल का युवा तीन दिन में 120 किमी पैदल चला, गांव पहुंचते ही हुई मौत, डेढ़ दिन तक बगीचे में पड़ा रहा शव
"हमें लगा कि यहां तो रहेंगे तो भूख से ही मर जाएंगे, क्यों ना घर चलें। कम से कम अपनों के बीच में मरें। गाड़ियां सारी बंद थी तो इसलिए हम साइकिल से निकल पड़े। चार दिन साइकिल चलाने के बाद हम गुरुवार की रात हम शाहजहांपुर पहुंचे थे जहां हमने मंदिर में खाना खाया था। शुक्रवार एक मई को धर्मवीर की तबियत बिगड़ गई थी।" रामनिवास आगे कहते हैं।
नई दिल्ली से खगड़िया की दूरी लगभग 1,300 किलोमीटर है।
आठ मई को महाराष्ट्र के औरंगाबाद में 16 मजदूर की मौत ट्रेन की टक्कर से हो गई थी। ये सभी मजदूर मध्य प्रदेश के थे और पैदल चलते-चलते थकावट के कारण रेल की पटरियों पर सो गये थे।
लॉकडाउन में ऐसी जानें रोज जा रही हैं। ये कहानी कुछ उन लोगों की थी जिनसे परिजनों से हमारी बात हुई थी।
www.thejeshgn.com की रिपोर्ट को तैयार किया है शोधकर्ता, कार्यकर्ता कनिका शर्मा, थेजेश और कानूनी मामलों के जानकार अमन ने।
रिपोर्ट के बारे में कनिका गांव कनेक्शन को बताती हैं, "लॉकडउन के दौरन ट्रैक की गई समाचार रिपोर्टों से पता चलता है कि लॉकडउन के कारण अब तक 500 से अधिक लोगों की मौत हो भूख, पैसों की कमी थकावट, लॉकडाउन के उल्लंघन के बाद पुलिस के अत्याचारों के कारण और समय पर चिकित्सा न मिल पाने के कारण हुई है। 29 मार्च से अब तब हमने ऑनलाइन समाचार पोर्टल और सोशल मीडिया में अंग्रेजी, कन्नड़, मराठी, तमिल, बंगाली, ओडिशा और मलयालम में प्रकाशित हुई ऐसी मौतें को इकट्ठा करके एक डेटाबेस तैयार किया है।"
डेटाबेस के अनुसार 14 मई तक लॉकडाउन में भुखमरी और वित्तीय संकट (जैसे कृषि उपज बेचने में असमर्थतता) से 73, थकावट (घर जाने, राशन या पैसे के लिए कतार) से 33, समय पर चिकित्सा न मिलने की वजह से 53 लोगों की मौत हो गई। 104 लोगों ने आत्महत्या (संक्रमण का डर, अकेलापन) की।
शराब न मिलने के लक्षणों से जुड़ी 46, पुलिस अत्याचार से 12, लॉकडाउन संबंधी अपराध की वजह से 15और घर लौट रहे 128 प्रवासियों की मौत दुर्घटनों में हुई है। 52 अन्य मौतें भी हुई हैं जिनका कारण स्पष्ट नहीं है।
"लॉकडाउन के दौरान संक्रमण का डर, अकेलेपन, आने-जाने की स्वतंत्रता की कमी और शराब न मिलने के कारण हुई आत्महत्या की एक बड़ी संख्या है। बहुत सी आत्महत्या प्रवासी मजदूरों की है जो परिवार से दूर फंस गये सा जिन्होंने संक्रमण की डर से जान दे दी।" वे आगे कहती हैं।
"वायरस शायद अमीर और गरीब में फर्क न करे, लेकिन लॉकडाउन के दौरान हुई इन मौतों में गरीब तबके के ही लोग हैं। डेटाबेस में सबसे ज्यादा मौतें मजदूरों या उनके परिवार वालों की हुई है। बहुत सी मौतें नुकसान से परेशान किसानों की हैं। अगर इस संकट से उबरने में लोगों की मदद नहीं हुई तो मरने वालों की संख्या बढ़ती ही जायेगी।"
More Stories