#MothersDay: वो भी एक दौर था ये भी एक दौर है...

Anusha MishraAnusha Mishra   14 May 2017 11:53 AM GMT

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#MothersDay: वो भी एक दौर था ये भी एक दौर है...वक्त के साथ बदल रहीं हैं मां की ज़िम्मेदारियां

लखनऊ। शायर निदा फाज़ली की एक मशहूर नज़्म है - बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी मां, याद आती है चौका बासन चिमटा फुंकनी जैसी मां, बांस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे, आधी सोई आधी जागी थकी दुपहरी जैसी मां। मां के प्यार को उनके त्याग को शायद ही कोई हो जो न समझ पाए। वक्त बहुत बदल गया है लेकिन मां आज भी वही है, जो सालों पहले हुआ करती थी। उतनी ही परवाह करने वाली, हमारे पीछे रोटी का निवाला लेकर घूमने वाली, डांट-फटकार कर दुलार करने वाली लेकिन अब मां के इस अवतार में कुछ बदलाव भी आए हैं। उनका प्यार वही है लेकिन अंदाज़ बदल गया है। भोली मां अब स्मार्ट मॉम हो गई हैं। मदर्स डे पर पढ़िए, मां के इसी बदलते रूप और बदलती ज़िम्मेदारियों की कहानी।

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ऐसा कहते हैं कि ज़माना बदल रहा है और बदलते ज़माने के साथ हर किसी को बदलना चाहिए। बदलाव के इसी दौर में कदम से कदम मिलाते हुए आजकल की माएं भी खुद को बदल रही हैं। आजकल की माएं स्मार्ट हो रही हैं। बच्चों की किताबों से लेकर उनके फ्रेंड लिस्ट तक की जानकारी रखती हैं आजकल की मां। उन्हें पता है कि बच्चों को प्यार की ज़रूरत है और सिर्फ डांटने से या डराने से काम नहीं चलेगा। उन्हें कुछ सिखाना है तो बच्चों की पसंद-नापसंद को अपनाना होगा। उनका गार्जियन बनने के साथ-साथ उनका दोस्त बनना भी ज़रूरी हो गया है। और इसी सोच के साथ मां चल पड़ी हैं अम्मां से स्मार्ट मॉम बनने की ओर।

टेक्नोसेवी मां

इस दौर में टेक्नोलॉजी का असर हर किसी पर हो रहा है। यह किसी की ज़रूरत बन गई है और किसी का शौक। बच्चे भी टेक्नोलॉजी से अछूते नहीं हैं। उनके स्कूल के प्रोजेक्ट हों या पसंदीदा गेम्स सब कुछ तकनीक पर ही निर्भर होता जा रहा है। मांएं भी इस बात को समझ चुकी हैं, इसीलिए उन्होंने भी तकनीक से दोस्ती कर ली है। बच्चों को नई-नई चीज़ें सिखाने के लिए मांएं तकनीक का सहारा लेने से गुरेज़ नहीं कर रही हैं। पहले जो महिलाएं टेक्नोलॉजी के बारे में बात करने से भी डरती थीं अब वो इतनी स्मार्ट हो गई हैं कि दूसरों को भी इसके बारे में बताने लगी हैं। जिन मांओं के बच्चे उनसे दूर रहते हैं उनके लिए तो वीडियो कॉलिंग किसी वरदान से कम नहीं है। यही वो ज़रिया है जिसे सीखकर अब वो अपने बच्चे को हर रोज़ देख पाती हैं और उसे अपने पास महसूस कर पाती हैं।

बच्चों के शौक को अपनातीं मां

पहले की मांएं हर वक्त बच्चों को पढ़ने के लिए डांटती रहती थीं। जब भी बच्चा अपने किसी शौक के बारे में उनसे बात करता था, वो हर बार उसे ये कहकर चुप करा देती थीं कि बेटा अभी पढ़ाई कर लो बाद में पूरी ज़िंदगी पड़ी है अपने शौक पूरे करने के लिए। लेकिन अब मांएं बच्चों को हर वक्त पढ़ाई करने की नसीहत नहीं देतीं। जब उनके बच्चे उन्हें शौक के बारे में बताते हैं तो मांएं उन्हें डांटने के बजाय उनके शौक के बारे में जानती हैं। उनके लिए उस शौक को पूरा करने का इंतज़ाम करती हैं। कई बार तो बच्चों के शौक को मांएं अपना शौक बना लेती हैं और उन्हें सीखती भी हैं। बरेली के शास्त्री नगर में रहने वाली प्रभा गंगवार को पहले क्रिकेट में कोई रुचि नहीं थी लेकिन उनका 8 साल का बेटा नमन क्रिकेट का दीवाना है। बस फिर क्या था प्रभा ने भी क्रिकेटको अपना शौक बना लिया। अब तो यह हाल है कि ज़्यादातर देशों की टीम से लेकर क्रिकेट की लगभग हर तकनीक की जानकारी है प्रभा को।


बच्चों के लिए क्लासेज लेतीं मां

किसी बच्चे को नूडल्स खाना पसंद है तो किसी को पिज़्ज़ा, किसी को पास्ता पसंद है तो किसी को फ्रेंच टोस्ट। अब हर बार तो उन्हें बाहर से मंगा कर ये सब नहीं खिलाया जा सकता और हर बार मना करके उन्हें दुखी भी नहीं किया जा सकता। समस्या यह है कि मां को यह सब बनाना नहीं आता, लेकिन आजकल की मां ने इसका रास्ता खोज लिया है। बच्चों को उनकी पसंद का खाना खिलाने के लिए वो कुकिंग क्लासेज ले रही हैं। किसी बच्चे को डांस पसंद है तो उसे क्लासेज ज्वॉइन कराने के साथ ही वह खुद भी डांस सीख रही हैं ताकि घर पर भी बच्चे को कुछ सिखा सकें। हर क्षेत्र में अब वो अपनी स्मार्टनेस का परिचय दे रही हैं।

स्कूल से रहती हैं कनेक्ट

पहले की मांएं अपने बच्चों को बस स्कूल भेज देती थीं। वहां के शिक्षकों से उनका कोई नाता नहीं होता था। घर के बाहर की ज़्यादातर ज़िम्मेदारियां पुरुष निभाते थे इसलिए स्कूल से जुड़ी चीजों पर भी बच्चों के पापा ही ध्यान देते थे, लेकिन अब मांओं ने इस ज़िम्मेदारी को बांट लिया है। बच्चों के स्कूल से जुड़ी हर गतिविध पर मांओं की नज़र रहती है।

दोबारा पढ़ भी रही हैं मां

मां के दौर में जो पढ़ाई होती थी तब से लेकर अब तक उसमें काफी बदलाव आए हैं। अब बच्चों की किताबों से लेकर पढ़ाने का तरीका तक सब कुछ बदल गया है। बच्चे को पढ़ाने के लिए अब मांएं खुद भी पढ़ रही हैं। उनके कोर्स को समझ रही हैं। पढ़ाई के तरीके को अपना रही हैं।

बच्चों के लिए छोड़ रही हैं करियर भी

ऐसा नहीं है कि स्मार्ट और टेक्नोसेवी मांएं अपने में ही मगन रहती हैं, उनमें वो जज़्बात खत्म हो गए हैं जो पहले थे, वो अब भी वैसी ही हैं। वर्षों तक जिस करियर को बनाने के लिए दिन रात मेहनत की, मांएं अपने बच्चों के लिए उसे भी छोड़ रही हैं।

2015 में आए एसोचैम के एक सर्वे के मुताबिक, लखनऊ, अहमदाबाद, दिल्ली, कोलकाता और जयपुर की 25-30 प्रतिशत महिलाओं का कहना है कि मां बनने के बाद उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी क्योंकि उन्हें लगता था कि वो अपने बच्चे को ठीक से समय नहीं दे पा रही हैं और एक मां की ज़िम्मेदारी को अपनी महत्वाकांक्षाओं के तले दबा रही हैं।

वहीं, सर्वे में शामिल इंदौर, मुंबई, बंगलुरू, हैदराबाद और चेन्नई की 15-20 प्रतिशत महिलाओं ने अपने बच्चे के जन्म के बाद करियर छोड़ दिया है।

बच्चों को भी चाहिए स्मार्ट मॉम

आजकल के बच्चे भी अपनी मॉम को स्मार्ट मॉम के तौर पर ही देखना चाहते हैं। वो चाहते हैं कि उनकी मम्मी ज़माने के साथ क़दम मिलाकर चलें। मोबाइल से लेकर लैपटॉप तक सब कुछ चलाना मां को आता हो। अगर उन्हें पड़ोस में रहने वाले लोगों के बारे में जानकारी हो तो देश दुनिया की ख़बरों से भी वो बेख़बर न हों।


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