'मदर्स ऑफ़ इण्डिया' पार्ट-3: 'मम्मी, पापा तो चले गये अब आप मुझे छोड़कर मत जाना, मैं कैसे रहूँगा …?'

अपने बच्चों की परवरिश के लिए क्या-क्या करती हैं माएं? महिला दिवस के उपलक्ष्य में गांव कनेक्शन की विशेष सीरीज में मिलिए कुछ ऐसी मांओं से जो अपने परिवार के लिए दहलीज़ लांघकर, लीक से हटकर काम कर रही हैं। आज मिलिए एचआईवी पॉजिटिव से लड़ने वाली मोना बालानी से...

Neetu SinghNeetu Singh   4 March 2020 2:09 PM GMT

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"जब लोग मेरी अंतिम सांसे गिन रहे थे, भगवान से मिन्नतें कर रहे थे। घर में दीपदान की तैयारी हो रही थे, उस समय मेरे बेटे के शब्दों ने मुझे उठकर बैठने की हिम्मत दी।"

ये शब्द उस मां के थे जो 15 साल पहले एचआईवी से जिंदगी और मौत की लड़ाई से जूझ रही थी। उस समय उनके बेटे ने उनसे लिपटकर कहा, 'मम्मी, पापा तो चले गये अब आप मुझे छोड़कर मत जाना, मैं कैसे रहूँगा…?"

यही वो शब्द थे जिसे सुनकर मोना बालानी में उठने की हिम्मत आयी।

मोना बालानी का ये है वो बेटा जिसके कहे शब्दों से उनमें जीने की एक उम्मीद जगी थी.

"मुझे आज भी लगता है अगर मेरे बेटे ने ये शब्द न बोले होते तो शायद आज मैं जिंदा न होती।" सोफे पर अपने बेटे के साथ बैठी मोना बालानी उसके सिर पर हाथ फेरते हुए उम्मीद से बोलीं।

दिल्ली के सरिता विहार में अपने कमरे में पड़े एक सोफे पर अपने बेटे के साथ बैठी मोना बालानी (43 वर्ष) अपने जीवन के वाकये बता रही थीं कि कैसे वो पिछले 20 वर्षों से एचआईवी के साथ जी रही हैं।

"हर किसी का एक ही सवाल होता है, कैसे हुआ ये सब? पांच छह साल हम पूरी तरह से समाज से अलग हो गये थे। लोगों को लगता था कि ये एक छुआछूत की बीमारी है," भावुक होकर मोना बताती हैं।

मूल रूप से राजस्थान के जयपुर में जन्मी मोना ने वर्ष 2006 में 'नेटवर्क फॉर पीपुल लिविंग विद एचआईवी संस्था' के साथ काम करना शुरू किया। यही वो संस्था है जहां मोना को अहसास हुआ कि वो देश की पहली महिला नहीं हैं जो एचआईवी के साथ जी रही हैं।

एचआईवी संक्रमित मरीजों की हिम्मत हैं मोना बालानी.

अभी ये (NCPI +) भारत में एचआईवी के साथ रहने वाले लोगों का राष्ट्रीय गठबंधन में दो प्रोजेक्ट में बतौर डायरेक्टर 10 राज्यों में काम कर रही हैं। ये संस्था एचआईवी से संक्रमित साढ़े 12 लाख लोगों के साथ सीधे तौर पर जुड़ी है और कुल 25 लाख लोगों के साथ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष से काम कर रही है।

"मेरे पति को एचआईवी था इसकी जानकारी हमें 1999 में हुई। जब अपनी जांच कराई तो पता चला मुझे भी एचआईवी है। इस घटना के दो साल बाद मेरे सवा दो साल के बेटे की मौत हो गयी," यह बताते हुए मोना का गला भर आया, "एक समय ऐसा था जब हमारी पूरी सेविंग खत्म हो गयी। घर बिक गया। समझ नहीं आ रहा था जिंदगी की रफ्तार को कैसे आगे बढ़ाएं?"

मोना देश में एचआईवी से संक्रमित लाखों मरीजों के लिए आज वो ऊर्जा हैं जिससे लोगों में इस लाइलाज बीमारी से लड़ने की हिम्मत आती है। इस मुकाम तक पहुंचने का सफर मोना के लिए आसान नहीं था।

मध्यम वर्गीय ब्राह्मण परिवार में जन्मीं मोना दो बड़े भाईयों में सबसे छोटी थीं, परिवार की मर्जी के खिलाफ 1993 में अंतरजातीय विवाह भी कर लिया। इस शादी के बाद इनके घरवालों ने इनसे रिश्ते पूरी तरह से खत्म कर लिए थे।

मोना बालानी अपने पति की यादों के साथ जी रही हैं.

"जब मेरे पति की आख़िरी सांसें चल रही थीं तब पहली बार मेरे माता-पिता उन्हें देखने आये थे," मोना बालानी मई महीने की उस 26 तारीख को याद करने लगीं जब साल 2005 में उनके पति एचआईवी से जिंदगी की जंग हार गये।

पति की मौत का वो 13वां दिन था जब मोना ने 'नेटवर्क फॉर पीपुल लिविंग विद एचआईवी संस्था' के साथ काम करने की शुरुआत कर दी थी। राजस्थान में नौ साल तक 'नेटवर्क फॉर पीपुल लिविंग विद एचआईवी संस्था' के साथ काम करने के बाद मोना दिल्ली शिफ्ट हो गईं।

"ये वो समय था जब मुझे अपने बेटे के लिए मां और पिता दोनों की जिम्मेदारी खुद निभानी थी। न कोई सेविंग थी, न रहने के लिए छत," बोना ने अपनी बात जारी रखी, "मुझे अपने बेटे के लिए जीना था इसलिए मैं एचआईवी सक्रमित होने के बावजूद काम करती रही। क्योंकि मुझे अपने बेटे को अच्छी परवरिश देनी थी। अपने पति की निशानी को एक बेहतर मुकाम तक पहुंचाना था।"

अभी मोना बालानी की ऊर्जा को देखकर उनके दुखों का अंदाजा लगाना मुश्किल है। क्योंकि आज वो देश के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले लाखों एचआईवी संक्रमित मरीजों की हिम्मत हैं। चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिए वो हमेशा उत्साह से भरी तरोताजा दिखती हैं। ये सजने संवरने की शौक़ीन हैं।


मोना के साथ रहने वाली गजराज ने मोना के गले से लिपटते हुए खुशी से कहा, "मैं किसी से इस वायरस के बारे में नहीं बताना चाहती थी, इस वजह से मैं अपने पति को भी खो चुकी थी। मोना की शुक्रगुजार हूं कि आज मैं इस वायरस के साथ 15 साल से जी रही हूं।"

मोना का बेटा मोहित अभी 23 साल का हो गया है। मोहित ने अपनी मां की तारीफ़ करते हुए कहा, "मैं अपनी मां पर गर्व महसूस करता हूं। पापा के जाने के बाद मां ने कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी। इन्होंने समाज में मुझे अच्छे नागरिक होने का दर्जा दिलाया।"

मोना अपनी शादीशुदा जिंदगी में काफी खुश थीं। पर उनकी ये खुशियां महज छह साल तक ही रहीं। पति और खुद की बीमारी के बाद सवा दो साल के बेटे की मौत से ये पूरी तरह से टूट चुकी थीं। समाज के भेदभाव के इनके पास अनगिनत किस्से थे जो इन्होंने सहे।

"मुश्किल दौर था वो, जब हमारे परिवार को यह पता चला कि हम पति-पत्नी दोनों को एचाईवी है," एक फ्रेम में पति के साथ अपनी फोटो दिखाते हुए मोना ने कहा, "मुझे बिलकुल अफ़सोस नहीं कि मैंने इनसे शादी क्यों की थी? बहुत स्वीट थे, केयरिंग थे। आज भी वो मुझसे दूर नहीं हैं। मैं उनकी यादों के साथ जीती हूं।"

        

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