प्रदूषण रोकने के लिए बनेगा मुम्बई में बनेगा पशु शवदाह गृह

Diti BajpaiDiti Bajpai   24 Jan 2018 7:21 PM GMT

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प्रदूषण रोकने के लिए बनेगा मुम्बई में बनेगा पशु शवदाह गृहपशुओं के शवों को निस्तारण करने के लिए बनेगा पशुशवदाह गृह।

देश में ज्यादातर पशु के मरने के बाद लोग उन्हें ऐसे ही छोड़ देते हैं जिससे वातावरण तो दूषित होता है, साथ ही कई बीमारियां भी पनपती है। इसी को देखते हुए बृहन्मुंबई महानगरपालिका ने पालतू पशुओं के शवों का अंतिम संस्कार करने के लिए तीन शवदाह गृहों की स्थापना करने का फैसला लिया है।

बृहन्मुंबई महानगरपालिका में जनरल मैनेजर डॉ योगेश शेटटे ने बताया, "लोग मरे हुए गाय, भैंस और कुत्तों को सड़क किनारे फेंक देते है, जिससे आस-पास का वातावरण प्रदूषित हो रहा है। पशु शवदाह गृह बनने के बाद लोग पशुओं को इधर-उधर नहीं फेंक सकेंगे। पशुओं को निस्तारण करने के लिए लोगों को शवदाह गृह तक लाना होगा।''

शवदाह गृहों को सीएनजी के बजाए बिजली से चलाना क्या ये अधिक उपयुक्त नहीं होगा इस पर डॉ योगेश शेटटे ने बताया कि "मुंबई में बिजली के दाम ज्यादा है इसलिए इन शवदाह गृहों को सीएनजी से संचालित किया जाएगा। पशुओं को शवदाह गृह बनना बहुत जरूरी है क्योंकि इनके मरने के बाद पर्यावरण को सबसे ज्यादा खतरा होता है।''

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बृहन्मुंबई महानगरपालिका आयुक्त अजोय मेहता ने शहर में पालतू जानवरों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर इन शवदाह गृहों की स्थापना करने का फैसला किया है।

उन्होंने कहा, सीएनजी संचालित इन शवदाह गृहों को बनाने में करीब छह करोड़ रुपए का खर्च आएगा। ये तीनों शवदाह गृह दक्षिण मुंबई के महालक्ष्मी, पूर्वी उपनगर देवनार और पश्चिमी उपनगर मलाड में बनेंगे। नए शवदाह गृहों के निर्माण के संबंध में जून में निविदा जारी की जाएगी। यह संभवत: अगले वर्ष से काम करने लगेंगे।

मृत पशुओं के निस्तारण के लिए जहां मुम्बई बीएमसी में यह फैसला लिया वहीं बिहार और गुडगांव में भी पशु शवदाह गृह तैयार किए गए है। पटना नगर निगम के बैरिया स्थित कूड़ा डंपिंग यार्ड के एक हिस्से में अत्याधुनिक पशु शवदाह बनाया गया है जहां पर रोजाना मृत पशुओं का निस्तारण किया जा रहा है।

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गिद्धों की पर्यावरण संतुलन और सफाई में बहुत बड़ी भूमिका है। खासकर ऐसे समय में जब मरे हुए मवेशियों को ठिकाने लगाने एक बहुत बड़ी समस्या है। मशूहर पक्षीविद डाक्टर सालिम अली ने अपनी पुस्तक इंडियन बर्ड्स में गिद्धों का वर्णन करते हुए इनको सफाई के लिए एक ऐसी कुदरती मशीन बताया है जिसकी जगह कभी मानव आविष्कार से बनी कृत्रिम मशीने नहीं ले सकती हैं। गिद्धों का एक दल एक मरे हुए सांड को केवल 30 मिनट में ही साफ कर सकता है। सिर्फ सफाई ही नहीं बल्कि गिद्धों की संख्या में तेजी से हो रही कमी पर्यावरण की खाद्य कड़ी के लिए भी खतरा है।

पशुओं के मरने के बाद होने वाली बीमारियों के बारे में पशु वैज्ञानिक डॉ आनंद सिंह बताते हैं, "पशु के मरने के 24 घंटे के बाद ही उसका शरीर पर्यावरण को दूषित करता ही साथ ही इंसानों में होने वाली कई बीमारियों का कारण बनता है। पिछले 25 साल पहले अगर कही पशु मरता था तो उसे गिद्ध दो दिन खाकर खत्म कर देते थे। लेकिन अब गिद्धों की संख्या न के बराबर है। गाँव हो या शहर जहां भी पशु मरता है कुत्ते और सियार उसे खाना बना लेते है। जानवर के मरने के बाद अगर उसका शव ऐसे ही पड़ा है तो हेपेटाइटिस बी सी, टीबी, कालरा, टाइफाइड जैसी कई बीमारियां फैलनी लगती है।"

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अपनी बात को जारी रखते हुए डॉ सिंह आगे बताते हैं, "पशुओं के शव निस्तारण के लिए शवदाह गृह जरूरी है। क्योंकि इससे जो वातावरण प्रदूषित होता है उसको काफी हद तक रोका जा सकता है। सरकार द्वारा हर राज्यों में ऐसे शवदाह गृह बनवाने चाहिए। मृत पशुओं के निस्तारण के लिए निगम के पास पर्याप्त संसाधन नहीं होते है।"

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