SC ने पूछा, क्या महिला को मिल सकता है तीन तलाक स्वीकार ना करने का अधिकार ?

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SC ने पूछा,  क्या महिला को मिल सकता है तीन तलाक स्वीकार ना करने का अधिकार ?ट्रिपल तलाक पर सुनवाई जारी है। (फोटो-इंटरनेट साभार)

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के मुद्दे पर आज फिर सुनवाई शुरू हुई। आज सुनवाई के दौरान कोर्ट ने आल इंडिया पर्सनल ला बोर्ड से पूछा कि क्या ये मुमकिन है कि महिला को यह अधिकार दे दिया जाए कि वह तुरंत तौर पर दिए गए तलाक को स्वीकार ना करें। इस क्लॉज़ को निकाहनामा में भी शामिल किया जा सकता है, जिसमें कहा गया है कि तीन तलाक के तुरंत बाद भी शादी नहीं टूट सकती है।

कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे को तभी लागू किया जा सकता है जब काज़ी इस मुद्दे को जमीनी स्तर तक लागू करें, हालांकि आल इंडिया पर्सनल ला बोर्ड की ओर से युसुफ हातिम ने कहा किआल इंडिया पर्सनल ला बोर्ड की एडवाइजरी को मानना सभी काज़ी के लिए जरूरी नहीं है, हालांकि वे हमारे सुझाव को मान सकते हैं।

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सीजेआई जेएस खेहर की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ के सामने पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि वैवाहिक रिश्ते में प्रवेश से पहले महिलाओं के सामने 4 विकल्प होते हैं जिनमें स्पेशल मैरेज ऐक्ट 1954 के तहत पंजीकरण का विकल्प भी शामिल है। AIMPLB ने कहा, 'महिला भी अपने हितों के लिए निकाहनामा में इस्लामी कानून के दायरे में कुछ शर्तें रख सकती है। महिला को भी सभी रूपों में तीन तलाक कहने का हक है और अपनी गरिमा की रक्षा के लिए तलाक की सूरत में मेहर की बहुत ऊंची राशि मांगने जैसी शर्तों को शामिल करने जैसे दूसरे विकल्प भी उसके पास उपलब्ध हैं।'

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बोर्ड ने कोर्ट को 14 अप्रैल 2017 को पास किए गए एक फैसले के बारे में भी बताया, जिसमें कहा गया था कि ट्रिपल तलाक के एक पाप है, और ऐसा करने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा।

इससे पहले मंगलवार को हुई सुनवाई में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि तीन तलाक का पिछले 1400 साल से जारी है। अगर राम का अयोध्या में जन्म होना, आस्था का विषय हो सकता है तो तीन तलाक का मुद्दा क्यों नहीं। कपिल सिब्बल ने कहा कि इस्लाम धर्म ने महिलाओं को काफी पहले ही अधिकार दिए हुए हैं। परिवार और पर्सनल लॉ संविधान के तहत हैं, यह व्यक्तिगत आस्था का विषय है। जस्टिस कुरियन जोसेफ ने जब कपिल सिब्बल से पूछा कि क्या कोई ई-तलाक जैसी भी चीज है।

            

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