अयोध्‍या के मुसलमानों ने कहा- बाहरी कर रहे लड़ाने की कोशि‍श, जो 92 में हुआ, अब नहीं होगा

ये बात उस मोहल्‍ले की है जो अयोध्‍या रेलवे स्‍टेशन से सिर्फ 500 मीटर की दूरी पर स्‍थ‍ित है और यहां से राम जन्‍म भूमि सिर्फ 2 किमी की दूरी पर है। ये मोहल्‍ला बाबरी मस्जिद के मुद्दई रहे हाशिम अंसारी का मोहल्‍ला है।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   26 Nov 2018 10:08 AM GMT

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अयोध्‍या के मुसलमानों ने कहा- बाहरी कर रहे लड़ाने की कोशि‍श, जो 92 में हुआ, अब नहीं होगा

अयोध्‍या। ''न इन्‍हें राम से मतलब है, न रहीम से मतलब है। इनकी बातों में अयोध्‍या के हिंदू-मुस्‍लिम नहीं आने वाले। हम सभी भाई-भाई हैं।'' ये बात अयोध्‍या के रहने वाले मोहम्‍मद जमील कहते हैं। मोहम्‍मद जमील की ही तरह अयोध्‍या के मुसलमान भी आपसी भाईचारे की बात दोहराते हुए वीएचपी और शिवसेना की रैली के असर को साफ नकार देते हैं।

राम मंदिर के निर्माण की मांग को लेकर अयोध्‍या में 24 और 25 नवंबर को शिवसेना और वीएचपी की रैली थी। रैलियों में शामिल होने के लिए बाहर से करीब एक लाख लोग अयोध्‍या पहुंचे थे। सुरक्षा के मद्देनजर प्रशासन ने यहां के मुस्‍लिम मोहल्‍ले छोटी कोटिया और बड़ी कोटिया को पूरी तरह से कॉर्डन ऑफ (घेरा बनाना) कर रखा था। हर गली की शुरुआत में आरएएफ के जवान मौजूद थे और किसी को भी इस मोहल्‍ले में जाने की इजाजत नहीं थी। बैरिकेड से पूरी तरह पैक इस मोहल्‍लों के रहवासियों को बाहर न निकलने की हिदायत भी दी गई थी।

धर्म सभा केे मद्देनजर लोगों ने घरों में ही रहना मुनासिब समझा।

इस हिदायत और आशंका की वजह से मोहल्‍ले के लोग घरों में ही मौजूद थे। हमेशा चहल कदमी से गुलजार रहने वाली गलियां बिलकुल सुनसान थीं। इन्‍हीं गलियों में से एक गली के कोने पर कुछ लोग जमावड़ा लगाए थे और अयोध्‍या में हो रहे घटनक्रम के बारे में बात कर रहे थे। इनके पास पहुंचने पर सभी शांत हो जाते हैं और सवालिया चेहरे से एक टक निहारने लगते हैं। हालांकि ये बताने पर कि हम पत्रकार हैं, थोड़ा सहज भी हो जाते हैं। लेकिन इन्‍हीं लोगों में मौजूद एक शख्‍स शंका भरे लहजे में हमसे पहचान पत्र भी मांग लेता है। पहचान पत्र दिखाने पर हमें बैठने को कहा जाता है और फिर ये लोग एक-एक कर अपने मन का गुबार उड़ेल देते हैं।

ये पूछने पर कि इन रैलियों से अयोध्‍या के मुसलमानों पर क्‍या असर होता है। मोहम्‍मद जमील कहते हैं, ''असर सिर्फ हम लोगों पर नहीं अयोध्‍या के रहने वाले सभी लोगों पर होता है। अब यहां सब बंद है, कारोबार बंद है, चप्‍पे-चप्‍पे पर पुलिस वाले हैं, यहां के रहने वाले किसी को बाहर जाने में दिक्‍कत हो रही है। तो इससे दोनों ही कौम को दिक्‍कत है।''

इस सवाल पर कि क्‍या इन रैलियों से डर का माहौल भी बन रहा है। मोहम्‍मद जमील कहते हैं, ''एक बार अगर कोई कुछ भुगत लेता है, जैसे 1992 में बाबरी मस्‍जिद के वक्‍त हुआ था। तो जाहिर सी बात है कि अगर ऐसा कुछ होता है तो डर का माहौल तो बनता ही है। मुलायम सिंह के मुख्‍यमंत्री रहते 84 कोसी परिक्रमा को लेकर यहां के हिंदू व्‍यापारियों ने भी ज्ञापन सौंपा था। यहां के लोग नहीं चाहते कि अयोध्‍या में ऐसा माहौल बने। और जो बाहरी लोग आते हैं ये कभी नहीं चाहते की यहां शांति हो।''

''अब हमने डरना छोड़ दिया है, लेकिन हमें बच्‍चों को लेकर अपने परिवार को लेकर भी चिंता बनी रहती है। बच्‍चों के स्‍कूल बंद हैं, वो बाहर नहीं जा सकते। ये सब दिक्‍कतें ही तो हैं।''- अमानुल्‍ला बड़ी कोटिया के निवासी

अमानुल्‍ला आगे कहते हैं, ''हमें समझना होगा कि कोर्ट का जो भी फैसला आए, अगर हमारे पक्ष में फैसला आए तो हम अमल करें वो साथ दें। उनके पक्ष में आए तो वो अमल करें और हम उनका साथ दें। हिंदुस्‍तान की सबसे बड़ी संस्‍था सुप्रीम कोर्ट है, हम उसकी नहीं मानेंगे तो किसकी मानेंगे।''

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अमानुल्‍ला की बात का समर्थन करते हुए मोहम्‍मद जमील कहते हैं, ''मांग करना उनका हक है। लेकिन उसके कुछ कायदे कानून होते हैं। अगर आप उससे चलेंगे तो कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए। हमें इससे (रैलियों) कोई ज्‍यादा लेना देना नहीं है।'' 1992 के माहौल को याद करते हुए मोहम्‍मद जमील कहते हैं, 1992 में भी ऐसा माहौल था, थोड़ा ज्‍यादा लोग थे। उस वक्‍त हर गली कूचे में आदमी थे। उस वक्‍त प्रशासन कमजोर था। केंद्र सरकार की पूरी भूमिका थी कि जाइये जो करना है कर दीजिए।''

मुसलमानों ने कहा, रैलियों से डर का माहौल तो बनता है।

''92 में जो हुआ वैसा अब होगा भी नहीं। वो दौर दूसरा था ये दौर दूसरा है। इस बार प्रशासन बहुत अच्‍छा है। हम इस प्रशासन से बहुत खुश हैं। इतनी सुरक्षा कभी नहीं रही। हम लोग यहां के रहने वाले हैं, लेकिन अगर चाय पीने बाहर चले गए तो अंदर नहीं आ सकते, जबतक कोई घर वाला लेने नहीं पहुंचे।'' - मोहम्‍मद जमील

बता दें, इस मोहल्‍ले की सुरक्षा की जिम्‍मेदारी पीएसी और आरएएफ को सौंपी गई थी। हर गली में आरएएफ के जवान गस्‍त करते थे। साथ ही इस मोहल्‍ले को जाने वाले हर रास्‍ते को बैरिकेड लगाकर बंद कर दिया गया था।

मोहल्‍ले के ही रहने वाले अब्‍दुल हाफिज सिलाई का काम करते हैं। अब्‍दुल हाफिज कहते हैं, ''इस बाहरी आमद ने धंधा चौपट कर रखा है। यहां के हिंदुओं से हमें कभी कोई दिक्‍कत नहीं हुई। अब देखिए अयोध्‍या में धारा 144 लगी है फिर भी हजारों लोग इकट्ठा हुए हैं। कानून की धज्‍ज‍ियां उड़ा रहे हैं। यहां के हिंदू लोग इसमें ज्‍यादा नहीं शामिल हुए हैं।''

हाफिज की बात में अपनी बात जोड़ते हुए मोहम्‍मद जमील कहते हैं, ''इनको सिर्फ वोट से मतलब है। इनको न राम से मलतब है न रहीम से मतलब नहीं है। धर्म के नाम पर लड़ाना चाहते हैं। ये सिर्फ फूट डालो राज करो के लिए यहां आ रहे हैं। अयोध्‍या के हिंदू-मुस्‍लिम इनकी बात में नहीं आने वाले हैं। ये अगर चाहे कि इनमें नफरत पैदा करके चले जाएं तो इनके जाने के बाद हम लोग जैसे पहले थे वैसे फिर हो जाएंगे। ये सब लोग बाहरी हैं। यहां तभी गर्मी आप देखेंगे जब बाहरी लोग यहां आएंगे।'' जमील कहते हैं, ''आप इसी बात से समझ लें कि यहां हिंदू मुस्‍लिम मिलकर अगर कोई व्‍यापार करते हैं तो उनमें भाइयों से भी ज्‍यादा पटती है।''

धर्म सभा में बाहरी जिलों से करीब 1 लाख लोग अयोध्‍या पहुंंचे।

जमील अभी अपनी बात कह ही रहे हैं तभी इन लोगों के बीच बैठा एक शख्‍स सवाल करता है कि ''क्‍या अयोध्‍या के अंदर हिंदू लोग नहीं हैं? क्‍या यहां बाबा लोग नहीं हैं? क्‍या यहां के लोगों को मंदिर नहीं चाहिए। क्‍यों बाहरी लोग इतनी चिंता कर रहे हैं?'' इतने सवालों के बाद ये शख्‍स खुद ही जवाब भी देता है कि ''राम मंदिर बनना होगा तो वैसा भी बन जाएगा, किसी के आने की जरूरत थोड़े है।''

इस शख्‍स की बात में ही जमील अपनी बात जोड़ते हुए कहते हैं, ''मैं कहता हूं जो भी बने, मंदिर बने, मस्‍जिद बने लेकिन ये मुद्दा खत्‍म हो जाए। ये मुद्दा खत्‍म हो जाए तो अयोध्‍या का विकास तेजी से होगा। जब से ये मुद्दा आया है अयोध्‍या पिछड़ता जा रहा है।'' इतना कहकर जमील शांत हो जाते हैं और वहां बैठे लोग भी खामोश।

ये बात उस मोहल्‍ले की है जो अयोध्‍या रेलवे स्‍टेशन से सिर्फ 500 मीटर की दूरी पर स्‍थ‍ित है और यहां से राम जन्‍म भूमि सिर्फ 2 किमी की दूरी पर है। ये मोहल्‍ला बाबरी मस्जिद के मुद्दई रहे हाशिम अंसारी का मोहल्‍ला है। उनके इंतकाल के बाद अब उनके बेटे इकबाल अंसारी बाबरी मस्‍जिद के पक्षकार हैं। इस वजह से इस मोहल्‍ले की सुरक्षा व्‍यवस्‍था और चाकचौबंद थी।

हालांकि मोहल्‍ले के चारों तरफ जहां तक वीएचपी की पहुंच हो पाई थी बड़े-बड़े भोपू लगाए गए थे, ताकि आवाज इन लोगों तक साफ-साफ पहुंच सके। भोपू से तेज आवाज में 'पहले मंदिर-फिर सरकार' और 'राम लला हम आ गए' जैसे नारों की उद्घोषणा होती रहती। इन नारों से यहां के रहने वालों के दिलों में ज़र्ब पड़ते भी नजर आता है।


  

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