'मेरे पति के पास जान देने के अलावा कोई रास्‍ता नहीं था, और उन्‍होंने जान दे दी'

इस मार्च में सुर्याराधा की तरह ही कई महिलाएं शामिल हुई, जिनके परिवार के किसी ने किसी सदस्‍य ने खेती के लिए कर्ज लिया और चुकता न कर पाने पर आत्‍महत्‍या कर ली।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   30 Nov 2018 1:10 AM GMT

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मेरे पति के पास जान देने के अलावा कोई रास्‍ता नहीं था, और उन्‍होंने जान दे दी

नई दिल्‍ली। ''मेरे पति ने खेती के लिए कर्ज लिया था, उन्‍हें लोग परेशान कर रहे थे। एक दिन उन्‍होंने कहा, 'मेरे पास देने को कुछ नहीं, सिवाए जान के', और उसी रात उन्‍होंने जान दे दी।'' आंखों में आंसू लिए ये बात तेलंगाना से किसान मुक्‍ति मार्च में दिल्‍ली आईं सुर्याराधा कहती हैं। सुर्याराधा की उम्र सिर्फ 25 साल है और उनका एक 5 साल का बेटा भी है। इस मार्च में सुर्याराधा की तरह ही कई महिलाएं शामिल हुई, जिनके परिवार के किसी ने किसी सदस्‍य ने खेती के लिए कर्ज लिया और चुकता न कर पाने पर आत्‍महत्‍या कर ली।

सुर्याराधा तेलंगाना के करीम नगर जिले की रहने वाली हैं। बात करते-करते रोते हुए वो कहती हैं, ''मेरे पति बटाइदार किसान थे। उन्‍होंने 6 एकड़ जमीन में कपास की फसल लगाई। लेकिन फसल को नुकसान हो गया। इस नुकसान से उबरने के लिए उन्‍होंने बाहर से कर्ज लिया, लेकिन वो भी चुकता नहीं हो पाया। कुछ दिन बाद कर्ज देने वाले घर पर आने लगे और मेरे पति को परेशान करने लगे। ऐसे में परेशान होकर उन्‍होंने आत्‍महत्‍या कर ली।'' सुर्याराधा कहती हैं, ''बैंक ने मेरे पति को कर्ज नहीं दिया था, ऐसे में उन्‍होंने बाहर से कर्ज लिया।''

तेलंगाना से आए परिवार, जिनके पति या बेटों ने खेती के संकट के चलते आत्महत्या कर ली।

जब मीडिया में इमरान खान के भाषण का पोस्टमार्टम, देश में हनुमान जी की जाति पर चर्चा हो रही थी, देश के किसान दिल्ली पहुंचे थे...

ऐसा कहा जाता है कि जब एक किसान आत्‍महत्‍या करता है तो उसके घर वाले सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं। सूर्याराधा के साथ भी ऐसा ही हुआ। उन्‍हें अपने गुजारे के लिए मायके जाना पड़ा। लेकिन सुर्याराधा के लिए यहां भी ऐसी ही एक बुरी खबर इंतजार कर रही थी। सूर्याराधा बताती हैं, ''उनके भाई भी बटाइदार किसान थे। खेती के लिए कर्ज लिया और जब नुकसान हुआ तो एक दिन आत्‍महत्‍या कर ली।''

ये कहानी अकेले सुर्याराधा की नहीं। उनके साथ तेलंगाना से 8 महिलाएं इस मार्च में आई हैं, और ऐसी ही कई महिलाएं दूसरे राज्‍यों से भी इस मार्च में शामिल हुई हैं। ये सभी अपने अपने राज्‍य में हो रहे किसान आत्‍महत्‍याओं की कहानी बयां कर रही हैं।

तेलंगाना से इनके साथ आए किरन कुमार विसा ने गांव कनेक्‍शन के लिए अनुवादक का काम किया। क्‍योंकि ये महिलाएं तेलगु में बोल रही थीं। उन्‍होंने बताया कि ''वो तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में किसानों के लिए काम कर रहे हैं। तेलंगाना किसानों की अात्‍महत्‍याओं के मामले में दूसरे स्‍थान पर है। पहले नंबर पर महाराष्‍ट्र है। तेलंगाना में 4 साल के अंदर 4 हजार से ज्‍यादा किसान आत्‍महत्‍या कर चुके हैं। ये बहुत ही शर्मनाक है।'' किरन कुमार विसा बताते हैं, ''हमारे यहां कानून है कि बटाईदार किसानों को भी लोन दिया जा सकता है। लेकिन ये कानून जमीनी स्‍तर पर काम नहीं कर रहा।''


गौरतलब है कि किसानों के कर्जमाफी का मुद्दा लंबे अरसे से चला आ रहा है। चुनाव के वक्‍त राजनीतिक पार्टियां भी इसे मुद्दा बनाती हैं। ऐसे में किसानों के कर्ज पर किसान स्‍वराज 'आशा' की सदस्‍य कविथा कुरुधंति कहती हैं, ''ऐसा नहीं कि किसानों ने कर्ज लिया और ऐश के लिए खर्च कर दिया। उन्‍होंने खेती में खर्च किया है, लेकिन अपदाएं आईं और उन्‍हें नुकसान हो गया। इसमें किसानों की गलती कहां हैं।''

ये महिलाएं और लड़कियां इस मार्च में इस लिए शामिल हुई हैं ताकि किसानों का संपूर्ण कर्ज माफ हो सके। उनका कहना है कि वो नहीं चाहतीं कि उनकी तहर दूसरे किसान परिवारों का भी हाल हो। किसान मुक्‍ति मार्च की प्रमुख मांग में से एक संपूर्ण कर्जमाफी भी है। इस लिए ये महिलाएं इस मार्च का हिस्‍सा हैं।

बात करें एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) की तो सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के मुताबिक, किसानों और खेती से जुड़े लोगों का एनपीए 66,176 करोड़ है। इसमें से सार्वजनिक बैंकों का 59,177 करोड़ और निजी बैंकों का 6,999 करोड़ एनपीए है। वहीं, देश के संपूर्ण एनपीए (जीएनपीए) पर नजर दौड़ाएं, तो यह 7,76,067 करोड़ रुपये है। ये जानकारी इसी साल की शुरुआत में मध्य प्रदेश के नीमच निवासी सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने आटीआई से प्राप्‍त की थी।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के डाटा के मुताबिक, कृषि क्षेत्र का एनपीए कुल बैंकिंग क्षेत्र के एनपीए का 8.3 प्रतिशत है। 2012 से कृषि क्षेत्र के एनपीए में 142.74 प्रतिशत की बढ़त हुई है। एनपीए को हम ऐसे समझ सकते हैं कि कोई शख्‍स बैंक से लोन लेने के बाद ब्‍याज और किश्‍तें देना बंद कर दे। ऐस में बैंक एक निश्‍चित समय सीमा के बाद ऐसे लोन को एनपीए घोषित कर देता है। मतलब बैंक इस लोन के वापसी के आसार कम मानता है।

लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने कहा था कि 'देश में 52 प्रतिशत कृषक परिवारों के कर्जदार होने का अनुमान है। इन परिवारों पर औसत बकाया 47,000 रुपये का है।' कृषि मंत्री ने कृषि परिवार के सर्वेक्षण आंकड़ों के आधार पर यह बात कही थी। उन्होंने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े का हवाला देते हुए कहा था, साल 2014 से 2016 के दौरान ऋण, दिवालियापन एवं अन्य कारणों से करीब 36 हजार किसानों एवं कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या की है।

  

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