सर्वे: 52 प्रतिशत किसान परिवारों पर कर्जे का बोझ, राहत बस इतनी कि साहूकार के चंगुल से छूटे

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सर्वे: 52 प्रतिशत किसान परिवारों पर कर्जे का बोझ, राहत बस इतनी कि साहूकार के चंगुल से छूटे

लखनऊ। देश के किसानों के आधे से ज्यादा परिवार कर्ज के बोझ तले दबे हैं। यह कर्ज उन्होंने खेती के लिए लिया है। बस राहत इतनी है कि किसान अब कर्ज लेने के लिए बैंकों और दूसरे संस्थागत स्रोतों का रुख करने लगे हैं। यह जानकारी हाल ही में हुए राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण बैंक (नाबार्ड) के सर्वे से मिली है। इसी सर्वे में दावा किया गया है कि भारतीय किसान की सालाना आय में बढ़ोतरी हुई है। वित्त-वर्ष 2015-16 के दौरान किसान परिवारों की आमदनी 1,07,702 पाई गई, जबकि 2012-13 में यह 77,977 रुपए थी।

52.5 प्रतिशत किसान परिवार कर्ज तले दबे

सर्वे के मुताबिक, देश के 47.4 प्रतिशत परिवारों पर किसी न किसी तरह का कर्ज पाया गया। इन कर्जदारों में 52.5 प्रतिशत परिवार किसानों के थे, बाकी 42.8 प्रतिशत कर्जदार गैर कृषि परिवार से थे। इन आंकड़ों से यह बात साफ हो गई कि कृषि क्षेत्र को वित्तीय सहायता की भारी आवश्यकता है। हालांकि सर्वेक्षण में इसे इस बात का संकेत भी माना गया कि कृषक परिवारों में पैसे बचाने और उनका निवेश करने की प्रवृत्ति है। सर्वे में देखा गया कि जैसे-जैसे कृषकों की जोत का आकार बढ़ा उनके कर्ज लेने की प्रवृत्ति भी बढ़ती गई।

देश के 47.4 प्रतिशत परिवारों पर किसी न किसी तरह का कर्ज है। इन कर्जदारों में 52.5 प्रतिशत परिवार किसानों के थे, बाकी 42.8 प्रतिशत कर्जदार गैर कृषि परिवार से थे।

तेलंगाना के किसानों ने सबसे ज्यादा कर्ज लिया, जम्मू में सबसे कम

अगर कर्ज लेने वाले किसान परिवारों पर राज्यवार दृष्टि से नजर डालें तो सर्वे के अनुसार तेलंगाना के किसानों ने सबसे ज्यादा 79.5 प्रतिशत कर्ज लिया और सबसे कम जम्मू-कश्मीर (26.7%) के किसानों ने कर्ज लिया। हैरानी की बात है कि गुजरात (27%) के किसान भी इसी के आसपास हैं। तेलंगाना के बाद आंध्र प्रदेश (77%), कर्नाटक (74%), अरुणाचल (69%), मणिपुर (61%), तमिलनाडु (60%), केरल (56%) और ओडिशा (54%) ऐसे प्रदेश हैं जिनके आधे से ज्यादा किसान परिवारों पर कर्ज बकाया है।

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सर्वे के अनुसार, अगर पूरे देश के ग्रामीण परिवारों के संदर्भ में देखें हर ग्रामीण परिवार पर औसतन 91,407 रुपए का कर्ज था। लेकिन अगर और विस्तार में जाएं तो पता चलता है कि किसानों पर कर्ज का बोझ ज्यादा था, लगभग उतना ही जितनी उनकी सालाना आय है यानि प्रति कृषक परिवार औसतन 1,04,602 रुपए। गैर कृषि परिवार पर 76,731 रुपए का कर्ज था।

साहूकारों की जगह लेने लगे बैंक

यह उल्लेखनीय है कि किसानों और कमोबेश ग्रामीण परिवारों ने बैंकों, स्वयं सहायता समूहों जैसे संस्थागत स्रोतों से कर्ज लेने को प्राथमिकता दी। इनसे लगभग 60 प्रतिशत किसान परिवारों ने कर्ज लिया। पर यह चिंता की बात है कि अभी भी 30 प्रतिशत किसानों ने गैर संस्थागत साधनों जैसे मित्रों, रिश्तेदारों, साहूकारों से कर्ज लिया। 10 प्रतिशत परिवार ऐसे थे जिन्होंने संस्थागत और गैर संस्थागत स्रोतों से कर्ज लिया।

इस कर्ज का विश्लेषण करने पर पाया गया कि जिन किसान परिवारों ने कर्ज लिया था उन्होंने कर्ज का 44 प्रतिशत भाग खेती और उससे जुड़ी दूसरी जरूरतों पर खर्च किया। इसका 19 प्रतिशत घरेलू जरूरतों और 12 प्रतिशत चिकित्सीय कारणों पर व्यय हुआ। सर्वे में एक दिलचस्प बात यह भी पाई गई कि महज 10.5 प्रतिशत कृषक परिवारों के पास ही वैध किसान क्रेडिट कार्ड थे।

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सर्वे में यह भी पता चला कि 88.1 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के बैंक खाते खुल गए हैं। पर इनमें से केवल 24 प्रतिशत ही तीन महीने में एक बार एटीएम कार्ड का इस्तेमाल करते हैं। इसी तरह 55 प्रतिशत कृषक परिवारों के पास एक बचत खाता है।

89 प्रतिशत किसानों के पास फोन, 56 प्रतिशत के पास टीवी

सर्वे में पाया गया कि किसान अब रेडियो नहीं टेलिविजन के जरिए बाहरी दुनिया से जुड़े रहते हैं। लगभग 4 प्रतिशत किसान परिवारों के घरों में रेडियो थे, जबकि लगभग 56 प्रतिशत किसानों के घरों में टेलिविजन देखा जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि 89.1 किसान परिवार मोबाइल का इस्तेमाल करने लगे हैं। इसी तरह 1.8 प्रतिशत किसानों के पास कंप्यूटर या लैपटॉप है। महज 2.9 प्रतिशत के पास चारपहिया वाहन है जबकि दोपहिया वाहन के रूप में स्कूटर या मोटरसाइकिल 37.9 प्रतिशत किसान परिवारों के पास है।

इस सर्वे के लिए 2015-16 को आधार वर्ष माना गया था। यह सर्वे देश के 29 राज्यों के 245 जिलों के 2016 गांवों में किया गया जिसमें 40327 परिवारों को शामिल किया गया था। नाबार्ड यह सर्वे हर तीसरे साल कराता है।

       

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