मोदी ने आंग सान सू की के सामने उठाया रोहिंग्‍या मुस्‍ल‍िमों का मुद्दा, समझिए पूरा मामला

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मोदी ने आंग सान सू की के सामने उठाया रोहिंग्‍या मुस्‍ल‍िमों का मुद्दा, समझिए पूरा मामलालाखों रोहंग्यिा मुस्लीम कर चुके हैं पलायन।

लखनऊ। म्यांमार दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सान सू की के साथ डेलिगेशन लेवल की वार्ता की। दोनों नेताओं ने वार्ता के बाद साझा प्रेस वार्ता को संबोधित किया। भारत और म्यांमार के बीच कई समझौते हुए। पीएम मोदी ने साझा प्रेसवार्ता में रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा भी उठाया। पीएम ने कहा कि भारत म्यांमार की चुनौतियों को समझता है और शांति के लिए हर संभव मदद करेगा।

शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे खोलता रहा है भारत

  • भारत में शरण पाने वालों में तिब्बती, बांग्लादेश के चकमा शरणार्थी, अफगानी और श्रीलंका के तमिल शामिल रहे हैं।
  • भारत में करीब एक लाख तिब्बतियों को शरण मिली हुई है। ये जमीन लीज पर ले सकते हैं और देश में प्राइवेट नौकरियां कर सकते हैं।
  • तमिल शरणार्थियों को खासकर तमिलनाडु में राज्य सरकार से सहायता मिली हुई है।
  • 2016 में मोदी सरकार ने अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को कई सुविधाएं दीं। इनमें संपत्ति खरीदने, ड्राइविंग लाइसेंस हासिल करने, आधार और पैन कार्ड बनवाने जैसी सुविधाएं शामिल हैं।

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रोहिंग्या शरणार्शियों को वापस भेजना चाहता है भारत

केंद्रीय गृहराज्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि UNHCR का पेपर होने के बावजूद रोहिंग्या शरणार्थियों को भारत में नहीं रहने दिया जा सकता। भारत रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने की प्रक्रिया में जुटा हुआ है। इसके पीछे के कुछ कारण ये हैं...

  • शरणार्थियों के आतंकी कनेक्शन की आशंका है।

रोहंगिया मुसलमान बांग्लादेश में घुसने का प्रयास कर रहे थे, गोलीबारी में उनकी नाव डूब गयी, 50 से ज्यादा लोग मारे गए, जिसमें मासूम बच्चे और महिलाओं की संख्या ज्यादा थी।

  • ये शरणार्थी न केवल भारतीय नागरिकों के अधिकार पर अतिक्रमण कर रहे हैं बल्कि सुरक्षा के लिए भी चुनौती हैं।
  • रोहिंग्या शरणार्थियों की वजह से सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक समस्याएं खड़ी हो सकती हैं।
  • इसके पीछे की एक सोच यह भी है कि भारत के जनसांख्यिकीय पैटर्न सुरक्षित रखा जाए।

शरण देने से इनकार कर सकता है भारत?

रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजे जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। इस मामले की अगली सुनवाई 11 सितंबर को होनी है। अब सवाल यह है कि क्या भारत रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देने से इनकार कर सकता है?

भारत में कोई शरणार्थी कानून नहीं

भारत ने शरणार्थियों को लेकर हुई संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संधी 1951 पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इसके अलावा 1967 में लाए गए इसके प्रोटोकॉल का भी हिस्सा नहीं है। भारत अनौपचारिक और अलग-अलग मामलों के हिसाब से शरणार्थियों के आवेदन पर फैसला लेता रहा है। भारत की तरफ से शरण की अनुमति मिलने के बाद शरणार्थियों को लॉन्ग टर्म वीजा (एलटीवी) दिया जाता है। इसे हर साल रीन्यू किया जाता है। इसकी मदद से शरणार्थी रोजगार, बैंकिंग और शिक्षा जैसी सुविधाएं हासिल करते हैं।

रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने में यह है समस्या: भारत ने कहा है कि रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने के संदर्भ में वह बांग्लादेश और म्यांमार से बात कर रहा है। म्यांमार के कानून के तहत रोहिंग्या उनके नागरिक नहीं हैं। ऐसे में उनके पास लौटने के लिए कोई जगह ही नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र ने भारत से 'परंपरागत कानून' के पालन का निवेदन किया: शरणार्थियों को वापस नहीं भेजने का संयुक्त राष्ट्र का सिद्धांत सभी देशों पर लागू होता है। चाहे उन देशों ने संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी संधि पर हस्ताक्षर किए हों या नहीं। यह परंपरागत कानून कहता है कि शरणार्थियों को उन जगहों पर जबर्दस्ती नहीं भेजा जा सकता जहां उनकी जान को खतरा है।

यह है रोहिंग्या शरणार्थियों की स्थिति

40000 रोहिंग्या शरणार्थी जम्मू, हैदराबाद, दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा, यूपी और राजस्थान में शरण लिए हुए हैं। इनमें 17000 के पास UNHCR के कागजात हैं।

  • 1.23 लाख रोहिंग्या बांग्लादेश में शरण लिए हुए हैं।
  • 10 लाख रोहिंग्या अभी म्यांमार में मौजूद हैं।
  • म्यांमार में रोहिंग्या एक वर्जित शब्द

म्यांमार में रोहिंग्या को एक वर्जित शब्द समझा जाता है। म्यांमार सरकार राखिन प्रांत में रहने वाले मुस्लिम अल्पसंख्यक रोहिंग्या की पहचान को खत्म करने के लिए उन्हें बांग्लादेश से आया हुआ बंगाली मानती है। म्यांमार के 1982 नागरिकता कानून के अंतर्गत रोहिंग्या को 135 नृजातीय समूहों में भी शामिल नहीं किया गया है।

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रोहिंग्या मुसलमानों का बुद्ध समुदाय लोग विरोध करते हैं।

भारत-चीन के लिए अहम है म्यांमार

म्‍यांमार को भारत के लिए दक्षिण-पूर्वी एशिया का प्रवेश द्वार माना जाता है. चीन के लिए भी यह रणनीतिक अहमियत रखता है। ऐसे में भारत ही नहीं, बल्कि चीन भी यहां अपना दायरा बढ़ाने में जुटा हुआ है. म्‍यांमार चीन की वन बेल्‍ट वन रोड़ परियोजना का एक अहम पड़ाव है। दोनों देश चाहेंगे कि म्‍यांमार उनके साथ खड़ा हो।

चीन के बाद म्यांमार पहुंचे हैं मोदी

मोदी दो देशों की अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव पर म्यांमार पहुंचे हैं। वह चीन में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शरीक होने के बाद यहां आए हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने क्याव द्वारा मोदी का स्वागत की जाने की कुछ तस्वीरें ट्वीट की हैं। उन्होंने एक ट्वीट कर कहा, 'एक्ट ईस्ट और पड़ोसी देश की नीति। पीएम नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रपति यू हतिन क्याव से मुलाकात की, ऐतिहासिक संबंध मजबूत करने के कदमों पर चर्चा की।' दोनों नेताओं को 'गार्ड ऑफ ऑनर' भी दिया गया। बता दें कि म्यांमार के राखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों के साथ जातीय हिंसा की घटनाओं में तेजी आने के बीच प्रधानमंत्री की यह यात्रा हो रही है।

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