विश्व माहवारी दिवस विशेष : उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की लड़कियों ने पहली बार माहवारी पर खुलकर की बात

Shrinkhala PandeyShrinkhala Pandey   28 May 2018 5:41 AM GMT

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"दीदी मुझे जब पहली बार पीरियड हुआ तो मुझे लगा कि कोई बीमारी हो गई है, मैं बहुत तेज तेज से रोने लगी, मुझे समझ नहीं आ रहा था फिर मैंने अपने दीदी को बताया और उन्होंने मुझे समझाया । उसके बाद मुझे पता चला कि ये हर लड़की को होता है।" ये बात पिथौरागढ़ जिले की जीजीआईसी इंटर कालेज की तनुजा ने बताया।

ये लड़कियां मुखर हो पाईं गांव कनेक्शन व जिला प्रशासन पिथौरागढ़ की पहल से। पिथौरागढ़ जिले की सीडीओ वंदना व डीएम सी रविशंकर ने ये सराहनीय कदम उठाया कि वहां की लड़कियां भी माहवारी व उससे जुड़ी परेशानियों के बारे में खुलकर बात कर पाएं। 12 से 21 तक उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के अलग-अलग ब्लॉक के जीजीआईसी स्कूलों में चलने वाली इस वर्कशाप की शुरूआत पहले दिन पिथौरागढ़ व मुन्नारकोट से हुईं जहां करीब 500 से ज्यादा बच्चियों ने माहवारी पर खुलकर बात की।

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पिथौरागढ़ जिले के मुख्य विकास अधिकारी वंदना ने बताया, "हमारे यहां के बच्चियों को बहुत जरूरत है इस बारे में बात करने की, भ्रांतियों को दूर करने की। इसलिए ऐसी पहल यहां के लिए बहुत जरूरी है। स्वास्थ्य के मामले में उत्तराखंड की स्थिति सुधारने की जरूरत है। इसलिए पहली बार ये प्रयास किया गया है। हम स्कूल की बच्चियों से शुरूआत कर रहे हैं क्योंकि उनको सबसे ज्यादा जरूरत है।" उत्तराखंड राज्य स्वास्थ्य के मामले में अभी भी काफी पीछे है। हाल ही में आई भारत सरकार की रिपोर्ट में देश भर में ये 15वें नम्बर पर था। इसका मुख्य कारण यहां जागरूकता व सुविधाओं की कमी का होना है।

लड़कियों ने कई भ्रांतियों को लेकर सवाल किए, जिसे हमारी ट्रेनर रमा तिवारी ने दूर किया। कक्षा सात की मोनिका ने पूछा कि दादी कहती हैं कि सूती कपड़ा इस्तेमाल करो पैड बेकार होता है और इन दिनों सबसे अलग बैठा करो छूत होता है। आचार, दूध, दही न छुओ वो खराब हो जाता है। हमें लगता है जैसे हम सबसे अलग हो गए हैं।

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माहवारी पर आंकड़ें

एक आंकड़े के मुताबिक़ देशभर में करीब 35 करोड़ महिलाएं उस उम्र में हैं, जब उन्हें माहवारी होती है। लेकिन इनमें से करोड़ों महिलाएं इस अवधि को सुविधाजनक और सम्मानजनक तरीके से नहीं गुजार पातीं। एक शोध के अनुसार करीब 71 फीसदी महिलाओं को प्रथम मासिक स्राव से पहले मासिक धर्म के बारे में जानकारी ही नहीं होती। करीब 70 फ़ीसदी महिलाओं की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं होती कि सेनिटरी नेपकिन खरीद पाएं, जिसकी वजह से वे कपड़े इस्तेमाल करती हैं।

संयुक्त राष्ट्र के एक सर्वे के दौरान कई देशों में जब लड़कियों से बात की गई तो उनमें से एक तिहाई ने बताया कि मासिक धर्म शुरू होने से पहले उन्हें इस बारे में बताया ही नहीं गया। इसलिए जब अचानक शुरू हुआ तो समझ में ही नहीं आ रहा था कि वे क्या करें? आज भी हमारे समाज में माहवारी एक ऐसा विषय बना हुआ है। जिस पर लड़कियां न तो खुलकर बात कर पाती हैं और न ही हमारे समाज में ऐसे विषयों पर बात करने की इज़ाजत है।

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स्कूल की एक शिक्षिका सरोज सिंह ने बताया, "यहां बहुत दिक्कतें हैं दस प्रतिशत से कम ही लड़कियां पैड का इस्तेमाल करती हैं बाकी टेरीकाट, साटन जो भी कपड़ा मिलता है उसका इस्तेमाल करती हैं।" इसका कारण बताते हुए उन्होंने आगे कहा कि यहां पांच रुपए की फीस देना बच्चियों के लिए मुश्किल होता है तो पैड खरीदना उनके लिए कितना महंगा है ये हम खुद सोच सकते हैं। हम अपनी तरफ से कोशिश करते हैं लेकिन हमारे लिए ये मुमकिन नहीं है।

लड़कियों ने पूछे स्वास्थ्य से जुड़े सवाल।

माताओं की कम जानकारी भी बच्चियों के लिए परेशानी

कक्षा आठ की प्रियंका ने बताया कि मुझे अचानक माहवारी आनी बंद हो गई दो महीने नहीं आई, मैंने जब अपनी मां को बताया तो उन्होंने मुझे मारा कहा कि क्या करके आई हूं इसलिए भेजती थी बाहर पढ़ने। मुझे खाना भी नहीं दिया, बहुत बुरी तरह से पिटाई की। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वो मुझे मार क्यूं रही हैं। जब डाक्टर के पास ले गईं तो उन्होनें कहा कि कमजोरी व खानपान सही न होने की वजह से ऐसा हुआ है। बाकी कोई बात नहीं है। उस समय तो नहीं लेकिन बाद में मुझे पता चला कि आखिर मेरी मां को क्या लगा था।

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पैड के निस्तारण के तरीके भी बताए गए

वर्कशाप में लडकियों को बताया गया कि पैड को या तो डस्टबिन में फेंके या गड्ढा खोदकर दबा दें या फिर उसे जला दें। ऐसे ही खुले में फेंकने से इससे इंफेक्शन भी हो सकता है। उन्हें एक नई मशीन इंसनीलेटर के बारे में बताया गया जिसमें इस्तेमाल किया हुआ पैड डालने से वो जल जाता है और इससे प्रदूषण भी नहीं होता है।

खानपान का ध्यान बहुत जरूरी

किशोरियों को ऐसे समय में खानपान का ध्यान रखना चाहिए। दूध, हरी सब्जी, दाल, फल खाएं जिससे आपके शरीर में दोबारा खून बन सके। वरना माहवारी के दौरान एक बार में लड़की के शरीर से 8 से 10 मिली खून निकल जाता है। ये कम या ज्यादा भी हो सकता है। इसलिए लड़कियों का खानपान पौष्टिक होना चाहिए।

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