कागज पर हैं सिर्फ महिला प्रधान, पंचायत का पूरा कामकाज देखते हैं प्रधानपति

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कागज पर हैं सिर्फ महिला प्रधान, पंचायत का पूरा  कामकाज देखते हैं प्रधानपतिअपने पति के साथ प्रमिला सिंह।

गौहर आसिफ

साल 2015 के पंचायत चुनाव में सीट महिला आरक्षित होने पर प्रमिला सिंह इस सीट से फिर उम्मीदवार बनीं और जीत हासिल की। यह दूसरी बात है कि दो सत्रों में सरपंच रहने के बाद भी उनको एक सरपंच के तौर पर काम करने का अधिकार नहीं है। पंचायत का सारा काम परिवार के पुरुषों अथवा उनके पति के द्वारा ही किया जाता है।

यह कहानी है प्रमिला सिंह की, प्रमिला सिंह सूरजपुर ज़िले के ब्लॉक सूरजपुर के लटोरी ग्राम पंचायत की सरपंच हैं। सरपंच के तौर पर यह उनका दूसरा कार्यकाल है। प्रमिला का परिवार राजनैतिक पृष्ठभूमि में रहा है। प्रमिला सिंह पहली बार 2004-05 के पंचायत चुनाव में सरपंच चुनी गईं थीं। 2010 के चुनाव में प्रमिला के पति मिथलेश सिंह के भाई ने सरपंच के पद पर चुनाव लड़ा था मगर उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।

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प्रमिला सिंह ने प्रौढ़ शिक्षा के माध्यम से पांचवी तक की शिक्षा हासिल की है जबकि उनके पति आठवीं पास हैं और सरकारी नौकरी में कार्यरत हैं। वह अपने काम के साथ ही पंचायत के काम भी देखते हैं। वह स्वयं भी सरपंच की भूमिका में खुद को फिट नहीं मानती हैं लेकिन महिला सीट होने के नाते उनको सरपंच बनने का अवसर मिला। फिर भी सरपंच की ज़िम्मेदारियों और कामों के बारे में न तो उनका कोई क्षमता संवर्द्धन किया गया और न ही उन्हें काम करने और निर्णय लेने का अवसर दिया गया

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प्रमिला के परिवार ने बताया कि सरपंचों के प्रशिक्षण का कोई विधान नहीं है। हां, प्रमिला पंचायत की बैठकों में नियमित रूप से हिस्सा लेती हैं। अधिकारियों से मिलने के लिए भी प्रमिला को अपने पति की मदद लेनी पड़़ती है क्योंकि उनके पति व परिवार का मानना है कि वह कम पढ़ी होने के कारण वह न तो पंचायत के काम कर पाएंगी और न ही कहीं बात कर पाएंगी। प्रमिला के पति कमलेश सिंह का मानना है कि पंचायत के कामों के लिए शिक्षित होने से ज़्यादा ज़रूरी है।

उन्होंने बताया कि ‘‘पंचायत में 20 वार्ड पंच हैं, उनमें कुछ पढ़े लिखे भी हैं। लेकिन कोई भी पंचायत के कामों के बारे में सलाह नहीं देता। जाहिर है उनके पास सोच और समझ ही नहीं है तभी तो वह बता नहीं पाते।’’

प्रमिला से बातचीत के दौरान यह देखा गया कि उनके पति व परिवार के पुरुष उनको बात करने का मौका ही नहीं दे रहे थे। उनके पति का कहना था कि ‘‘उनकी पत्नी एकदम निरक्षर है और उनको किसी काम की समझ नहीं है। लटोरी पंचायत की सीट महिला सीट हो गयी इसलिए उन्हें अपनी पत्नी को चुनाव में खड़ा करके सरपंच बनाना पड़ा।’’

प्रमिला के कार्यकाल में पंचायत के विकास के लिए किए गए कामों का ब्यौरा भी उनके पति ने ही दिया। पंचायत में एक व्यवसाय परिसर के साथ-साथ 300 मीटर लंबी सीसी रोड बनायी गयी। नरेगा के तहत पंचायत में पानी की निकासी के लिए नालियों का निर्माण कराया गया है। अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि गिनाते हुए सरपंच पति कमलेश सिंह कहते हैं, ‘‘यहां नागरिकों की सुविधा के लिए ग्राम पंचायत लटोरी को ज़िला सरगुजा के राजस्व अनुभाग में शामिल करने का प्रस्ताव हमारे ज़रिए दिया गया है।”

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इससे लोगों को राजकीय कामों के लिए बहुत दूर नहीं जाना पड़ेगा। अभी हमें तहसील से जुड़े कामों के लिए सूरजपुर ब्लॉक जाना पड़ता है जो यहां से तकरीबन 30 किलोमीटर की दूरी पर है।’’ इसके अलावा सामुदायिक भवन का निर्माण पूर्व सरपंच के कार्यकाल में नहीं हो पाया था जो मौजूदा सरपंच के कार्यकाल में संभव हो सका। पंचायत में स्वास्थ्य केंद्र के निर्माण के साथ-साथ चार आंगनबाड़ी केंद्रों का निर्माण सरपंच पति की देख रेख में हुआ। प्रमिला सिंह के पहले कार्यकाल के दौरान पंचायत में मिडिल स्कूल का निर्माण हुआ था। प्रमिला सिंह के काम काज के बारे में गांव की एक स्थानीय निवासी देवंती देवी अपनी राय रखते हुए कहती हैं, ‘‘सरपंच सभाओं में तो आती जाती है, लेकिन पंचायत में सारा कामकाज उनके पति ही देखते हैं।’’

एक ओर सरपंच प्रमिला सिंह के पति कमलेश सिंह का यह कहना है कि पंचायती राज चुनाव में शिक्षा का होना उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना सोच का होना ज़रूरी है। इसलिए वह पंचायती चुनाव में शैक्षिक योग्यता के नियम के बिल्कुल खिलाफ हैं। इसके विपरीत उनकी पत्नी दो बार सरपंच का चुनाव जीत चुकी हैं।

मगर पितृसत्तात्मक परंपरा के चलते वह सिर्फ नाम की सरपंच बनकर रह गयी हैं। लटोरी की सरपंच प्रमिला सिंह इस बात का उदाहरण हैं कि नई नीतियों के स्थान पर तो अभी महिलाओं को उनके पंचायत में सक्रिय तौर काम करने का अधिकार दिलाने की ज़रूरत है। नई नीतियां तो उनके सशक्तिकरण की ओर बढ़े कदमों को वापस घरों में कैद कर लेंगी।

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प्रमिला जो अभी महिला सीट के कारण सरपंच बनीं हैं, भले ही उनके पति उनको काम करने का मौका नहीं दे रहे हैं, शैक्षिक योग्यता की सीमा बढ़ने से प्रमिला का घर से बाहर निकल कर बैठकों में बैठने का यह मौका भी छिन जाएगा जिससे यह उम्मीद बंधी है कि वह कभी सशक्त हो सकें और शासन के काम काज में भाग लेकर महिलाओं को बराबरी के स्तर पर ला सकें।

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