सरदार सरोवर बांध और पुर्नवास का दर्द : गुजरात के इस गांव को 30 साल से मुआवजे का इंतजार 

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सरदार सरोवर बांध और पुर्नवास का दर्द : गुजरात के इस गांव को 30 साल से मुआवजे का इंतजार गुजरात में विस्थापित गाँव के लोगों की कहानी।

‘नर्मदा के साथ-साथ’ कड़ी की ये पांचवीं खबर है। कारवां बढ़ता जा रहा है। कुछ नई बातें भी सामने अा रही हैं। गुजरात से अमित की विशेष रिपोर्ट

अभी तक हम मध्यप्रदेश में नर्मदा के साथ-साथ चल रहे थे। यह कड़ी गुजरात के बारे में है। एक मूलभूत जानकारी यहाँ दोहरानी जरूरी है। सरदार सरोवर बाँध बनने से मध्यप्रदेश में 192 गाँव, 1 क़स्बा, महाराष्ट्र में 33 गाँव और गुजरात के 19 गाँव डूब प्रभावित हुए हैं। क्रमानुसार हमें महाराष्ट्र जाना चाहिेए था। लेकिन, पहला कारण कि महाराष्ट्र में पुनर्वास और मुआवजे को लेकर ऐसा रोष नहीं है, दूसरा कारण, समय और संसाधन के अभाव में सीधे गुजरात जाने का निर्णय लिया गया।


अभी तक हम मध्यप्रदेश के उन पीड़ितों से मिले जो बाँध के कारण (अप-स्ट्रीम) बढ़े हुए जल-स्तर से डूब रहे हैं, या डूब गए हैं। गुजरात में हम उन गाँवों में गए जहाँ के गाँव बाँध के उस पार (डाउन-स्ट्रीम में) हैं, जहाँ के लोग गाँव डूबने के अलावा, अन्य समस्याओं से भी पीड़ित थे।

नवगाँव: गुजराती में नवागाम, वडोदरा से एक-सौ किलोमीटर दूर

इसकी पहचान आपने आप में सरदार सरोवर बाँध से ही है क्योंकि इसी गाँव में सबसे पहले बाँध प्रस्तावित था लेकिन तकनीकी कारणों से बाँध अब कुछ किलोमीटर पीछे बनाया गया है। फिर भी यह गाँव और बाँध की पहचान एक-दूसरे पर निर्भर है। यानि ग्राउंड ज़ीरो! चूंकि यह ग्राउंड ज़ीरो है तो हमने अपेक्षाकृत यहाँ अधिक लोगों से बात कर उनकी समस्याएं जानने की कोशिश की। कुल छः गाँव अब इस लड़ाई को लड़ रहे हैं। जिसमें केवड़िया, बागड़िया, लिमड़ी, नवगाँव, गोरागाँव, कोठी। यह तड़वी जनजाति बाहुल्य इलाका है। ऐसा नहीं है कि पूरे के पूरे गाँवों को कुछ नहीं मिला हो।

धीरुभाई तड़वी

लिमड़े-नवगाँव 'डैम-साइट', छोटी सी दुकान चलाने वाले 75 साल के धीरूभाई मुझ पर चिल्लाते हुए कहते हैं, तुम भी उधर जाकर फंस जाओगे और कहोगे कि हमें सब कुछ मिल चुका है और हम झूठ बोल रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने जो कहा, उन शब्दों का दोहराव अन्यों ने किया है।

धीरुभाई तड़वी।

अंबाबेन पूर्णाबाई: भूतपूर्ण सरपंच, नवागाँव

ये मज़दूरी करती हैं। इन्होंने मुझे जो भी बात बताई, वो तरह गुजराती भाषा में थी। मैं हर शब्द नहीं समझ सकता था लेकिन शब्दों का लब्बोलुवाब कुछ यूँ था। अंबाबेन अपने घर (झोपड़ी) के सामने निकली चमचमाती सड़क, जो बाँध पर जाकर समाप्त होती है, की ओर इशारा करके बताती हैं कि उनकी ज़मीन इसी रास्ते में चली गई। पिछले बीस सालों से लड़ रही हैं। ज़मीन के बदले कोई भी वस्तु नहीं दी गई। फिलहाल मज़दूरी करके गुज़ारा होता है। अपनी लड़ाई के लिए महीने में कई दफ़ा तीन-तीन बार (राजधानी) गांधीनगर जाना हुआ लेकिन प्रशासन या सरकार सुनने को तैयार नहीं। इनके पास अब सिर्फ इतनी ज़मीन बची है जिसमें घर के खाने लायक ज्वार, तुर जैसी फंसलें हो पाती हैं।

गुजरात के विस्थापित गाँव की रहने वाली अंबाबेन की जमीन का अब तक उन्हें कोई मुआवजा नहीं मिला।

वर्सनभाई मंसूरभाई तड़वी

25 साल पहले गाँव डूब गया, यह 1989 के पहले की बात है, जब पुराने गाँव को कथखड़ी के नाम से जाना जाता था। अब नामो-निशान नहीं है। डूब में जो ज़मीन गई है उसके बदले ज़मीन नहीं दी गई है। तीस साल में पूरे गाँव में सिर्फ दो लोग सरकारी नौकरी में हैं। अब तो पीने का पानी का भी ठिकाना नहीं है। वर्सनभाई अपने बातों का याद करते हुए बताते हैं कि सरकारी लोग आते और कहते कि आप लोग अपने पसंद की जगह का चुनाव कर लीजिए, हम आपको वहाँ सारी सुविधाएं देंगे। तीस सालों में क्या सुविधाएं दी हैं, आप स्वयं आकर देखिए। इनका नया गाँव बाँध से करीब 16 किमी था, शाम को हम इनके गाँव पहुंचे।

पिछली कड़ी में हमने मध्यप्रदेश के बड़वानी जनपद में परिवार को विखण्डित होने/करने के किस्से सुने थे। अब यहाँ देखिए। कथखड़ी गाँव के वासियों को ग्यारह (11) जगह में बसाया गया है। रुकिए आगे और पढ़िए। इनके पड़ोसी गाँव गदेर की इकत्तीस (31) जगह पुनर्वसाहट की गई है। सरदार सरोवर से कच्छ तक पानी पहुँच गया, हमें खुशी है। स्टेचू ऑफ लिबर्टी बना रहे हैं आप, हमें कोई आपत्ति नहीं। आप ऐसे दस और बनाइए लेकिन जो लोग इसमें भोग (आहुति) दे रहे हैं, उनका तो ख्याल रखिए।


यहाँ की आबादी को चिमड़िया गाँव में बसाया गया है। प्रमुख रुप से यहाँ कथखड़ी गाँव का पुनर्वास किया गया है इसके अलावा, 4 अन्य गाँवों के लोगों को इसी जगह बसाया गया है। अब इन लोगों की समस्याओं को बिंदुओं में समझिए।

-तीस सालों में इस पुनर्वसाहट में एक भी शौचालय नहीं है। पूरा गाँव खुले में जाता है। परिवारों की संख्या, करीब 5 दर्जन। फिर से पढ़िए, गुजरात के इस गाँव में शौचालय नहीं हैं।

-इस गाँव में पानी के लिए एक टंकी बनाई गई है, जो जब से बनी है, तब से भरी नहीं गई। 16 सालों का अंतहीन सिलसिला चला आ रहा है।

-इसके अलावा इन ग्रामीणों की ज़मीन सरदार सरोवर बाँध के ज़ीरो प्वॉइंट से निकली मुख्य नहर में जा चुकी है। यह मुख्य नहर 460 किलोमीटर गुजरात को पार करते हुए राजस्थान के कुछ भागों तक पानी पहुँचाती है। कितना अच्छा लगता है यह सब पढ़ते हुए ना... बाँधों से नहरें निकालीं जाती हैं, सिचांई होती है... लेकिन यह भी पढ़िए कि जिनकी ज़मीनों पर इस नहर का निर्माण किया गया, उन्हें पता ही नहीं है कि उन्हें मुआवजा कब दिया गया है। उनकी छोड़िए, आरटीआई में राज्य सरकार भी यह जानकारी नहीं दे पाई कि कब मुआवजा दिया गया, कितना दिया गया, किसे दिया गया।

नर्मदा के किनारे की आबादी को चमड़िया गाँव में बसाया गया।

बात इतने पर ही रुक जाती तब भी ठीक था लेकिन यहाँ आगे पढ़िए... जिन लोगों की ज़मीन पर इस नहर का निर्माण किया गया है, उन्हें सिचाईं के लिए पानी लेने की अनुमति नहीं है। अगर ग्रामीण ऐसा करते हैं तो उनके पंपिग-सेट आदि नहर की सुरक्षा में लगे सुरक्षाकर्मी उठा ले जाते हैं। यह तो अगले चरण की बात है। इससे पहले की सुनिए... इस नहर की बनावट ऐसी है कि कोई पानी भी नहीं पी सकता, इतने पुख़्ता और खतरनाक तरीके से बनाया गया है इस नहर को... मैं करीब 12-15 किलोमीटर इस विशालकाय नहर के साथ-साथ चला, सड़क एकदम दुरुस्त थी, (सच तो यह है कि सड़कें मुझे कहीं ख़राब दिखी भी नहीं) लेकिन इतनी दूरी तय करने के बाद भी मुझे कहीं भी, कोई भी ऐसा स्थान नहीं (घाट बगैरह) दिखा, जहाँ आकर ग्रामीण इस पानी का उपयोग कर सकें। इसके बावजूद भी ग्रामीण, इस बात को कहने में जरा भी नहीं झिझकते कि वे बाँधों के विरोध में नहीं हैं। बाँध से बिजली बनती हैं, नहरें निकलती हैं, सिंचाई होती है, विकास होता है।

यहाँ के ग्रामीणों का गाँव नर्मदा में ऐसा जलमग्न हैं कि जब हमने वहाँ जाने की इच्छा जताई तो बताया गया कि कम से कम दो-तीन लगेंगे सिर्फ एक गाँव तक जाने में और जाने का साधन सिर्फ नाव है। यह गाँव आज पानी के करीब दो-सौ फीट नीचे जलसमाधि ले चुका है। गाँव की पहचान सिर्फ एक पेड़ से होती है।

प्रभुभाई भैजीभाई तड़वी

नवगाँव, 12 एकड़ ज़मीन डूब गया, करीब 35 साल पहले यह सब चल गया। इसके बदले एक भी पैसा नहीं दिया, ना ज़मीन दी गई। कहते हैं कि सरकार ने हमने गद्दारी की है। हम यहाँ मकान बनाने की बात करते हैं तो स्थानीय प्रशासन हमसे मना करता है। हम सरकार से साफ़ बोलते हैं तो हम कहीं नहीं जाने वाले। इसके अलावा, 30 साल पहले ही प्रभुभाई की करीब 9 एकड़ ज़मीन 4,250 रुपए प्रति एकड़ की दर से ज़मीन ली गई है । अगर इन्हें मौका मिले तो गुजरात के मुख्यमंत्री से तीन मांगे कुछ यूं होंगी-

  • -19 गाँव की मांगे ही मेरी मांग हैं
  • -जो ज़मीन हमारी गई है, उतनी ज़मीन दी जाए
  • -हमें जहाँ भी बसाया जाए, वहाँ बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं हों

संजय कुमार रमेश कुमार तड़वी: बाँध से निकलने वाली नहर के लिए ज़मीन ली गई। तब से आज तक कुछ नहीं दिया। 14 एकड़ ज़मीन दी, नहर नहीं बनाई, इसके अलावा, 7 एकड़ ज़मीन "श्रेष्ठ भारत भवन" बनाने में चली गई है। हमने कब्जा नहीं छोड़ा है। सरकार कहती है कि हम आपके दादा को ज़मीन का मुआवजा दे चुके हैं लेकिन जब उनसे पूछा कि सबूत दिखाईए तो सरकार के पास कुछ दिखाने के लिए नहीं है। अब 3-4 एकड़ ज़मीन पर 22-24 सदस्यों का परिवार निर्भर है।

दिनेश भाई: सन 1961-62 में ज़मीन गई, पिछले तीन साल से सरकार कह रही है कि आपको ज़मीन के बदले ज़मीन दी जाएगी, लेकिन कोई कुछ देता नहीं है। हमें, पूरे गाँव वालों को इन बाँधों से कोई आपत्ति नहीं है, स्टेचू ऑफ यूनिटी से कोई आपत्ति नहीं, विकास से कोई आपत्ति नहीं लेकिन हमारी ज़मीनें गईं हैं तो हमें भी तो कुछ दे दो। हमारी कुल 55 एकड़ ज़मीन गई है। अब हम भूमिहीन हो चुके है। बिल्कुल भूमिहीन।

प्रभुभाई।

मुख्यमंत्री से तीन मांगे: जितनी ज़मीन गई है, उतनी ज़मीन चाहिए

-परिवार में जो पढ़े लिखे हैं, उन्हें सरकारी नौकरी

-जहाँ हमें बसाया जाए, उस जगह हमें प्रोजेक्ट इफेक्टेट पर्सन को मिलने वाली सुविधाएं मिलनी चाहिए।

नहर के लिए ज़मीन केलनियां गाँव के लोगों के की भी गई है लेकिन इसके साथ भी वही कहानी है। मुआवजा कब दिया गया, किसको दिया गया, कितना दिया गया, पता ही नहीं है। बस दिया गया है, ऐसा सरकार का दावा है।

केवड़िया के ग्रामीणों ने मुआवजे के लिए एक साल से ज्यादा समय तक अनशन किया जिसे 17 सिंतबर को नरेंद्र मोदी के आने से पहले की रात को हटा दिया गया।

केलनियां में 62 घरों में कोई शौचालय नहीं है। केलिनयां, गुजरात के नर्मदा जिले में हैं। गुजरात नरेंद्र मोदी जी का गृह-राज्य है। नरेंद्र मोदी भारत सरकार के प्रधानमंत्री हैं। भारत सरकार पिछले ढाई साल से स्वच्छ भारत अभियान चला रही है। इस अभियान में बापू की 150वीं जयंती तक, 2019 तक भारत को स्वच्छ बनाना है। गुजरात बापू की भी जन्म-स्थली है।

नोट: श्रेष्ठ भारत भवन की आधारशिला रखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने अधिनस्थों से कहा था कि यह जिला/इलाका (नर्मदा) खुले में शौच से मुक्त होना चाहिए, स्वच्छ होना चाहिए।

तीन मांगें।

पहला भाग यहां पढ़ें- नर्मदा के साथ-साथ : पहला दिन, कहानी जलुद की, जहाँ सौ-फीसदी पुनर्वास हो गया है

दूसरा भाग - नर्मदा के साथ-साथ : दूसरा दिन धरमपुरी, एक मात्र डूब प्रभावित क़स्बा

तीसरा भाग - नर्मदा के साथ-साथ भाग-3 : सांयकालीन, “हरसूद था, निसरपुर हो रहा है ‘था’

नर्मदा के साथ-साथ भाग- 4 : घर छोड़ना, गाँव छोड़ना, अपना ही घर तोड़ना फिर ईंटों को ढोना

        

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