देश के 52.5% किसानों पर है कर्ज, अगर 2019 में हुआ माफ तो भी नहीं मिलेगी राहत

कर्ज माफी से किसानों का संकट खत्‍म होते नहीं दिखता। इसके लिए सरकारों को योजनाबद्ध तरीके से किसानों की आय बढ़ाने के लिए काम करना होगा।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   20 Dec 2018 12:10 PM GMT

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देश के 52.5% किसानों पर है कर्ज, अगर 2019 में हुआ माफ तो भी नहीं मिलेगी राहत

लखनऊ। पांच राज्‍यों के विधानसभा चुनाव खत्‍म होने के बाद कांग्रेस ने कर्ज माफी की प्रक्रिया शुरू कर दी है। कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी भी किसानों को बार-बार यह संदेश दे रहे हैं कि तीन राज्‍यों में उनका कर्ज माफ होने जा रहा है और आगे भी कांग्रेस इस मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर 2019 के लोकसभा चुनाव में कर्जमाफी मुद्दा बना तो देश में कितने किसान परिवार हैं जो कर्जदार हैं और कितनों को इसका लाभ मिलेगा। एक प्रश्‍न यह भी है कि क्‍या कर्जमाफी किसानों की समस्‍याओं का पूर्ण रूप से हल है? अगर आंकड़ों और स्‍थ‍ितियों को देखें तो ये संभव नहीं लगता।

अगस्त 2018 में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में 10.07 करोड़ किसानों में से 52.5 प्रतिशत किसान कर्जे में दबे हुए हैं। हर कर्जदार किसान पर करीब 1.046 लाख रुपये का कर्ज है। ऐसे में इस बात को समझा जा सकता है कि कर्जमाफी इतना बड़ा मुद्दा बनकर क्‍यों उभरा है।

किसानों के कर्ज को समझने से पहले इस बात को समझना होगा कि किसानों पर किस-किस तरह का कर्ज होता है। भारत के किसानों पर केवल बैंकों या वित्तीय संस्थाओं का ही कर्जा नहीं है। उन पर गैर-संस्थागत स्रोतों (धन उधारदाताओं, परिवार और दोस्तों) से भी भारी कर्जा है। नेशनल सेम्पल सर्वे आर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) के सर्वेक्षण (31 मार्च 2017 तक की स्‍थिति) से पता चलता है कि किसानों के कुल कर्ज का 58.4 प्रतिशत संस्थागत ऋण है और 41.6 प्रतिशत ऋण गैर-संस्थागत स्रोतों से लिया गया है।

इसी कड़ी में राज्यसभा में 11 अगस्त 2017 को कृषि एवं किसान मंत्रालय ने बताया था कि किसानों पर 10.657 लाख करोड़ रुपये का संस्थागत ऋण है। ऐसे में अगर एनएसएसओ के सर्वेक्षण से अनुपात निकालें तो किसानों ने करीब 7.6 लाख करोड़ रुपए का गैर-संस्थागत स्रोतों से ऋण लिया है।

भारत में 10.07 करोड़ किसानों में से 52.5 प्रतिशत किसान कर्जे में दबे हुए हैं।

सबसे बड़ी बात ये है कि गैर-संस्थागत स्रोतों से लिए गए ऋण पर कोई चर्चा नहीं होती। अब तक सरकारों द्वारा किसानों के संस्‍थागत ऋण को माफ किया जाता रहा है। उसमें भी फसली ऋण (बीज, यूरिया, खेती के खर्चे) को माफ किया जाता है। यानी किसानों द्वार लिए गए सावधि ऋण (खेती के उपकरण, पंप, ट्रैक्‍टर और कृषि संसाधनों को मजबूत करने को लिया गया कर्ज) पर भी कोई चर्चा नहीं होती। ऐसे में 2019 में अगर कर्जमाफी मुद्दा बना तो किसानों के 10.657 लाख करोड़ रुपये का संस्थागत ऋण भी पूरी तरह से माफ होते नहीं दिखता। बल्‍कि इसका एक अंश भर ही कर्जमाफी के दायरे में आएगा।

कर्जमाफी पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार कहते हैं, ''कर्ज माफी कृषि क्षेत्र की समस्याओं का हल नहीं है। यह उपचार न होकर सिर्फ दर्द कम करने वाली एक दवाई है।'' कुमार ने यह बात 'स्ट्रैटेजी फॉर न्यू इंडिया एट 75' शीर्षक से 'पंचवर्षीय' रणनीति को जारी करने के मौके पर कही। उनकी बात से साफ है कि कर्जमाफी से किसानों को पूर्ण रूप से राहत मिलना संभव नहीं है।

इस बात को समझने के लिए हम बीते कुछ सालों में हुई कर्जमाफी को भी देख सकते हैं। 2017 में उत्‍तर प्रदेश और महाराष्‍ट्र में किसानों की कर्ज माफी की गई थी। उत्‍तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने के बाद 36,359 करोड़ रुपए और महाराष्‍ट्र में 30,000 करोड़ रुपए माफ किए गए। इसके बावजूद इन राज्‍यों में कर्जमाफी को लेकर किसान आंदोलन करते रहते हैं। इससे जाहिर है कि किसानों तक कर्जमाफी का लाभ उस हिसाब का नहीं पहुंच पा रहा जैसा चुनावी घोषणाओं में दिखता है।

इंडियास्पेंड की जून 2017 की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि ऐसे ऋण माफी का कम असर पड़ता है। केवल एक तिहाई छोटे और सीमांत किसान संस्थागत ऋण का उपयोग करते हैं। ज्‍यादातर किसान गैर-संस्थागत स्रोतों से ही कर्ज लेना पंसद करते हैं। इंडियास्पेंड की ही जनवरी 2018 की रिपोर्ट बताती है कि पिछले 11 वर्षों से 2013 तक कृषि ऋण में पेशेवर धन-उधारदाताओं की हिस्सेदारी नौ प्रतिशत तक बढ़ी है। पेशेवर धन-उधारदाताओं की हिस्‍सेदारी 2002 में 19.6 फीसदी थी जो कि 2013 में 28.2 फीसदी तक बढ़ गई। ये तब हुआ जब सरकार लगातार कृषि ऋण में सुधार करने की कोशिश कर रही है। इसके तहत 1975 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, 1982 में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की गई। वहीं, 1969 में वाणिज्यिक बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया गया। ये सब प्रयास कृषि ऋण में सुधार करने के लिए किए गए। हालांकि इसके बावजूद पेशेवर धन-उधारदाताओं की पकड़ मजबूत हुई है।

एक बात ये भी है कि किसान सिर्फ खेती के लिए कर्ज नहीं लेता। वो अपनी कई जरूरतों जैसे- शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य और अन्‍य बुनियादी जरूरतों के लिए भी कर्ज लेता है। ऐसा इस लिए है कि भारत में लघु और सिमांत किसान ज्‍यादा हैं, जिनके पास खेती के लिए कम भूमि हैं, ऐसे में फसलों का सही दाम न मिलना और फिर मौसम आधारित खेती के बर्बाद होने से भी किसान कर्ज लेने को मजबूर होता है।

किसानों की सालाना आय करीब 1 लाख 7 हजार।

अगस्त 2018 में ही राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2017 में एक किसान परिवार की कुल मासिक आय 8,931 रुपये थी। ये आंकड़े जनवरी से जून 2017 के बीच इकठ्ठा किए गए थे। द वायर ने इस रिपोर्ट के आधार पर खबर लिखी है, जिसका शीर्षक है- 'आर्थिक मानकों पर देश के 10 करोड़ किसान परिवार बहुत ही असुरक्षित हैं'। इस खबर में रिपोर्ट का जिक्र करते हुए बताया गया है कि देश में किसानों की सबसे कम मासिक आय मध्य प्रदेश (7,919 रुपये), बिहार (7,175 रुपये), आंध्र प्रदेश (6,920 रुपये), झारखंड (6,991 रुपये), ओडिशा (7,731 रुपये), त्रिपुरा (7,592 रुपये), उत्तर प्रदेश (6,668 रुपये) और पश्चिम बंगाल (7,756 रुपये) है। इससे पहले वर्ष एनएसएसओ रिपोर्ट में 2012-13 की स्थिति को लेकर बताया गया था कि भारत में किसान परिवार की औसत मासिक आय 6,426 रुपये थी।

नाबार्ड की रिपोर्ट के आधार पर अगर हम किसानों की सालाना आय देखें तो ये करीब 1 लाख 7 हजार होती है। ये एप्‍पल कंपनी के एक फोन की कीमत के बराबर है। ऐसे में आप समझ सकते हैं कि किसान की सालाना आय कितनी कम है। इंडियास्‍पेंड की रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले पांच सालों में किसान की मासिक आय में खेती, उत्पादन और पशुधन से होने वाली आय का हिस्सा अनुपातिक रूप से कम हुआ है। इस वजह से किसान कर्ज लेने को मजबूर है, लेकिन उसे चुकाने की उसकी हैसियत नहीं हो पाती। ऐसे में कई बार किसान आत्‍महत्‍या तक कर लेता है।

कर्ज से होने वाली आत्‍महत्‍या के आंकड़ों को लेकर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि आत्महत्या करने वाला चार में से एक किसान कर्ज के बोझ में दबा होता है। 2015 में कम से कम 8,007 भारतीय किसानों ने आत्महत्या की, वहीं 2014 में 5,650 किसानों ने आत्‍महत्‍या की। 2015 में ये आंकड़ा 41.7 फीसदी ज्यादा रहा। इन किसानों में से 39 फीसदी कर्ज में थे। 2014 में 20.6 फीसदी आत्महत्या करने वाले किसानों ने पैसे उधार लिए थे। सरकार ने पिछले दो वर्षों से एनसीआरबी में किसान आत्महत्या के आंकड़े जारी करना बंद कर दिया है। लेकिन वरिष्ठ कृषि पत्रकार पी साईनाथ कहते हैं कि पिछले 20 वर्षों में 3 लाख 10 हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं।

"खेती का संकट अब राष्ट्रीय संकट है। पिछले 20-25 वर्षों को देखेंगे तो पाएंगे खेती-किसानी किसानों से छीनकर कॉर्पोरेट को सौपा जा रही है, कृषि संकट यही है।"- वरिष्ठ कृषि पत्रकार पी. साईनाथ

कृषि अर्थशास्‍त्री देविंदर शर्मा कर्जमाफी को जरूरी बताते हुए कहते हैं, ''कर्जमाफी प्रायश्‍चित है। जब कॉर्पोरेट का कर्ज माफ होता है तो कोई हंगामा नहीं होता। इस लिए किसानों की कर्जमाफी पर भी आपत्‍त‍ि नहीं होनी चाहिए। इसका स्‍वागत करना चाहिए। सरकार को कर्जमाफी के बाद किसानों की आया बढ़ाने की दिशा में काम करना होगा।''

फिलहाल कर्ज माफी हो भी रही है। छत्‍तीसगढ़, राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश, असम और गुजरात में एक के बाद एक कर्जमाफी की प्रकिया शुरू कर दी गई है। कर्जमाफी से छत्‍तीसगढ़ सरकार पर 6100 करोड़, राजस्‍थान सरकार पर 18 हजार करोड़, असम सरकार पर 600 करोड़ का अतिरिक्‍त भार पड़ेगा। वहीं, गुजरात में 650 करोड़ रुपये के बिजली बिल माफ करने का ऐलान किया गया है। साथ ही मध्‍य प्रदेश में किसानों का 2 लाख रुपए तक का अल्‍पकालीन फसल ऋण माफ हो जाएगा।

हालांकि जून 2017 में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने राज्य सरकारों द्वारा किसानों के कर्ज माफ करने की प्रवृति पर चिंता जताई थी। तात्‍कालीन आरबीआई के गर्वनर उर्जित पटेल ने कहा था, ''अगर बड़े पैमाने पर किसानों के ऋण माफ किए गए तो इससे वित्तीय घाटा बढ़ने का खतरा है।''

राज्‍यों की कर्जमाफी को इस प्रवृति पर आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल ने रेपो रेट को यथावत रखने की जानकारी देते हुए संवाददाताओं से कहा, 'मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के प्रस्ताव में कहा गया है कि अगर बड़े पैमाने पर किसानों के ऋण माफ किए गए तो इससे वित्तीय घाटा बढ़ने का खतरा है।' इसके बाद सितंबर 2017 में आरबीआई द्वारा किसानों की कर्जमाफी पर चर्चा के लिए एक सेमिनार आयोजित किया गया।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने राज्य सरकारों द्वारा किसानों के कर्ज माफ करने की प्रवृति पर जताई थी चिंता। फोटो- Live mint

इस सेमिनार में उर्जित पटेल ने कहा था, ''केंद्र और राज्य सरकारों से किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए कर्जमाफी की बजाए मूलभूत समाधान अपनाने को कहा है। किसानों की समस्याओं को सुलझाने के लिए फसल बीमा, बुनियादी ढांचा, सिंचाई, तकनीकी आधारित उत्पादकता जैसे पहलुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए।'' उर्जित पटेल ने इस सेमिनार में कर्ज माफी से किसानों को राहत मिलने की बात मानी लेकिन साथ ही इसके नाकरात्‍मक पहलू भी बताए।

''कर्जमाफी से डिफॉल्टर्स को बढ़ावा मिलेगा और क्रेडिट व्यवस्था भी खराब होगी।''- पूर्व आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल

उर्जित पटेल जिस बात की आशंका जता रहे थे वो किसानों के कर्ज के एनपीए हो जाने को लेकर थी। अगर बात करें एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) की तो सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के मुताबिक, किसानों और खेती से जुड़े लोगों का एनपीए 66,176 करोड़ है। इसमें से सार्वजनिक बैंकों का 59,177 करोड़ और निजी बैंकों का 6,999 करोड़ एनपीए है। वहीं, देश के संपूर्ण एनपीए (जीएनपीए) पर नजर दौड़ाएं, तो यह 7,76,067 करोड़ रुपये है। ये जानकारी इसी साल की शुरुआत में मध्य प्रदेश के नीमच निवासी सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने आटीआई से प्राप्‍त की थी।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के डाटा के मुताबिक, कृषि क्षेत्र का एनपीए कुल बैंकिंग क्षेत्र के एनपीए का 8.3 प्रतिशत है। 2012 से कृषि क्षेत्र के एनपीए में 142.74 प्रतिशत की बढ़त हुई है। एनपीए को हम ऐसे समझ सकते हैं कि कोई शख्‍स बैंक से लोन लेने के बाद ब्‍याज और किश्‍तें देना बंद कर दे। ऐस में बैंक एक निश्‍चित समय सीमा के बाद ऐसे लोन को एनपीए घोषित कर देता है। मतलब बैंक इस लोन के वापसी के आसार कम मानता है।

कुल मिलाकर कर्ज माफी से किसानों का संकट खत्‍म होते नहीं दिखता। इसके लिए सरकारों को योजनाबद्ध तरीके से किसानों की आय बढ़ाने के लिए काम करना होगा। फिलहाल ऐसा होते नहीं दिखता। ऐसे में अगर 2019 के लोकसभा चुनाव में कर्जमाफी मुद्दा होता है और चुनाव बाद इसे लागू किया जाता है तब भी किसानों पर ज्‍यादा असर नहीं पड़ेगा। उनका कर्जा माफ हो सकता है, लेकिन जब उपज की ठीक कीमत नहीं मिलेगी तो कर्ज फिर लौट आएगा।

     

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