मोटे अनाज की खेती छोटे, सीमांत किसानों के लिए आपात स्थिति में सर्वाधिक उपयुक्त : राधा मोहन सिंह  

Sanjay SrivastavaSanjay Srivastava   22 March 2018 5:59 PM GMT

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मोटे अनाज की खेती छोटे, सीमांत किसानों के लिए आपात स्थिति में सर्वाधिक उपयुक्त  : राधा मोहन सिंह  कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह

नयी दिल्ली। कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने बताया कि पौष्टिक धान्यों की फसलों में ज्वार, बाजरा, रागी के साथ कुटकी, कोदो, सांवा, कांगनी और चीना जैसे लघु धान्यों या मोटे अनाजों को शामिल किया गया है जो पौष्टिक धान्य उपमिशन का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि ऐसे पौष्टिक धान्य में सूखे के प्रति सहिष्णुता, प्रकाश असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलता जैसी विशेषताएं पाई जाती हैं।

संसदीय सौंध में पौष्टिक धान्य (मोटे अनाज) विषय पर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति की अंत:सत्रीय बैठक में कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकारों के संयुक्त प्रयासों के साथ किसानों की मेहनत और समर्पण से न केवल पौष्टिक धान्यों (मोटे अनाज) के उत्पादन में वृद्धि होगी बल्कि देश में पोषाहारीय तत्वों की कमी से उत्पन्न विकारों में भी कमी आएगी।

उन्होंने कहा कि मोटे अनाज के रूप में पौष्टिक धान्य पोषक तत्वों के लिए जाने जाते हैं और उनमें सूखे के प्रति सहिष्णुता, प्रकाश असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलता जैसी विशेषताएं पाई जाती हैं। पौष्टिक धान्यों की खेती को चावल और गेहूं की खेती की तुलना में जल की कम आवश्यकता पड़ती है।

कृषि मंत्री ने कहा कि पौष्टिक धान्य महीन खाद्यान्नों की तुलना में बेहतर होते हैं। इसलिए इन मोटे अनाजों का उत्पादन करने से विशेष रूप से गरीब लोगों को पौष्टिक खुराक उपलब्ध कराने में निश्चित रूप से मदद मिलेगी। यह खाद्यान्न कुपोषण से बचाने के साथ-साथ पौष्टिक सुरक्षा भी प्रदान करते हैं।

कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने कहा कि पौष्टिक धान्य की खेती छोटे, सीमांत किसानों के लिए आपात स्थिति में सर्वाधिक उपयुक्त होती है। पौष्टिक धान्यों को बढ़ावा देने के लिए एमएसपी पर इनकी निर्धारित खरीद और मध्यान्ह भोजन आदि जैसी सामाजिक क्षेत्र की स्कीमों में इन्हें शामिल करने जैसी योजनाओँ पर भी अमल किया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि 18 जुलाई 2017 को आयोजित बैठक में प्रधानमंत्री ने पोषण सुरक्षा में सुधार लाने के लिए लोक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत पौष्टिक धान्यों का वितरण शुरू करने का निर्णय लिया था। इसके बाद 13 अक्तूबर 2017 को नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद की अध्यक्षता में एक बैठक का आयोजन किया गया था, जिसमें लोगों के आहार में पोषक तत्वों को उपलब्ध कराने के उद्देश्य से देशभर में पीडीएस के माध्यम से पौष्टिक धान्य अर्थात ज्वार, बाजरा और रागी के उपयोग को बढ़ावा देने का फैसला लिया गया था। इस विभाग ने निर्णय लिया है कि पौष्टिक धान्य को मोटे अनाजों की श्रेणी से निकालकर पौष्टिक धान्य उप-मिशन में शामिल कर लिया जाए।

मंत्रालय का कहना है कि हरित क्रांति से पहले देश में वर्ष 1965-66 के दौरान 36.90 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र पर इनकी खेती की जाती थी। खपत पद्धति, आहार संबंधी आदतों में परिवर्तन, पौष्टिक धान्यों की अनुपलब्धता, कम लाभकारी मूल्य, कम मांग और सिंचित क्षेत्र को चावल एवं गेहूं आदि की खेती में परिवर्तित करने के कारण वर्ष 2016-17 में इसका रकबा घटकर 14.72 मिलियन हैक्टेयर रह गया जो 60 प्रतिशत कमी को दर्शाता है। इसके परिणामस्वरूप महिलाओं और बच्चों में प्रोटीन, विटामिन ए, आयरन और आयोडीन जैसे पोषक तत्वों की भारी कमी की बात सामने आई है।

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इनपुट भाषा

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