बजट में ऐसा कुछ नहीं जो किसान-कॉरपोरेट की बड़ी खाई को कम कर सके : मेधा पाटकर
Sanjay Srivastava 7 Feb 2018 6:14 PM GMT
नई दिल्ली। किसानों को उनकी उपज के लिए उचित दाम दिलाने के जो उपाय सुझाए गए हैं, उनमें कुछ भी नया नहीं है और जिससे किसानों का भला हो। इसके लिए बजटीय आवंटन भी पर्याप्त नहीं है। ये कहना है मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता और नर्मदा बचाओ आंदोलन से अगुवा मेधा पाटकर का।
बजट वर्ष 2018-19 में कृषि क्षेत्र के लिए बजटीय आवंटन को नाकाफी बताते हुए मेघा पाटकर ने कहा कि बजट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है, जिससे किसान और कॉरपोरेट के बीच को असमानता की बड़ी खाई को कम किया जा सके।
पाटकर ने बातचीत में कहा कि किसानों को उनकी उपज के लिए उचित दाम दिलाने के जो उपाय सुझाए गए हैं, उनमें कुछ भी नया नहीं है। फसलों की कीमत स्थिरता के लिए बाजार हस्तक्षेप की राशि घटाकर 200 करोड़ रुपए कर दी गई है।
फसल बीमा स्कीम लागू करने का तरीका अव्यावहारिक
उन्होंने कहा कि फसल बीमा स्कीम को लागू करने का तरीका इतना अव्यावहारिक है कि उससे किसानों को नहीं बल्कि बीमा कंपनियों को फायदा होता है। मेधा ने कहा कि सिंचाई मद पर जो खर्च होना चाहिए, उसका पूरा ब्यौरा नहीं है और जिन मदों पर खर्च की राशि बताई जा रही है वह बहुत कम है।
एक ओर जैविक खेती दूसरी ओर जीएम उत्पाद को प्रोत्साहन कैसे
उन्होंने कहा कि ग्रामीण इलाकों में आजीविका व बुनियादी संरचना पर 14.34 लाख करोड़ का बजटीय आवंटन किया गया है, जिसमें 11.98 लाख करोड़ अतिरिक्त बजटीय व गैर-बजटीय संसाधन शामिल है। सरकार की कथनी और करनी में फर्क है। सरकार एक ओर जैविक खेती की बात करती है तो दूसरी ओर जीएम उत्पाद को प्रोत्साहन दे रही है।
आम बजट के खिलाफ 12-19 फरवरी को किसान आंदोलन
इससे पहले अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के बैनर तले मेधा पाटकर, स्वाभिमानी शेतकरी के अध्यक्ष व सांसद राजू शेट्टी, अखिल भारतीय किसान सभा के महामंत्री व पूर्व सांसद हन्नान मौला, जय किसान आंदोलन के नेता योगेंद्र यादव और समिति के संयोजक वी एम सिंह व अन्य ने नई दिल्ली में एक प्रेसवार्ता का आयोजन कर आम बजट 2018-19 की खामियां गिनाईं और किसानों के लिए की गई घोषणाओं को महज चुनावी शिगूफा बताया है।
समिति की ओर से 12 फरवरी से 19 फरवरी के बीच एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाने की घोषणा की गई। इस अभियान के जरिए गांव-गांव जाकर किसानों को बताया जाएगा कि बजट में अधिसूचित फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) डेढ़ गुना करने समेत किसानों के लिए जो घोषणाएं की गई है उसमें घालमेल है।
सी-2 के आधार पर दिया जाना चाहिए एमएसपी : वीएम सिंह
किसान नेता वी एम सिंह ने कहा कि सरकार ने एमएसपी ए-2 एफएल (खाद, बीज आदि की लागत व पारिवारिक श्रम) के आधार पर तय किया है, जबकि किसानों को स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक सी-2 के आधार पर दिया जाना चाहिए, जिसमें ए-2 एफएल के अलावा जमीन का किराया भी शामिल है।
उन्होंने कहा, "हम सी-2 का 50 फीसदी एमएसपी बढ़ाने की मांग करते हैं। साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि व्यापारी एमएसपी से नीचे के भाव पर किसानों से फसल न खरीदें।"
राजू शेट्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में जो वादे किए वो अभी तक पूरे नहीं हुए हैं। इस बजट से किसानों का फायदा नहीं होने वाला है।
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सरकार न किसानों का दुख-दर्द नहीं समझती : योगेंद्र यादव
जाने माने राजनीतिक विश्लेषक व स्वराज पार्टी के संस्थापक योगेंद्र यादव ने कहा कि बजट से यह साफ हो गया है कि यह सरकार न तो किसानों का दुख-दर्द समझती है और न ही समझना चाहती है। सरकार को लगता है कि किसानों की आंखों में धूल झोंककर ही वोट मिल सकते हैं तो किसान आंदोलन अपने संघर्ष से सरकार की इस गलतफहमी को दूर कर देगा।
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