किसान मुक्ति संसद का दूसरा दिन : अब महायुद्ध की तैयारी, 2019 में गांवों में नहीं घुस पाएंगे नेता

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किसान मुक्ति संसद का दूसरा दिन : अब महायुद्ध की तैयारी, 2019 में गांवों में नहीं घुस पाएंगे नेताधरना स्थल पर किसानों को संबोधित करतीं मेधा पाटकर। (फोटो- अभिषेक वर्मा)

गांव कनेक्शऩ टीम

संसद मार्ग (नई दिल्ली)। देशभर के किसान प्रतिनिधि अपनी मांगों को लेकर दिल्ली में हुंकार भर रहे हैं। किसान संगठनों ने घोषणा की है कि अगर उनकी दोनों मांगों को नहीं माना गया तो 2019 के लोकसभा में चुनाव में नेता वो मांगने के लिए गांवों में नहीं घुस पाएंगे, चाहे वो किसी भी पार्टी के क्यों न हों।

अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के आह्वान पर संसद मार्ग पर चल रही किसान मुक्ति संसद इस बात पर आम सहमति बनी है कि लोकसभा चुनाव में किसानों का वोट मांगने आए नेताओं से पांच साल में उन्होंने किसानों के लिए क्या किया है इसका हिसाब-किताब लिया जाएगा।

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धरना स्थल पर झंडा लिए किसान। (फोटो- अभिषेक वर्मा)

किसान मुक्ति संसद ने देश में राजनीतिक पार्टियों के किसान फ्रंटल संगठनों को दूर रखा गया है, सिर्फ भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के फ्रंटल संगठन अखिल भारतीय किसान महासंगठन को छोड़कर बाकी शामिल नहीं हैं। मुख्य धारा के तमाम किसान संगठनों से कहा गया था कि वो अपनी पार्टियों पर दबाव बनाएं कि जो देश में किसानों की समस्याएं हैं उन्हें लेकर एक साझा मंच तैयार हो। समन्यवय समिति का कहना है कि क्योंकि पार्टियों के संगठन इसमें नाकाम रहे इसलिए गैर राजनीतिक संगठनों ने मिलकर दिल्ली कूच किया। आने वाले चुनावों में एक साझा मंच तैयार करने का प्रयास किया है।

आखिल भारतीय किसान समनव्य समिति के नेता, संयोजक वीएम सिंह, योगेंद्र यादव, सांसद राजू शेट्टी, डॉ. सुनीलम, प्रतिभा शिंदे, अविका शाहा समेत कई नेताओं ने आए हुए किसानों से आह्ववान किया है कि किसान मुक्ति संसद के बाद गांव-गांव में जाकर किसानों के बीच जाकर इसका प्रचार करें। और 2019 में एक ऐसी सरकार बने जो सही मायने में किसानों की सरकार हो।

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गांव कनेक्शन से खास बात करते हुए किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा, “हम लोग गांव-गांव में बंदी करेंगे, अनाज नहीं उठने देंगे, अगर किसानों की मांगे नहीं मानी गईं। अगर खेती राज्य सरकार का विषय है तो फिर केंद्र इसमें टांग न अड़ाए, हम लोग अब किसान हितैषी कानून बनवाकर ही दम लेंगे, क्योंकि देशभर के किसानों की एकजुटता अब यूंही बढ़ती जाएगी।’

किसान मुक्ति संसद के दूसरे दिन सुबह 10 बजे ही संसद मार्ग पर अपने साथियों के साथ पहुंचे भारतीय किसान यूनियन के पंजाब प्रांत के अध्यक्ष रुपा सिंह ने कहा, “पंजाब को हर सरकार ने सिर्फ बर्बाद करने का काम किया है, पूरे देश का पेट पालने के लिए हरित क्रांति के दौरान हमारे खेतों में अंधाधुंध रसायनिक खादों और केमिकल का इस्तेमाल किया गया, जिससे खेती की लागत बढ़ गई हमारी जमीनें बंजर हो गईं और आज हमारे किसान आत्महत्या को मजबूर हैं। हमें हर पार्टी से शिकायत है।”

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किसान के मुद्दे पर एनडीए का साथ छोड़ने वाले शेतकारी संगठना के नेता और सांसद राजू शेट्टी ने कहा “एनडीए सरकार को किसानों ने बड़ी उम्मीद से चुना था मैंने भी उनका साथ दिया था लेकिन संसद में जब किसानों से संबंधित मुद्दों को उठाने की बारी आई, तो एनडीए के सांसद सोते रहे। इसलिए मुझे गठबंधन और सरकार का साथ छोड़ा और देशभर के किसानों को न्याय दिलाने के लिए इस मुहिम में शामिल हुआ।

इसमें 185 संगठन का काडर शामिल है जो किसानों की अगुवाई का दावा करता है। यूपी राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के साथ ही दक्षिण के राज्यों के किसान और संगठन अपनी आवाज यहां जोर-शोर से उठा रहे हैं। कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, केरल समेत लगभग सभी राज्यों के किसान अपनी भाषा में आवाज उठा रहे हैं। कल हुई महिला संसद में इन राज्यों की 2 दर्जन महिलाएं ने अपनी भाषा में किसानों के दर्द को बया किया था।

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कर्नाटक के सबसे बड़े किसान संगठन, कर्नाटक रैयत संघ की किसान चुक्की रंजुडास्वामी ने गांव कनेक्शन से कहा- किसानों कि ये आवाज़ 2019 के लोकसभा चुनाव में सुनाई देगी। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अपने मुद्दों को लेकर एक जुट होंगे। क्योंकि अभी तक कि सभी सरकारों ने किसानों के साथ नाइंसाफी की है, जिसका नतीजा है कि किसानों को अपनी संसद बुलानी पड़ी, जो काम किसानों का है किसानों को करना पड़ा।

अतुल अंजान के किसान संगठन ऑल इंडिया किसान सभा से जुड़े भूपेंद्र सिंह ने कहा- किसान मुक्ति संसद में पास हुए दो अहम बिल, संपूर्ण कर्ज मुक्ति और फसल का लाभकारी डेढ़ गुना मूल्य का मसौदा लेकर हम लोग पार्टियों के पास जाएंगे और उन पर दबाव डालेंगे कि शीतकालीन सत्र में वो इन्हें सदन में पासकरवा कर कानून बनाएं।

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किसान संगठनों का कहना है ये गुस्सा देश में साढ़े तीन लाख किसानों की आत्महत्या के बाद उपजा है, जिसका खामियाजा अब सरकारों को भुगतना पड़ेगा। किसान संघ से जुडे राज राम सिंह ने कहा, पहले कि सरकारों में कार्पोरेट जगत पिछले दरवाजे से काम करता है आज वो फ्रंट फुट पर है, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए दरवाजे खोले जा रहे हैं लेकिन हम लोग दोबारा ईस्ट इंडिया कंपनी नहीं बनने देंगे।’

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