सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायधीशों की प्रेस कॉन्फ्रेंस को कुछ ने अप्रत्याशित और कुछ ने स्तब्धकारी बताया  

Sanjay SrivastavaSanjay Srivastava   13 Jan 2018 10:40 AM GMT

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सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायधीशों की प्रेस कॉन्फ्रेंस को कुछ ने अप्रत्याशित और कुछ  ने स्तब्धकारी बताया  न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर

नयी दिल्ली (भाषा)। उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों के आज संवाददाता सम्मेलन करने के फैसले को विधिक बिरादरी ने अप्रत्याशित बताया। कुछ विशेषज्ञों ने इसे स्तब्धकारी बताया जबकि कुछ अन्य ने कहा कि इस तरह के कदम के पीछे कुछ ठोस वजहें हो सकती हैं। कुछ विधि विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि इस घटनाक्रम ने न्यायिक व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी, पूर्व केंद्रीय विधि मंत्री सलमान खुर्शीद और अश्विनी कुमार, पूर्व न्यायाधीश आरएस सोढी और न्यायमूर्ति मुकुल मुद्गल ने अप्रत्याशित संवाददाता सम्मेलन को लेकर चिंता जाहिर की। वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने इस कदम का स्वागत किया और चार न्यायाधीशों को बधाई दी।

सुब्रह्मण्यम स्वामी (फोटो: इंटरनेट)

भाजपा नेता और राज्यसभा सदस्य सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि जब ये न्यायाधीश संवाददाता सम्मेलन करने आए तो इसमें दोष ढूंढ़ने के बजाय उन्हें गंभीरता से लेने की जरूरत है। स्वामी ने कहा कि प्रधानमंत्री को पहल करनी चाहिए और पूरे हालात का विचार-विमर्श के जरिए समाधान करने के लिये प्रधान न्यायाधीश और चार न्यायाधीशों से संपर्क करना चाहिए।

हालांकि, न्यायमूर्ति आरएस सोढी ने मीडिया से संपर्क करने के शीर्ष न्यायाधीशों के कदम पर सवाल उठाए और पूछा कि संवाददाता सम्मेलन के जरिए कैसे उच्चतम न्यायालय को चलाया जा सकता है। न्यायमूर्ति सोढी ने कहा, मैं इन बातों के नतीजों से दुखी हूं। यह डरावना है। संवाददाता सम्मेलन के जरिए आप कैसे उच्चतम न्यायालय को चला सकते हैं। क्या आप जनमत संग्रह करने जा रहे हैं और लोगों से पूछने जा रहे हैं कि क्या सही है और क्या गलत है।

न्यायमूर्ति मुकुल मुद्गल ने कहा कि चार सर्वाधिक वरिष्ठतम न्यायाधीश मुद्दे को सामने ला रहे थे, जो उनके अनुसार जनता के ध्यानार्थ लाना जरूरी था। उन्होंने कहा कि उनके पास जनता के बीच जाने की जरूर ठोस वजहें रही होंगी और वे प्रचार के भूखे न्यायाधीश नहीं हैं और अनावश्यक प्रचार के लिए लालायित नहीं रहते हैं।

संवाददाता सम्मेलन को स्वागतयोग्य कदम बताते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने चार न्यायाधीशों को साहसिक कदम के लिए बधाई दी। उन्होंने कहा, जैसा उन्होंने कहा कि वे इतिहास का कर्ज अदा कर रहे हैं, वे देश को बता रहे हैं कि कुछ गलत हो रहा है और उसे ठीक किए जाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि संवाददाता सम्मेलन का मकसद संस्थान के प्रति फर्ज निभाते हुए आम सहमति बनाना और इस बात को सुनिश्चित करना था कि इस संस्थान का अस्तित्व आपके और मेरे लिए रहे।

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण।

अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने भी इस घटनाक्रम को अप्रत्याशित बताया और कहा कि न्यायाधीशों ने यह संवाददाता सम्मेलन करने का अतिवादी फैसला बेहद मजबूर करने वाली परस्थितियों में किया गया होगा।

भूषण ने कहा, ये चार न्यायाधीश बेहद जिम्मेदार हैं। अगर वे ऐसा कर रहे हैं तो निश्चिततौर पर परिस्थितियां नियंत्रण के बाहर होंगी। उन्होंने कहा कि सीजेआई मामलों को आवंटित करने की अपनी प्रशासनिक शक्तियों का दुरुपयोग कर रहे हैं।

वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी ने कहा कि यह कदम बेहद स्तब्धकारी है और किसी ने भी कभी ऐसा नहीं सोचा था कि चीजें इतनी मजबूर करने वाली हो जाएंगी कि चार सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीशों को इस तरह का कदम उठाना होगा।

तुलसी ने कहा, मुझे वश्विास है कि उन्होंने (चार न्यायाधीशों ने) अन्य सभी तरह के उपचारों का इस्तेमाल कर लिया होगा। जब वे बोल रहे थे तो उनके चेहरों पर दर्द देखा जा सकता था। पूरा मामला न्यायिक शिष्टाचार के संबंध में था। सवाल नैसर्गिक न्याय का है। आम आदमी के लिए जो कानून है और उसे न्यायाधीशों के संबंध में अधिक कठोरता से लागू किया जाना चाहिए क्योंकि उन्हें संदेह से परे होना चाहिए।

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इसी तरह, पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने कहा कि न्यायाधीशों में कुछ गहरा मतभेद है कि कैसे शीर्ष अदालत को काम करना चाहिए और उन्होंने इसे चिंता का विषय बताया। पूर्व विधि मंत्री अश्विनी कुमार ने भी कहा कि यह भारतीय लोकतंत्र के लिए निराशा भरा दिन है।

गौरतलब है कि तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ के साथ न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर ने कहा, यह किसी भी देश और खासतौर पर इस देश और न्यायपालिका की संस्था के इतिहास में असाधारण घटना है। हम बेहद दुख के साथ यह संवाददाता सम्मेलन बुलाने को मजबूर हैं।उन्होंने कहा, लेकिन कभी-कभार उच्चतम न्यायालय का प्रशासन व्यवस्थित नहीं है और कई चीजें जो अवांछनीय हैं वो पिछले कुछ महीने में हुईं हैं।

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