यदि भारतीय नस्लभेदी होते तो समूचे दक्षिण भारत के साथ क्यों रहते : भाजपा नेता तरुण विजय
Sanjay Srivastava 7 April 2017 5:48 PM GMT
नई दिल्ली (भाषा)। भाजपा के पूर्व सांसद तरुण विजय को आज उस वक्त नस्लभेदी टिप्पणी करने के आरोप का सामना करना पड़ा, जब वह यह कहते नजर आए कि भारतीयों को नस्लभेदी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वे देश के दक्षिणी राज्यों में रहने वाले अश्वेत लोगों के साथ रहते हैं।
अफ्रीकी छात्रों पर हमले के बाद नस्लभेद के आरोपों पर भारत का बचाव करते हुए तरुण विजय ने एक टीवी कार्यक्रम में कहा, ‘‘हमारे यहां अश्वेत लोग हर तरफ हैं।'' उन्होंने सवाल किया, ‘‘यदि हम नस्लभेदी होते तो हमारे साथ समूचा दक्षिण क्यों होता ?''
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विजय के बयान को लेकर सोशल मीडिया पर विवाद पैदा हो गया, जिसके बाद उन्हें ट्विटर पर माफी मांगनी पड़ी। भाजपा नेता ने कहा, ‘‘यदि हम नस्लभेदी होते तो हमारे साथ समूचा दक्षिण क्यों होता ? आप जानते हैं कि.......पूरी तरह तमिल, आप केरल को जानते हैं, कर्नाटक और आंध्र को जानते हैं. हम उनके साथ क्यों रहते हैं ? हमारे यहां तो हर तरफ अश्वेत हैं।''
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध साप्ताहिक ‘पांचजन्य' के संपादक रह चुके विजय ने दावा किया कि अफ्रीकी पूर्वजों वाले लोग महाराष्ट्र और गुजरात में दोस्ताना ढंग से रह रहे हैं। उन्होंने भगवान कृष्ण का हवाला देते हुए यह भी कहा कि भारतीय अश्वेत भगवानों को पूजते हैं।
अपनी आलोचना होेने पर विजय ने सफाई पेश करते हुए कहा कि उनके शब्दों से शायद वह बात पर्याप्त रुप से जाहिर नहीं हो पाई, जो वह कहना चाह रहे थे। उन्होंने कहा, ‘‘बुरा लग रहा है, वाकई दुखी हूं, उन सभी से माफी जिन्हें महसूस हुआ कि मेरे कहने का मतलब कुछ और था।''
मुझे लगता है कि पूरा बयान यह था- हमने नस्लभेद से लडाई लडी है और हमारे यहां अलग रंग एवं संस्कृति के लोग हैं, फिर भी कोई नस्लभेद नहीं होता।’’ बहरहाल, भाजपा नेता ने दावा किया कि उन्होंने दक्षिण भारत को कभी अश्वेत नहीं कहा।तरुण विजय पूर्व सांसद भाजपा
विजय ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि पूरा बयान यह था- हमने नस्लभेद से लडाई लडी है और हमारे यहां अलग रंग एवं संस्कृति के लोग हैं, फिर भी कोई नस्लभेद नहीं होता।'' बहरहाल, भाजपा नेता ने दावा किया कि उन्होंने दक्षिण भारत को कभी अश्वेत नहीं कहा।
विजय ने कहा, ‘‘मैंने कभी भी, गलती से भी दक्षिण भारत को अश्वेत नहीं कहा, मैं मरना पसंद करुंगा, लेकिन अपनी ही संस्कृति, अपने ही लोगों और अपने ही देश का मजाक कैसे उड़ा सकता हूं? बुरे तरीके से गढ़े गए मेरे वाक्य की गलत व्याख्या करने से पहले जरा सोचें।''
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