सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक पर सुनवाई शुरू, पांच सदस्यीय संविधान पीठ में अलग-अलग धर्म के न्यायमूर्ति शामिल

Sanjay SrivastavaSanjay Srivastava   11 May 2017 1:18 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक पर सुनवाई शुरू, पांच सदस्यीय संविधान पीठ में अलग-अलग धर्म के न्यायमूर्ति शामिलनई दिल्ली के जंतर मंतर पर तीन तलाक का विरोध करतीं ज्वाइंट मूवमेंट कमेटी के कार्यकर्ता। 

नई दिल्ली (भाषा)। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुनवाई शुरू की और कहा कि वह इस बात की समीक्षा करेगा कि मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा उनके धर्म के संबंध में मौलिक अधिकार है या नहीं, लेकिन वह बहुविवाह के मामले पर संभवत: विचार नहीं करेगा।

सुप्रीम कोर्ट में मुसलमानों में ‘तीन तलाक', ‘निकाह हलाला' और बहुपत्नी प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई आज से शुरू हो गई है, यह सुनवाई लगातार दस दिनों तक चलेगी।

प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ सात याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इनमें पांच याचिकाएं मुस्लिम महिलाओं ने दायर की हैं जिनमें मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा को चुनौती देते हुए इसे असंवैधानिक बताया गया है।

इस पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन, न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर शामिल हैं, संविधान पीठ स्तत: ही लिए गए मुख्य मसले को ‘‘मुस्लिम महिलाओं की समानता की जुस्तजू'' नाम की याचिका के रूप में भी विचार के लिए लेगी।

संविधान पीठ के सदस्यों में सिख, ईसाई, पारसी, हिन्दू और मुस्लिम सहित विभिन्न धार्मिक समुदाय से हैं।

देश से जुड़ी सभी बड़ी खबरों के लिए यहां क्लिक करके इंस्टॉल करें गाँव कनेक्शन एप

इस मामले की सुनवाई इसलिए अधिक महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीष्मावकाश के दौरान इस पर विचार करने का निश्चय किया और उसने यहां तक सुझाव दिया कि वह शनिवार और रविवार को भी बैठ सकती है तो इस मामले में उठे संवेदनशील मुद्दों पर शीघ्रता से निर्णय किया जा सके।

अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी इस मामले में संविधान पीठ की मदद करेंगे और यह भी देखेंगे कि मुस्लिम पर्सनल ला में न्यायालय किस सीमा तक हस्तक्षेप कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: ही इस सवाल का संज्ञान लिया था कि क्या महिलाएं तलाक अथवा उनके पतियों द्वारा दूसरी शादी के कारण लैंगिक पक्षपात का शिकार होती हैं।

सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर विचार करके मुस्लिम समाज में प्रचलित ‘तीन तलाक', ‘निकाह हलाला' और बहुपत्नी प्रथा की संवैधानिकता और वैधता पर अपना सुविचारित निर्णय भी देगी।

इस मामले में सुनवाई और भी महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अप्रैल के अंतिम सप्ताह में ही अपने एक फैसले में तीन तलाक की प्रथा को एकतरफा और कानून की दृष्टि से खराब बताया था।

हाईकोर्ट ने अकील जमील की याचिका खारिज करते हुये यह फैसला सुनाया था। अकील की पत्नी ने उसके खिलाफ आपराधिक शिकायत दायर करके आरोप लगया है कि वह दहेज की खातिर उसे यातना देता था और जब उसकी मांग पूरी नहीं हुई तो उसने उसे तीन तलाक दे दिया।

               

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.