पराली दो खाद लो: उत्तर प्रदेश में शुरू हुई इस योजना से पर्यावरण और किसान, दोनों को फायदा

पराली के बदले गोबर खाद- उत्तर प्रदेश के उन्नाव में जिलाधिकारी रवींद्र कुमार ने 'पराली दो खाद लो' की मुहिम शुरू की। दो ट्राली पराली के बदले किसानों को छुट्टा पशुओं की गोशाला से एक ट्राली खाद दी जा रही है।

Sumit YadavSumit Yadav   10 Nov 2020 8:00 AM GMT

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parali, unnaoउन्नाव में पराली के बदले खाद योजना की शुरुआत करते प्रशासनिक अधिकारी।

उन्नाव (उत्तर प्रदेश)। अगर आप किसान हैं और आपके पास पराली है, जिसकी आपको जरूरत नहीं तो आप उसके बदले खाद ले सकते है। यूपी के उन्नाव जिले में जिला प्रशासन ने पराली के बदले खाद की योजना शुरू की है। दो ट्राली पराली गोशाला में देने पर एक ट्राली गाय के गोबर की खाद किसानों को दी जा रही है।

योजना को लेकर उन्नाव के जिलाधिकारी रवींद्र कुमार ने गांव कनेक्शन से कहा, "पराली दो खाद लो" योजना लागू करने के पीछे तीन वजह हैं। जलाने से प्रदूषण नहीं होगा। गोशालाओं में चारे की कमी नहीं रहेगी। जैविक खाद के उपयोग से खेतों की उर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी तो इससे उत्पादन अच्छा होगा और किसान आर्थिक रूप से मजबूत होगा।"

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देश में पराली जलाने पर पूरी तरह प्रतिबंध तो लगाया ही गया है साथ ही इसे कानूनी अपराध घोषित दिया गया है। यूपी, पंजाब और हरियाण में तमाम किसानों पर रिपोर्ट दर्ज उन्हें जेल भेजा जा चुका है। इसके साथ ही केंद्र सरकार पराली को अध्यादेश के माध्यम से नया कानून लेकर आई है। वायु गुणवत्ता प्रबंधन अध्यादेश, 2020 जो कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर के बाद अब कानून बन चुका है, के तहत दिल्ली और आसपास के इलाकों में प्रदूषण फैलाने का दोषी पाए जाने वालों पर पांच साल तक की जेल की सजा और एक करोड़ रुपए जुर्माने का प्रावधान किया गया है। इस कानून के दायरे में प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों के अलावा पराली का जलाना भी शामिल किया है। ऐसे में पराली का प्रबंधन बड़ी समस्या बना है।

यूपी में लखनऊ और कानपुर के बीच बसे उन्नाव जिले से शुरू हुई इस योजना को किसान और सरकार दोनों के नजरिए से मुफीद बताया जा रहा है। बहुत सारे किसानों को पराली की जरूरत नहीं होती है ऐसे में वो पराली को गोशालाओं को देकर गोबर की कंपोस्ट खाद ले सकते हैं जबकि इससे छुट्टा पशुओं के लिए बनाई गोशालाओं में चारे की कमी और सर्दी की समस्या काफी हद तक हल हो सकती है।

पराली दो खाद लो योजना लागू करने के पीछे तीन वजह हैं। जलाने से प्रदूषण नहीं होगा। गोशालाओं में चारे की कमी नहीं रहेगी। जैविक खाद के उपयोग से खेतों की उर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी तो इससे उत्पादन अच्छा होगा और किसान आर्थिक रूप से मजबूत होगा।- रवींद्र कुमार, डीएम, उन्नाव, यूपी

फसल अवशेष निस्तारण के लिए शुरू की गई "पराली दो खाद लो" योजना के तहत किसानों को दो ट्राली पराली के बदले एक ट्राली गोबर की खाद दी जा रही है। योजना की शुरुआत नौ नवंबर को जिलाधिकारी ने जिले के सरोसी ब्लॉक के थाना गांव मे बनी स्थाई आदर्श गौशाला थाना से किसा। इस मौके पर किसान कृष्ण मोहन, छंगा, कमलकिशोर,अमरेंद्र कुमार और समरेंद्र सिंह को दो-दो ट्राली पराली के बदले खाद दी गयी।

उन्नाव में किसानों को पराली को लेकर जागरूक भी किया जा रहा है।

वहीं इस बारे में पीके सिंह मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी, उन्नाव ने गांव कनेक्शन को बताया, "22 गोशालाओं में योजना की शुरुआत की गई है। अभी तक 167 टन पराली गोशालाओं में पहुंच चुकी है। हमारा लक्ष्य है अगले 15 दिन में हर ब्लॉक में कम से कम 100 टन पराली गोशालों में पहुंचे।" उन्होंने आगे बताया कि जनपद में 150 से ज्यादा गोशालाएं हैं, जिन गौशालाओं में 25 से जायदा पशु हैं वहां ये योजना शुरू करेंगे।

अब तक 22 गोशालाओं में करीब 167 टन पराली पहुंच चुकी है। हमारा लक्ष्य है की अगले 15 दिन में हर ब्लॉक में 100-100 टन पराली पहुंच जाए। इस योजना से कई लाभ हैं। एक ट्राली गोबर की खाद 1500-1800 रुपए की है। दो ट्राली पराली पर एक ट्राली खाद मिल रही है। कंपोस्ट खाद मिलने पर किसान का डीएपी-यूरिया का खर्च कम होगा, वो जैविक की तरफ बढ़ेगा। पीके सिंह, मुख्य पशुचिकित्सक, उन्नाव

इस योजना को लेकर उन्नाव के उप निदेशक (कृषि) नंद किशोर गांव कनेक्शन को बताते हैं, किसान गोष्ठियों का आयोजन कर किसान भाइयों को फसल अवशेष न जलाने के लिए जागरूक किया जा रहा है और उन्हें इस योजना के बारे में भी बताया जा रहा है।" उन्नाव से शुरू की गई योजना की काफी लोग सराहना कर रहे हैं उत्तर प्रदेश में तारीफ तो हो ही रही है पीएमओ में भी इस योजना की बात पहुंची है। यूपी का सूचना विभाग जल्द उन्नाव का दौरा करेगा

खेतों में बढ़ते मशीनीकरण और धान का रकबा बढ़ने के बाद ज्यादातर बड़े किसान धान की कटाई कंबाइन हार्वेस्टर से करा रहे हैं, इसमें फसल का नीचे का हिस्सा (डंठल) छूट जाता है। किसान नई फसल बोने के बाद इस डंठल वाले हिस्से को फूंक दिया करते थे लेकिन पराली जलाने पर प्रतिबंध लगने के बाद किसानों को इसका निस्तारण करना होता है। लेकिन किसानों के लिए ये महंगा साबित होता है।

यह भी पढ़ें- दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण रोकने वाले कानून के क्या हैं प्रावधान? पराली और एक करोड़ रुपए के जुर्माने का क्या है कनेक्शन?

यूपी के लखीमपुर जिले में पलिया तहसील के किसान राजिंदर सिंह कहते हैं, "हम किसान भी पराली जलाना नहीं चाहते लेकिन किसान को धान कटाई के बाद नई फसल बोनी होती है। पहले जो खेत दो-तीन जुताई तैयार हो जाता था उसमें 5-6 जुताई करनी होती है। इतना महंगा डीजल और मजदूरी पराली का प्रबंधन काफी महंगा पड़ रहा है।"

पराली प्रबंधन को लेकर केंद्र सरकार की योजना के तहत पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सीटू मैनेजमेंट योजना के तहत समूह में किसानों को 15 लाख रुपए तक की फार्म मशीनरी 80 फीसदी अनुदान पर दी जाती है। किसानों को समूह के अलावा व्यक्तिगत कस्टम हायरिंग योजना के तहत 40 फीसदी छूट पर कृषि यंत्र दिए गए हैं। इन दोनों योजनाओं का लाभ लेने वाले किसानों को अपने आसपास के किसानों के खेतों को न्यूनतम किराए पर जुताई और फसल प्रबंधन करना होता है।

पराली प्रबंधन को लेकर भारत में कृषि अनुसंधान से जुड़ी सबसे बड़ी सरकारी संस्था भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने फसल अवशेषों (पराली) के निस्तारण के लिए वेस्ट डीकंपोजर को भी विकसित किया है। कृषि वैज्ञानिकों ने डीकंपोजर कैप्सूल तैयार किए हैं पराली को खेत में ही सड़ा देते हैं। इंडिया टुडे में छपी खबर के अनुसार एक पैकेट में आने वाले 4 कैप्सूल से 25 लीटर घोल बन सकता है। इस घोल को 2.5 एकड़ खेत में इस्तेमाल किया जा सकता है और इसकी लागत भी मात्र 20 रुपए आयेगी। पराली को खेत में मिला देने से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है लेकिन किसानों का कहना है उसके पास इतना समय और तकनीकी नहीं है कि वो पराली को खेत में ही सड़ा पाएं। इन सबके बीच पराली के बदले खाद योजना को एक बेहतर विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है।

उत्तर प्रदेश के कृषि सूर्य प्रताप साही के एक बयान के अनुसार प्रदेश में अब तक 150 से ज्यादा किसानों पर मुकदमे दर्ज किये जा चुके हैं और लगभग इतने ही किसानों से डेढ़ लाख रुपए की राशि बतौर जुर्माना वसूल किया गया है। प्रदेश सरकार पराली निस्तारण के लिए कृषि यंत्रों पर अनुदान भी दे रही है।

यह भी पढ़ें- मात्र 20 रुपए में पराली की समस्या से मिलेगा छुटकारा, प्रदूषण भी नहीं होगा और किसानों की लागत भी घटेगी

उत्तर प्रदेश में साल 2019 में छुट्टा गोवंश की समस्या को देखते हुए निराक्षित और आवारा पशुओं के लिए अस्थाई गोशाला योजना की शुरुआत की थी, जिसके तहत ग्रामीण और नगरीय दोनों ही इलाकों में अस्थाई गोशालाओं का निर्माण किया गया है। राजस्व, पंचायत, पशु विभाग और नेडा को मिलकार 11 विभाग इन गोशालाओं में पशुओं को पकड़ लाने, उन्हें रखने और उनके खाने पीने का इंतजाम करते हैं। सरकार इसके लिए भूसा की खरीद करती है। इन गोशालाओं में रखे गए पशुओं के लिए प्रति पशु रोजाना 30 रुपए सरकार की तरफ से निर्धारित किए गए हैं।

पराली के बदले खाद योजना से गोआश्रय केंद्रों में चारे की समस्या का भी समाधान हो सकता है।

उत्तर प्रदेश पशु चिकित्सक संघ के अध्यक्ष डॉ. राकेश कुमार ने बताया कि पिछले दिनों उन्होंने उत्तर प्रदेश गोसेवा आयोग के अध्यक्ष से मिलकर चारे की समस्या के बारे में बताया था। पशुओं को सीधे पराली तो नहीं खिलाई जा सकती लेकिन 5 फीसदी भूसे के साथ मिलाकर देने से पशुओं के चारे का इंतजाम हो सकता है।"

पशु चिकित्सा संघ के मुताबिक पराली के बदले खाद बेहतर विकल्प है। इसे प्रदेश की विविधता और चारे की उपल्बधता को देखते हुए लागू कर चारे का संकट सुलझाया जा सकता है, जैसे पश्चिमी यूपी गन्ने का फसल अवशेष और अगौरा (गन्ने का ऊपरी भाग) होता है। लेकिन निराश्रित पशुओं को स्वस्थ रखने के लिए उन्होंने भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान आईवीआरआई (बरेली) के वैज्ञानिकों द्वारा आहार फार्मूला बनवाने का सुझाव भी दिया है। क्योंकि सीधे पराली खिलाने से पशु वृद्धि दर घटने लगती है।

  

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