किसानों की आमदनी बढ़ाएंगी गेहूं की रोग प्रतिरोधी नई किस्में, मिलेगा बढ़िया उत्पादन

वैज्ञानिकों ने गेहूं और जौ की नई किस्में विकसित की हैं, जो ज्यादा उत्पादन देंगी और साथ ही फसल को नुकसान पहुंचाने वाले रोग भी नहीं लगेंगे, क्योंकि ये किस्में रोग प्रतिरोधी हैं।

Divendra SinghDivendra Singh   31 Aug 2020 5:06 AM GMT

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किसानों की आमदनी बढ़ाएंगी गेहूं की रोग प्रतिरोधी नई किस्में, मिलेगा बढ़िया उत्पादन

फसलों की नई उन्नत किस्मों के माध्यम से किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक नए-नए शोध करते रहते हैं, वैज्ञानिकों ने गेहूं और जौ की नई किस्में विकसित की हैं, जो किसानों की आमदनी बढ़ाने में मददगार बनेंगी।

भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल के निदेशक डॉ. जीपी सिंह नई किस्मों के बारे में बताते हैं, "हमारी कोशिश रहती है कि किसानों को ज्यादा उत्पादन देने वाली नई किस्में मिलती रहे, 24-25 अगस्त को हुए ग्लोबल व्हीट इंप्रूवमेंट सम्मिट में नई किस्मों को मंजूरी मिली है। ये सारी ज्यादा उत्पादन देने वाली किस्में हैं, जो देश के अलग-अलग क्षेत्रों के हिसाब से विकसित की गईं हैं।"

वो आगे कहते हैं, "इसमें 11 गेंहू और एक जौ की किस्म है, सारी किस्में ज्यादा उत्पादन मिलेगा, साथ ही ये किस्में रोग प्रतिरोधी किस्में हैं, जिससे इसमें कई तरह की बीमारियां लगने का खतरा नहीं रहता है, इसमें तीन किस्में से तो प्रति हेक्टेयर 75 कुंतल से ज्यादा उत्पादन मिला है।

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इसमें से नौ किस्में भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल और एक किस्म चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय, हिसार ने विकसित की है।

जौ की नई किस्म के बारे में डॉ जीपी सिंह ने बताया, "पहले भारत में उगने वाले जौ से बियर नहीं बनती थी, लेकिन ये नई किस्म बियर बनाने के लिए बेहतरीन किस्म है। इससे किसानों को अच्छा मुनाफा होगा, क्योंकि इसका अच्छा दाम किसानों को मिलेगा।"

भारत में लगभग 29.8 मिलियन हेक्टेयर में गेहूं की खेती होती है, देश में 2006-07 में गेहूं का उत्पादन 75.81 मिलियन मिट्रिक टन था, जोकि 2011-12 में काफी बढ़कर 94.88 मिलियन मीट्रिक टन हो गई है। हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य हैं।

गेहूं की नई किस्मों में उत्तरी पश्चिमी मैदान क्षेत्रों (NEPZ) के लिए विकसित किस्में जो कि पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर मंडल को छोड़कर), पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के जम्मू और कठुआ जिले, हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले और उत्तराखंड के तराई क्षेत्र के लिए विकसित की गई है। इसमें पहली किस्म एचडी 3298 (HD 3298), जोकि सिंचित और देरी से बोई जाने वाली किस्म है, इन क्षेत्रों के लिए लिए दूसरी किस्में डीडब्ल्यू 187( DBW 187), डीडब्ल्यू 3030 ( DBW 303) और डब्ल्यूएच 1270 (WH 1270) किस्म है, ये तीनों किस्में जल्दी बोई जाने वाली और सिंचित क्षेत्रों के लिए विकसित की गईं हैं।

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विशेष आर्थिक क्षेत्रों जैसे पू्र्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल के लिए एचडी 3293 (HD3293) किस्म विकसित की गई है, जो सिंचित क्षेत्रों में समय पर बोई जाने वाली किस्म है।

मध्य क्षेत्र जैसे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कोटा और राजस्थान के उदयपुर डिविजन और उत्तर प्रदेश के झांसी मंडल के लिए सीजी1029 (CG 1029) और एचआई1634 (HI 1634) किस्म विकसित की गई है, जोकि सिंचित क्षेत्रों में देर से बोई जाने वाली किस्म है।

प्रायद्वीपीय क्षेत्रों जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गोवा और तमिलनाडू के लिए डीडीडब्ल्यू 48 (DDW 48), जोकि सिंचित और समय पर बोई जाने वाली किस्म है, एचआई 1633 (HI 1633) जो कि सिंचित और देर से बोई जाने वाली किस्म है, इसके साथ ही इन क्षेत्रों के लिए सिंचित और समय से बोई जाने वाली किस्म एनआईडीडब्ल्यू 1149 ( NIDW 1149) विकसित की गई है।

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