आलू की तीन नई प्रजातियों से किसानों को होगा फायदा, ये है इनकी खासियत

सीपीआरआई ने विभिन्न जलवायु क्षेत्रों के लिए अब तक 51 आलू की प्रजातियां विकसित की हैं। इन प्रजातियों को देश के अलग-अलग क्षेत्रों में लगाया जाता है।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   12 Oct 2018 4:58 AM GMT

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आलू की तीन नई प्रजातियों से किसानों को होगा फायदा, ये है इनकी खासियत

लखनऊ। केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला (सीपीआरआई) ने आलू की तीन नई प्रजातियां विकसित की हैं। संस्‍थान ने अपने 70वें स्थापना दिवस पर इन तीन प्रजातियों को राष्ट्र को समर्पित किया। इन तीन प्रजातियों के नाम हैं- कुफरी गंगा, कुफरी नीलकंठ और कुफरी लीमा।

केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान शिमला (सीपीआरआई) के वैज्ञानिक डॉ. विनय भारद्वाज ने बताया, ''हमने आलू की तीन नई प्रजातियां विकसित की हैं। ये तीनों ही मैदानी इलाकों के लिए है। इन प्रजातियों के आलू का आकार अच्‍छा है, जिससे किसानों को लाभ मिल सकेगा। साथ ही ये आलू पकने में आसान हैं और इनका स्‍वाद भी बहुत अच्‍छा है। किसानों को इन प्रजातियों के बीज जल्‍द ही उपलब्‍ध हो जाएंगे।''

प्रजातियों की खासियत

डॉ. विनय भारद्वाज ने आलू की तीन नई प्रजातियां की खासियत भी बताई। उनके मुताबिक, आलू की इन फसलों से अच्‍छी पैदावर होगी, जिससे किसानों को फायदा मिलेगा।

1. कुफरी गंगा

- 15 अक्‍टूबर से 5 नवंबर के बीच लगाया जाए।

- इसका रंग सफेद क्रीम सा है।

- 100 दिन में फसल तैयार।

- एक हेक्‍टेयर में 35 से 40 टन की उपज।

- 15-16 प्रतिशत शुश्‍क पदार्श की मात्रा।

- भंडारण के लिए अच्‍छा।

- 15 से 20 मिनट में पक जाता है, स्‍वाद भी अच्‍छा।


2. कुफरी नीलकंठ

- 15 अक्‍टूबर से 5 नवंबर के बीच लगाया जाए।

- इसका रंग बैंगनी है।

- पंजाब, हरियाणा, उत्‍तर प्रदेश, बिहार, छत्‍तीसगढ़ के लिए उपयुक्‍त फसल।

- 90 से 100 दिन में फसल तैयार।

- एक हेक्‍टेयर में 35 से 40 टन की उपज।

- 18 प्रतिशत शुश्‍क पदार्श की मात्रा।

- भंडारण के लिए अच्‍छा।

- पकने में आसान, स्‍वाद भी अच्‍छा।

3. कुफरी लीमा

- अधिक तापमान वाली जगहों के लिए भी उपयुक्‍त।

- समय से पूर्व लगाने के लिए भी बेहतर।

- इसका रंग सफेद क्रीम सा है।

- 90 से 100 दिन में फसल तैयार।

- एक हेक्‍टेयर में 30 से 35 टन की उपज।

- 18 प्रतिशत शुश्‍क पदार्श की मात्रा।

- 15 से 20 मिनट में पक जाता है।

यह भी पढ़ें: आलू की खेती का सही समय, झुलसा अवरोधी किस्मों का करें चयन

बता दें, सीपीआरआई ने विभिन्न जलवायु क्षेत्रों के लिए अब तक 51 आलू की प्रजातियां विकसित की हैं। इन प्रजातियों को देश के अलग-अलग क्षेत्रों में लगाया जाता है। देश की जलवायु और भैगोलिक परिस्‍थ‍ितियां ऐसी हैं कि वर्ष भर कहीं न कहीं आलू की खेती होती रहती है। यूपी, पश्‍चिम बंगाल, बिहार, मध्‍य प्रदेश, पंजाब और हिमाचल आलू के उत्‍पादन में अग्रणी राज्‍य माने जाते हैं।

देश में सबसे ज्यादा आलू उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है। देश के कुल उत्पादन में 32 फीसदी हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश की है। यहां 2016-17 के सीजन में 15076.88 मिट्रिक टन आलू का उत्पादन हुआ था। सीपीआरआई के मुताबिक, भविष्‍य में आलू सब्‍जी से कहीं ज्‍यादा होगा, ये खाद्य सुरक्षा के तौर देखा जाएगा। 2050 तक आलू की मांग 125 लाख टन के करीब होगी। WOFOST मॉडल के मुताबिक, 2050 के दौरान आलू की पैदावार 34.51 टन प्रति हेक्टेयर होगी और हमें अनुमानित मांग को पूरा करने के लिए 3.62 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र आलू का रकबा रहेगा। फिलहाल दुनिया में गेहूं, चावल और मक्‍के के बाद आलू ही एक ऐसी फसल है जो सबसे ज्‍यादा पैदा की जाती है।


आलू की खेती का सही मौसम

आलू की खेती रबी मौसम में की जाती है। समान्यरूप से अच्छी खेती के लिए फसल अवधि के दौरान दिन का तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तथा रात का तापमान 4-15 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। फसल में कन्द लगभग 18 से 20 डिग्री सेल्सियस तापक्रम सर्वोत्तम होता है। कन्द बनने से पहले कुछ अधिक तापक्रम रहने पर फसल के वानस्पतिक वृद्धि अच्छी होती है, लेकिन कन्द बनने के समय अधिक तापक्रम होने पर कन्द बनना रुक जाता है। लगभग 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापक्रम होने पर आलू की फसल मे कन्द बनना बिल्कुल बंद हो जाता है।

आलू की खेती का सही समय

आलू बोने का सही समय मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर है। आलू की फसल विभिन्न प्रकार की भूमि का पीएच मान 6:00 से 8:00 के मध्य हो सकती है, लेकिन बलुई दोमट तथा दोमट मिट्टी उचित जल निकास वाली उपयुक्त होती है। 40 से 50 कुन्तल गोबर की खाद प्रति बीघा प्रयोग करने से जीवांश पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है, जो कन्दों की पैदावार बढ़ाने मे सहायक होती है।


भारतीय आलू की प्रजातियों में क्‍यों जुड़ा है 'कुफरी' शब्‍द?

क्‍या आपने कभी सोचा है कि भारतीय आलू कीह प्रजातियों में 'कुफरी' शब्‍द क्‍यों जुड़ा है। इसके पीछे भी खास वजह है। सीपीआरआई की वेबसाइट से मिली जानकारी के अनुसार, आलू की नई किस्‍मों के विकास के लिए प्रजनन आवश्‍यक है और प्रजनन क्रिया फूल से की जाती है। मैदानी इलकों में आलू की फसल पर फूल नहीं लगते, लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों की फसल पर फूल लगते हैं। ऐसे में हिमाचल प्रदेश के शिमला की पहाड़ियों पर कुफरी नामक एक जगह है, जिसे फूल लगने के लिए सबसे उपयुक्‍त माना गया है। इसलिए आलू की सभी भारतीय किस्‍मों का विकास यहीं से होता है और उन किस्‍मों का नाम 'कुफरी' शब्‍द से ही शुरू होता है।

      

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