छोटे और मध्यम स्तर के उद्यमों के खर्च में कमी ला सकती अपशिष्ट जल शोधन की नई तकनीक

इस तकनीक से जल शोधन के बाद तेल को पानी से अलग कर के औद्योगिक बर्नर तेल, भट्ठी तेल, मोल्ड तेल, हाइड्रोलिक तेल आदि के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
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ऑटोमोबाइल सर्विसिंग उद्योग, खाद्य उद्योग और छोटे और मध्यम स्तर के दूसरे उद्यमों को तेल युक्त पानी के शोधन के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा। बिजली से चलने से चलने वाले उपकरण से आसानी से तैलीय अपशिष्ट जल के शोधन हो जाएगा।

छोटे उद्योग से जुड़े लोग तैलीय अपशिष्ट जल के शोधन के लिए महंगे उपकरण नहीं लगा पाते है, जिसके कारण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिशानिर्देशों का पालन किए बगैर बड़ी मात्रा में बिना शोधित किए हुए तैलीय अपशिष्ट जल को नदी-नालों में ऐसे ही छोड़ देते हैं।

कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय में केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर डॉ. चिरंजीब भट्टाचार्जी द्वारा विकसित तकनीक, अपशिष्ट जल के शोधन के लिए इलेक्ट्रोकोएग्यूलेशन और इलेक्ट्रोफ्लोटेशन एन्हांस्ड मेम्ब्रेन मॉड्यूल (ईसीईएफएमएम) तकनीकों के संयोजन का उपयोग करती है।

इलेक्ट्रोकोएग्यूलेशन अपशिष्ट जल को शोधित करने की एक तकनीक है, जोकि कण के सतह के आवेश को बदलने के लिए विद्युत आवेश का उपयोग करके निलंबित पदार्थ को समुच्चय बनाने की अनुमति देती है और इलेक्ट्रोफ्लोटेशन पानी से बिजली का प्रवाह कराकर उत्पन्न किए गए हाइड्रोजन और ऑक्सीजन बुलबुले का उपयोग करके पानी से निलंबित कणों को अलग कर देते हैं।

 इलेक्ट्रोकोएग्यूलेशन और इलेक्ट्रोफ्लोटेशन एन्हांस्ड मेम्ब्रेन मॉड्यूल (ईसीईएफएमएम)

इस विकसित मॉड्यूल में, इलेक्ट्रोकोएग्यूलेशन और इलेक्ट्रोफ्लोटेशन एक ही स्वदेशी सेटअप में झिल्ली से जुड़े होते हैं। फ़ीड माध्यम या अपशिष्ट जल के माध्यम से हाइड्रोजन की खदबदाहट के कारण उत्पन्न हलचल झिल्ली पर तेल के जमाव का प्रतिरोध करती है। हाइड्रोजन की खदबदाहट और झिल्ली मॉड्यूल के घूर्णन (रोटेशन) का सहक्रियात्मक प्रभाव मिश्रण के भीतर और झिल्ली की सतह पर पर्याप्त हलचल पैदा करता है।

झिल्ली पृथक्करण के दौरान विद्युत क्षेत्र के अनुप्रयोग से, झिल्ली की अशुद्धि काफी हद तक कम हो जाती है और झिल्ली की उम्र बढ़ने को लंबे समय तक सीमित करके झिल्ली का आयुकाल भी बढ़ाया जाता है। इस प्रकार बार-बार झिल्ली बदलने की जरूरत नहीं होती है, जिससे रखरखाव की लागत काफी हद तक कम हो जाती है।

छोटे और मध्यम स्तरीय उद्यमों के लिए आर्थिक रूप से व्यवहारिक अपशिष्ट जल शोधन प्रौद्योगिकी (पूंजी और आवर्ती निवेश, दोनों के मामले में) होने के नाते इस नवाचार में बाजार में सफल होने की अच्छी क्षमता है। इसके अलावा, शोधन के अन्य पारंपरिक तरीकों के उलट, यह इलेक्ट्रिक डिस्चार्ज के माध्यम से अत्यधिक स्थिर तेल-पानी के इमल्शन को तोड़ सकता है और साथ ही साथ अत्यधिक दक्षता के साथ तेल को पानी से अलग करता है। यही नहीं, एकल हाइब्रिड ईसीईएफएमएम सेटअप में झिल्ली मॉड्यूल के साथ इलेक्ट्रोकेमिकल प्रक्रिया सेटअप को एकीकृत करके, एक प्रक्रिया को समाप्त कर दिया गया है। यह उपाय स्थापना के लिए कम क्षेत्र की जरूरत के अतिरिक्त लाभ के साथ प्रारंभिक पूंजी निवेश संबंधी व्यय को काफी कम कर देता है।

भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एडवांस्ड मैन्यूफैक्चरिंग टेक्नोलॉजीज कार्यक्रम के सहयोग से विकसित इस तकनीक को न्यूनतम श्रमशक्ति की आवश्यकता होती है और इसके संचालन के लिए उच्च तकनीकी कुशलता की जरूरत नहीं होती है। इस प्रकार, यह परिचालन संबंधी खर्चे को काफी हद तक कम कर देता है।

(ए) ईसीईएफएमएम के संचालन के लिए योजनाबद्ध प्रक्रिया प्रवाह आरेख; (बी) ईसीईएफएमएम के कार्य सिद्धांत के लिए योजनाबद्ध आरेख; (सी): ऑपरेशन के विभिन्न तरीकों पर समय के साथ सामान्यीकृत पारगम्य प्रवाह (एनजे) की भिन्नता का तुलनात्मक विश्लेषण।

तैलीय अपशिष्ट जल के शोधन के बाद खर्च हो चुके तेल के फिर से प्राप्त होने पर उसका उपयोग औद्योगिक बर्नर तेल, भट्ठी तेल, मोल्ड तेल, हाइड्रोलिक तेल आदि के रूप में किया जा सकता है। इस प्रकार, यह प्रौद्योगिकी इस तरह से एकत्रित किए गए खर्च हो चुके तेल को बेचकर निम्न-आय वाले समूहों के लिए अतिरिक्त आय का साधन भी बन सकता है।

ज्यादा गैरेज वाले क्षेत्र में, इसके एक सेटअप की स्थापना अपशिष्ट जल के शोधन के उद्देश्य की पूर्ति करेगी और इस तरह अन्य निम्न-आय वर्ग के उपयोगकर्ताओं के लिए पीसीबी के नियमों के भीतर जल प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने के अवसरों का विस्तार करेगी। इसे ‘मेक इन इंडिया’ पहल के साथ जोड़ा गया है। इसके प्रोटोटाइप का सत्यापन और परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है, और पायलट पैमाने पर इसका सत्यापन और परीक्षण पूरा होने के कगार पर है।

अब तक, इस तरह के तैलीय अपशिष्ट जल के शोधन के लिए विभिन्न क्षेत्रों में चलने वाली पृथक्करण की तकनीक में एक इलेक्ट्रोलाइटिक सेल या डीएएफ की स्थापना शामिल होती है जिसके बाद झिल्लीवाली इकाई की स्थापना होती है। डॉ. भट्टाचार्जी ने बताया कि दो अलग-अलग इकाइयों को स्थापित करने के लिए वर्तमान इकाई, जहां एक ही इकाई में दो-इकाई के संचालन को मिला दिया जा रहा है, की तुलना में एक उच्च पदचिह्न क्षेत्र (हाई फुटप्रिंट एरिया) की जरूरत होती है।

यह प्रोटोटाइप नवाचार प्रौद्योगिकी तैयारी स्तर के स्तर-6 की ओर बढ़ गया है और डॉ. चिरंजीब भट्टाचार्जी ने औद्योगिक सहयोग और इस नवाचार को आगे बढ़ाने के लिए कॉन्सेप्टस इंटरनेशनल के साथ भागीदारी की है। उन्होंने स्टार्ट-अप के माध्यम से पायलट-स्केल मॉड्यूल, नेटवर्किंग और फील्ड इंस्टॉलेशन, और उपकरणों के व्यावसायीकरण के साथ फील्ड रन को आगे बढ़ाने की योजना बनाई है। 

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