2014-15 में पत्रकारों पर हमलों की 142 घटनाएं, फिर भी अलग कानून के लिए केंद्र राजी नहीं
गाँव कनेक्शन 11 April 2017 6:43 PM GMT
नई दिल्ली (भाषा)। सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में कहा कि 2014-15 में देश के विभिन्न हिस्सों में पत्रकारों पर हमलों की 142 घटनाएं सामने आईं, हालांकि पत्रकारों पर हमलों को लेकर अलग कानून बनाने की उसकी कोई योजना नहीं है और मौजूदा कानून पर्याप्त हैं।
वहीं सदन में कई सदस्यों ने पत्रकारों पर हमले के मुद्दे को उठाते हुए सरकार से इस संबंध में अलग कानून बनाने की जरूरत पर जोर दिया। गृह राज्यमंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने प्रश्नकाल में कहा कि पत्रकार या किसी विशेष व्यवसाय के लोगों की सुरक्षा के लिए अलग कानून बनाने का उसका कोई विचार नहीं है। उन्होंने कहा कि पत्रकारों समेत सभी नागरिकों की सुरक्षा के लिए देश में मौजूदा विद्यमान कानून पर्याप्त हैं। पत्रकारों के मामले में भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) के माध्यम से शिकायतों पर संज्ञान लिया जाता है।
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मंत्री ने बताया कि पीसीआई की एक उप-समिति ने गृह मंत्रालय को इस संबंध में कुछ सिफारिशें भेजी थीं, लेकिन अभी तक हमने उन्हें स्वीकार नहीं किया है। उन्होंने कहा कि पुलिस और कानून व्यवस्था राज्य का विषय है और पत्रकारों को सुरक्षा प्रदान करना राज्यों की जिम्मेदारी है। केंद्र उसमें हस्तक्षेप नहीं करता।
मुआवजे का प्रावधान भी नहीं
उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में यह भी कहा कि हमलों में मारे गये पत्रकारों के परिवार वालों को केंद्र या राज्य सरकार द्वारा मुआवजे का कोई प्रावधान नहीं है। पत्रकार जिस संस्थान में कार्यरत होते हैं, वो ही मुआवजा देते हैं। मंत्री ने बताया कि साल 2014-15 में देश के विभिन्न हिस्सों में पत्रकारों पर हमलों की 142 घटनाएं सामने आईं। उन्होंने कहा कि 2014 में पत्रकारों पर हमलों की 114 घटनाएं सामने आईं, जिनमें 32 लोगों को गिरफ्तार किया गया। 2015 में 28 ऐसी घटनाएं घटीं जिनमें 41 लोगों को गिरफ्तार किया गया। बिहार में सीवान के पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या के मामले में एक सदस्य के प्रश्न के उत्तर में मंत्री ने कहा कि राज्य सरकार की सिफारिश पर इस मामले में सीबीआई जांच चल रही है।
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