ग्रामीण भारत की 42% गर्भवती महिलाओं की नहीं हुई नियमित जांचें और टीकाकरण: गाँव कनेक्शन सर्वे

डॉक्टर्स के अनुसार गर्भवती महिला की प्रसव पूर्व होने वाली नियमित जांचें और टीकाकरण होना अत्यंत महत्वपूर्ण है, लेकिन कोरोना से जंग जीतने जुटे भारत में स्वास्थ्य के स्तर पर ऐसी कई गलतियां हुईं जिसका खामियाज़ा गर्भवती महिलाओं को उठाना पड़ रहा है।

Neetu SinghNeetu Singh   18 Aug 2020 10:48 AM GMT

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ढाई महीने की गर्भवती परवीन को मेडिकल कंडीशन (मिस्करेज) की वजह से गर्भपात कराने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि लॉकडाउन की वजह से इनकी जांच नहीं हो पायी थी।

परवीन (28 वर्ष) के साथ हुई इस अनहोनी के लिए उस गाँव की आशा कार्यकर्ता कुसुम सिंह ने जो वजह बताई वो वजह स्वास्थ्य व्यवस्था पर कई सवाल खड़े करती है।

कुसुम ने बताया, "परवीन का यह तीसरा बच्चा था, मार्च के पहले सप्ताह में एएनएम ने जब गाँव में इनकी जांच की थी तभी पता था इनमें खून की कमी है। इसके बाद लॉकडाउन पड़ गया, फिर हम इनकी न तो कोई जांच करा पाए और न दवा दिला पाए। जिस वजह से इनका बच्चा पेट में ही खराब हो गया।"

डॉक्टर्स के अनुसार गर्भवती महिला की गर्भावस्था के दौरान हर महीने होने वाली प्रसव पूर्व नियमित जांचें और टीकाकरण होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। नियमित जांचे होने से यह पता चलता है कि जच्चा-बच्चा को किसी प्रकार की कोई दिक्कत तो नहीं। कोरोना से जंग जीतने जुटे भारत में स्वास्थ्य के स्तर पर ऐसी कई गलतियां हुईं जिसका खामियाज़ा परवीन जैसी लाखों गर्भवती महिलाओं को उठाना पड़ रहा है।


गाँव कनेक्शन के राष्ट्रीय सर्वे 2020 के आंकड़ों के अनुसार ऐसे घर जिनमें गर्भवती महिलाएं थीं, उनमें से 42% लोगों ने कहा कि लॉकडाउन के कारण वे गर्भावस्था के दौरान होने वाली नियमित जांचे (चेकअप) और टीकाकरण नहीं करा सकीं।

कोरोनाकाल में ग्रामीण भारत की मुश्किलों को समझने के लिए भारत के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया संस्थान गांव कनेक्शन के डेटा और इनसाइट्स विंग 'गांव कनेक्शन इनसाइट्स' द्वारा एक राष्ट्रीय सर्वे किया गया। यह सर्वे देश के 23 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 179 जिलों में 30 मई से 16 जुलाई, 2020 के बीच हुआ, जिसमें 25,300 उत्तरदाता शामिल हुए। इस सर्वे में हर वर्ग से जुड़े सवाल पूछे गये जिसमें महिला स्वास्थ्य से जुड़े सवाल महत्वपूर्ण थे।

सर्वे में गर्भवती महिलाओं से यह पूछा गया था कि क्या गर्भवती महिला का लॉक डाउन के दौरान टीकाकरण और प्रसव पूर्व जांच हुई है या नहीं? इस सवाल के जवाब में 58 फीसदी लोगों ने हां कहा वहीं 42 प्रतिशत का जवाब न में था।

एक गर्भवती महिला के लिए प्रसव पूर्व होने वाली नियमित जांचें और टीकाकरण लगना कितना जरूरी है, अगर समय से नहीं लग पाया तो क्या मुश्किलें आ सकती हैं? इस सवाल के जवाब में डॉ उषा एम कुमार (स्त्री रोग विशेषज्ञ) कहती हैं, "किसी भी गर्भवती महिला की नौ महीने के दौरान होने वाली जांचें और अल्ट्रासाउंड हर महीने के हिसाब से जरूरी होते हैं। जांच न होना माँ और बच्चा दोनों के लिए बहुत खतरनाक हैं। टीका एक दो महीने न लगने से कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन शुरुआती तीन महीने की जांचें और अल्ट्रासाउंड बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।" डॉ उषा दिल्ली के मैक्स अस्पताल की वरिष्ठ सलाहकार हैं।

गाँव कनेक्शन के सर्वे के अनुसार हर 10 में से चौथी गर्भवती महिला की प्रसव पूर्व जांच (चेकअप) और टीकाकरण नहीं हो पाया।


मध्यप्रदेश की रंजना (35 वर्ष) छह महीने की गर्भवती हैं पर इनके अभी तक न कोई टीका लगा है और न कोई जांच हुई है। ये गाँव कनेक्शन को बताती हैं, "लॉकडाउन में सब कुछ तो बंद था, अस्पताल कैसे जाते? गाँव में कोई लगाने आया नहीं, कोरोना के डर से अस्पताल जाने में डर लग रहा है तभी नहीं कराए।"

रंजना ग्रामीण भारत की पहली महिला नहीं हैं जिनका टीकाकरण और प्रसव पूर्व जांच नहीं हो पायी। कहीं स्वास्थ्य विभाग की अनिमित्ताएं रहीं तो कहीं कोरोना वायरस के संक्रमण का डर रहा जिसकी वजह से देश की लाखों महिलाएं गर्भावस्था के दौरान होने वाली महत्वपूर्ण जांचें और टीकाकरण से वंचित रह गईं।

भोपाल के ईंट खेड़ी गाँव की आशा सहयोगी ममता कुशवाहा ने बताया, "लॉकडाउन में ऐसी स्थिति थी कि गर्भवती महिलाओं के प्रसव तक के लिए एम्बुलेंस नहीं आ रही थी, जांच और टीकाकरण की तो बात छोड़िए। जांच और टीकाकरण कहने को तो कभी बंद नहीं हुआ पर सुचारू रूप से कभी चला भी नहीं। आशाओं को इतने काम दे दिए गये थे वो क्या-क्या करतीं?"

गाँव कनेक्शन के सर्वे के आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश में 36 फीसदी गर्भवती महिलाओं ने कहा कि उनकी प्रसव पूर्व जांचें और टीकाकरण नहीं हो पाया जबकि 64 फीसदी गर्भवती महिलाओं ने यह स्वीकारा कि लॉकडाउन में भी उनकी प्रसव पूर्व जांचें और टीकाकरण हुए।


राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, मध्यप्रदेश के डिप्टी डायरेक्टर डॉ शैलेश साकल्ले गाँव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "छोटे बच्चे और गर्भवती माताएं हमेशा से मुख्य लक्ष्य रहे हैं। लॉकडाउन के शुरुआती स्टेज में ही हमने आशाओं को एक एडवाइजरी जारी कर दी थी कि ये स्वयं को सुरक्षित रखते हुए, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए टीकाकरण का काम बंद न करें। शुरुआत के एक दो सप्ताह के बाद महिलाओं और बच्चों का टीकाकरण और जांचें मध्य प्रदेश में नियमित रूप से हुई हैं।"

"ग्राम स्वास्थ्य एवं पोषण दिवस' कुछ समय के लिए ही बंद रहा, बाद में ये भी गाँव-गाँव में शुरू हो गया। आपके सर्वे में जो आंकड़े आये हैं कि मध्य प्रदेश में 64% महिलाओं का टीकाकरण और जांच लॉकडाउन में हुई हैं, ये सच है, मुझे लगता है आंकड़ों से ज्यादा यहाँ काम हुआ है, " डॉ शैलेश साकल्ले ने कहा।

स्वास्थ्य मंत्रालय के आदेशानुसार लॉक डाउन में गर्भवती महिलाओं की जांचें और टीकाकरण प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर बंद नहीं रहीं लेकिन कई राज्यों में लॉक डाउन के समय जब गाँव कनेक्शन ने इसकी पड़ताल की थी तब ये सामने निकलकर आया था कि ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य की ये सेवाएं शिथिल पड़ी हुई हैं। लॉकडाउन के बाद दोबारा से जब गाँव कनेक्शन ने इसकी पड़ताल की तो अब ज्यादातर राज्यों में ये सेवाएं शुरू हो गयी हैं पर सुचारू रूप से चल रही हैं ये कह पाना अभी भी थोड़ा मुश्किल है।

गाँव कनेक्शन के सर्वे के अनुसार अगर राज्यवार आंकड़ों की प्रसव पूर्व जांच और टीकाकरण होने की बात करें तो सबसे ज्यादा टीकाकरण राजस्थान- 87 प्रतिशत, उत्तराखंड- 84 प्रतिशत, बिहार- 66 प्रतिशत, मध्य प्रदेश- 64 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश- 57 प्रतिशत, असम- 55 प्रतिशत, झारखंड- 52 प्रतिशत और केरल में 48 प्रतिशत हुआ। सबसे कम टीकाकरण और प्रसव पूर्व जांच उड़ीसा में 33 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 29 प्रतिशत हुआ।


राजस्थान में स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहीं छाया पचौली गाँव कनेक्शन के आंकड़ों पर कहती हैं, "ये आंकड़े शायद इसलिए इतने ज्यादा आये हैं क्योंकि राजस्थान में सामुदायिक और प्राथमिक केन्द्रों पर ये जांचें कभी बंद नहीं रहीं शिथिल जरुर पड़ीं। गाँव स्तर पर जो सेवाएं बंद थी जून से वो भी शुरू हो गईं। सेवाएं बंद भले नहीं थीं लेकिन स्वास्थ्य केन्द्रों पर लोग बहुत ज्यादा संख्या में टीकाकरण या जांच कराने नहीं पहुंचे, इसलिए ये आंकड़े मुझे थोड़े ज्यादा लग रहे हैं।" छाया प्रयास संस्था की निदेशक और जन स्वास्थ्य अभियान की राज्य संयोजक हैं।

'जन स्वास्थ्य अभियान' स्वास्थ्य के क्षेत्र में एडवोकेसी करने वाली एक संस्था है। इस संस्था ने एक सर्वे के बाद सरकार को भेजे एक पत्र में लिखा था कि मार्च महीने में राजस्थान में करीब 2.5 लाख से ज्यादा गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व जांचे नहीं हुई हैं। ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य सेवाएं जल्द शुरू करने की मांग की थी।

छाया पचौली बताती हैं, "लॉकडाउन के दौरान राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में 30 आदिवासी गाँव का एक सर्वे किया गया था जिसमें 150 गर्भवती महिलाओं की जो प्रसव पूर्व जांच होनी चाहिए वो नहीं हुई थी।"

प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान की वेबसाइट के अनुसार हर साल लगभग 44000 महिलाएं गर्भावस्था संबंधी कारणों के कारण मर जाती हैं। असमय होने वाली इन मौतों को रोकने के लिए 31 जुलाई 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान' की शुरुआत की गयी।

इस अभियान के तहत हर महीने की नौ तारीख को हर राज्य में गर्भवती महिलाओं की प्रसव सम्बंधी उन सभी बातों का ध्यान रखा जाता है जिससे मातृ मृत्यु दर को रोका जा सके। लेकिन लॉक डाउन में यह अभियान बंद रहा, जिसकी वजह से महिलाओं की जांचें और टीकाकरण ज्यादा नहीं हो पाया।


डॉ उषा नौ महीने के दौरान होने वाली जांच और टीकाकरण की महत्ता बताती हैं, "गर्भवती महिला के शुरुआत के तीन महीने में ब्लड टेस्ट की जांचे जैसे-एचआईवी, ब्लड शुगर, थाईराइड हो जाना चाहिए। इस समय हुए अल्ट्रासाउंड से यह पता चलता है कि बच्चा ट्यूब में है या नहीं। पांचवे महीने में दूसरा अल्ट्रासाउंड होता है जिसमें बच्चे के शरीर के अंगों और उसके मानसिक विकास के बारे में पता चलता है।"

"पहला टिटनेस का टीका तीन महीने तक और दूसरा पांचवे महीने में लग जाना चाहिए। 26 हफ्ते में एक ब्लड शुगर जांच हो जाए जिससे बच्चे और माँ में डायबिटीज की संभावना के बारे में पता चल सके। साढ़े आठ महीने में एक और अल्ट्रासाउंड होता है जिससे यह पता चलता है कि बच्चा किस अवस्था में है, पैदा होने में कोई मुश्किल तो नहीं है। रूटीन जांच हर तिमाही होती है," डॉ उषा ने हर महीने होने वाली जांचों के फायदे गिनाए।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, राजस्थान के मिशन निदेशक नरेश कुमार ठकराल ने बताया, "जितने भी लेबर रूम हैं, जितने भी जिला अस्पताल हैं, स्पेशल मदर एंड चाइल्ड हॉस्पिटल हैं इनकी सेवाओं पर कोई असर नहीं पड़ा। प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर जांच और टीकाकरण कभी बंद नहीं रहा, केवल ओपीडी को कम किया गया है।"


गाँव कनेक्शन सर्वे 2020 के अनुसार गर्भवती महिलाओं की जांच और टीकाकरण रेड ग्रीन में 44 प्रतिशत, ऑरेंज जोन में 63 प्रतिशत ग्रीन जोन में 59 फीसदी हुआ है।

बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति के द्वारा 17 अप्रैल को जारी एक पत्र में प्रसव पूर्व जांच सुविधा में 50 फीसदी की कमी और संस्थागत प्रसव में 48 फीसदी गिरावट होने की बात लिखी थी।

"तीन महीने के लॉकडाउन में मेरे जिले में टीकाकरण और जांच बिलकुल नहीं हुई। जो परिवार सक्षम हैं उन घरों की कुछ गर्भवती महिलाओं ने प्राईवेट अस्पताल में जाकर ये जांचें करा लीं लेकिन मजदूर तबके की महिलाओं की कोई जांच नहीं हुई। जून से ये जांचे फिर से शुरू हुई हैं। तीन महीने कमाई बंद होने से इनका खानपान बहुत अच्छा नहीं रहा तभी ज्यादातर महिलाओं की जांच में खून की कमी आ रही है," आशा कार्यकर्ता अनीता शर्मा ने बिहार के मुज्जफरपुर जिले की स्थिति बताई।

सर्वे के आंकड़ों के अनुसार बिहार में 34 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं की जांच और टीकाकरण नहीं हुआ।

ये हैं चंबल नदी के किनारे रहने वाली नौ महीने की गर्भवती सोनम, इनकी न कोई जांच हुई और न टीकाकरण लगा.

गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व देखभाल इसलिए जरूरी है क्योंकि केवल 30.3 फीसदी भारतीय महिलाएं ही 100 दिन या इससे कुछ दिन ज्यादा आयरन और फोलिक एसिड गोलियों का सेवन करती हैं। जिसकी वजह से 50.3 फीसदी गर्भवती महिलाओं और 58.4 फीसदी बच्चों में खून की कमी है। ये कमी मातृ मृत्यु दर और जन्म के समय शिशु मृत्यु दर एक मुख्य वजह है।

झारखंड के जमशेदपुर में गर्भवती महिलाओं के साथ ग्रामीण स्तर पर काम करने वाली सहिया साथी भाषा शर्मा ने बताया, "मई महीने में जांच और टीकाकरण शुरू हो गया है लेकिन अभी दिक्कत यह आ रही है कि सबकी जांचें नहीं हो रही हैं, जो महिलाएं सातवें, आठवें और नौवें महीने की गर्भवती हैं केवल उन्ही की जांच हो रही है।"

सर्वे के आंकड़ों के अनुसार झारखंड राज्य में 48 फीसदी गर्भवती महिलाओं की कोई भी जांच और टीकाकरण लॉकडाउन में नहीं हो सका।

मध्यप्रदेश में 64 प्रतिशत महिलाओं की जांच और टीकाकरण के आये आंकड़ों से जन स्वास्थ्य अभियान के राष्ट्रीय सह-संयोजक डॉ अमूल्य निधि असहमत हैं। वो कहते हैं, "अप्रैल और मई महीने में यहाँ रूटीन हेल्थ प्रोग्राम बिलकुल शिथिल था। रूटीन टीकाकरण अभी भी बंद है। प्रसव के समय होने वाली सभी जांचें और टीकाकरण लॉकडाउन में लगना संभव भी नहीं है खासकर तब जब यातायात के साधन बंद हों। कोविड-19 से पहले मध्य प्रदेश में टीकाकरण और जांच के जो सरकारी आंकड़े आये थे वो 50-60 प्रतिशत थे फिर लॉकडाउन में 64 प्रतिशत तक होना काफी ज्यादा है।


डॉ अमूल्य ने आंकड़े ज्यादा आने की एक वजह ये भी बताई कि मध्य प्रदेश में एक जुलाई से 15 जुलाई तक किल कोरोना अभियान चलाया गया था, इससे पहले भी कोविड-19 से सम्बंधित कई सर्वे और घर-घर जाकर जांचें होती रही हैं, हो सकता हैं इन जांचों को ही गर्भवती महिलाओं ने प्रसव पूर्व जांच समझ लिया हो तभी ये आंकड़े बढ़े हुए हैं।

किल कोरोना अभियान के दौरान मध्य प्रदेश में 1, 47, 853 गर्भवती महिलाएं निकली जिनका टीकाकरण नहीं हुआ था, अब जिलेवार योजना बनाकर इनका टीकाकरण किया जा रहा है।

यूपी के अटेसुवा गाँव की आशा कुसुम सिंह से जब हमने पुछा कि जांच न होने से एक गर्भवती महिला को क्या-क्या दिक्कतें हो सकती हैं? इस पर कुसुम बोलीं, "हमारे गाँव में आठ दस महिलाएं गर्भवती हैं। लॉकडाउन में इनमें से किसी की कोई जांच और टीकाकरण नहीं हो पाया। समय से जांच न होने से हमें इनके पेट में पल रहे बच्चे के बारे में कुछ भी पता नहीं चल पाया। इनका ब्लड प्रेसर, शुगर, हीमोग्लोविन की भी कोई जानकारी नहीं। हम इन्हें दवा किस आधार पर देते? परवीन के साथ यही दिक्कत हुई।"

गाँव कनेक्शन सर्वे के आंकडें कुसुम की बात को और पुख्ता करते हैं। उत्तर प्रदेश में 43 प्रतिशत लोगों ने सर्वे में कहा कि लॉकडाउन के दौरान नियमित जांच और टीकाकरण नहीं हुआ जबकि 57 फीसदी लोगों ने कहा कि ये जांचें और टीकाकरण हुआ है। हां कहने वालों का प्रतिशत यहाँ इसलिए भी बढ़ा हुआ आया क्योंकि गाँव कनेक्शन ने जब यह सर्वे 30 मई से 16 जुलाई के बीच किया था तबतक सब जगह ये सेवाएं शुरू हो चुकी थीं।


   

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