नोबेल मेडिसिन पुरस्‍कार : इंसान को रात में कैसे आती है नींद, बताती है बॉडी क्‍लॉक

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नोबेल मेडिसिन पुरस्‍कार : इंसान को रात में कैसे आती है नींद, बताती है बॉडी क्‍लॉकनोबेल पुरस्कार।

लखनऊ। इस बार नोबेल का चिकित्‍सा पुरस्‍कार शरीर के बॉयोलॉजिकल क्‍लॉक (जैविक घड़ी) यानी प्राकृतिक घड़ी की कार्यप्रणाली बताने वाले तीन वैज्ञानिकों को दिया गया है। वैज्ञानिक जेफ्रे सी हॉल, माइकल रोसबाश और माइकल डब्‍ल्‍यू यंग ने अपने शोध में बताया है कि इस जैविक घड़ी का सीधा तालमेल पृथ्‍वी के रोटेशन से होता है। इसलिए इसे दिन-रात का पूरा अहसास होता है। मसलन रात को इंसान को एक निर्धारित समय पर नींद आने लगती है? सुबह भी एक तय समय के आस-पास नींद अपने आप खुल जाती है? आइए इस शोध से जुड़ी 5 बातों पर डालते हैं एक नजर....

1. इन वैज्ञानिकों ने अपने रिसर्च में पाया कि यह जैविक घड़ी इस तरह लयबद्ध होती है कि इसका सीधा तालमेल पृथ्‍वी के रोटेशन से होता है. इसके कारण शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में इन्‍होंने बताया कि रात नौ बजे मेलाटोनिन के स्राव से नींद आने लगती है. रात दो बजे गहरी नींद का समय होता है. सुबह 4.30 बजे शरीर का सबसे कम तापमान रहता है।

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2. सुबह 6.45 बजे से ब्‍लड प्रेशर में तेजी से वृद्धि होने लगती है। नतीजतन नींद खुलने का समय हो जाता है। सुबह 10.30 बजे सर्वाधिक सक्रियता का समय होता है। दोपहर ढाई बजे सर्वाधिक समन्‍वय का समय होता है। शाम 6.30 बजे सर्वाधिक ब्‍लड प्रेशर का समय होता है और शाम सात बजे सर्वाधिक ब्‍लड प्रेशर होता है।

3. इस संबंध में नोबेल समिति ने कहा, "उनके खोज बताते हैं कि कैसे पौधे, जानवर और मनुष्य अपना जैविक लय अनुकूल बनाते हैं ताकि यह धरती के बदलाव के साथ सामंजस्य बैठा सके।" बयान के अनुसार, फल मक्खियों को मॉडल जीव के रूप में प्रयोग करते हुए, वैज्ञानिकों ने एक जीन की खोज की है जो प्रतिदिन के सामान्य जैविक आवर्तन को नियंत्रित करता है।

उनकी खोज इस बात का खुलासा करती है कि यह जीन प्रोटीन को इनकोड करती है जो रात में कोशिका में एकत्रित होता है और दिन के दौरान इसका क्षरण हो जाता है। इस खोज से जैविक घड़ी के मुख्य क्रियाविधिक सिद्धांत स्थापित हुए हैं जिससे हमें सोने के पैटर्न, खाने के व्यवहार, हार्मोन बहाव, रक्तचाप और शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।

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4. रिसर्च में यह भी पाया गया कि हमारी जीवनशैली और बाहरी पर्यावरण की वजह से इस जैविक घड़ी में दीर्घकालिक अप्रबंधन रहने से कई लोगों में बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। यहां तक कि इस वजह से विभिन्न समय खंडों (टाइम जोन) में यात्रा करने वाले यात्रियों को भी जेट लैग यानी अस्थायी भटकाव का सामना करना पड़ता है। नोबेल समिति ने कहा, 'उनकी खोजों में इस बात की व्याख्या की गई है कि पौधे, जानवर और इंसान किस प्रकार अपनी आंतरिक जैविक घड़ी के अनुरूप खुद को ढालते हैं ताकि वे धरती की परिक्रमा के अनुसार अपने को ढाल सकें।'

5. नोबेल टीम ने कहा, 'इन्होंने दिखाया कि ये जीन उस प्रोटीन को परवर्तित करने का काम करते हैं जो रात के समय कोशिका में जम जाती हैं और फिर दिन के समय बहुत ही छोटा आकार ले लेती हैं.'

डॉ माइकल डब्ल्यू यंग का परिचय

डॉ माइकल डब्ल्यू यंग 1971 में जीवविज्ञान(बॉयोलॉजी) में स्नातक किया। 1975 में इन्होंने ‘जेनेटिक्स’ में टैक्सास यूनिवर्सिटी से पीएचडी किया है। डॉक्टरेट के बाद इन्होंने स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी से मेडिसीन में पढ़ाई की। वे 1978 से 1984 तक अस्टिेंट प्रोफेसर रहे, फिर 1984 से 1988 तक एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत रहे। रॉकफेलर यूनिवर्सिटी में वह 2004 में वाइस प्रेसिंडेट अॅाफ एकेडमी अफेयर्स रहे। वर्ष 2007 में इन्हें नेशनल इंस्टीच्यूट अॅाफ हेल्थ मेरिट अवार्ड मिला। 2009 में पीटर एंड पैट्रिका ग्रूबर फाउंडेशन न्यूरोसाइंस पुरस्कार मिला। वर्ष 2011 में लुइसा ग्रॉस हॉर्विट्ज़ पुरस्कार मिला। वर्ष 2012 में कनाडा गेयरडनर इंटरनेशनल अवॉर्ड, वर्ष 2013 में शॉ और विले पुरस्कार मिला।

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जैफरी सी हॉल का परिचय

मेडिसीन के क्षेत्र में वर्ष 2017 का नोबेल पुरस्कार पाने वाले दूसरे वैज्ञानिक है जैफरी सी हॉल। वे जीव विज्ञान के रिटायर्ड प्रोफेसर हैं, साथ ही वे अमेरिकी नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस के सदस्य भी हैं। इन्होंने वाशिंगटन यूनिवर्सिटी से पीएचडी किया है।

इन्होंने ड्रोसोफिला (एक प्रकार की मक्खी) के स्नायुतंत्र (नर्वस सिस्टम) की पूरी कार्यप्रणाली का अध्ययन किया। इस अध्ययन में आनुवांशिक अध्ययन शामिल है। इस अध्ययन में यह भी शामिल था कि किस प्रकार ड्रोसोफिला का नर्वस सिस्टम उसकी प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है।

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