इस अधिकारी की पहल पर कश्मीरी युवाओं को मिलेगा रोजगार, उत्तरी कश्मीर में खुला पहला बीपीओ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तरी कश्मीर के पहले बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) और आईटी इनेबल्ड स्किल लैब का उद्घाटन किया।

Daya SagarDaya Sagar   4 Feb 2019 2:07 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
इस अधिकारी की पहल पर कश्मीरी युवाओं को मिलेगा रोजगार, उत्तरी कश्मीर में खुला पहला बीपीओ

लखनऊ। जम्मू कश्मीर के बांदीपोरा जिले के युवाओं के लिए 3 फरवरी, रविवार का दिन बहुत खास था। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तरी कश्मीर के पहले बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) और आईटी इनेबल्ड स्किल लैब का उद्घाटन कर रहे थे।

यह जम्मू कश्मीर राज्य का पहला ग्रामीण बीपीओ है। इससे क्षेत्र में उधोग और निवेश आने की उम्मीद है। इसके अलावा यह बीपीओ स्थानीय युवाओं को रोजगार भी देगा। बीपीओ की मदद से क्षेत्र में उधोगों और आईटी कंपनियों को आकर्षित किया जाएगा। यह बीपीओ जिला प्रशासन की मदद से पूरे 24 घंटे चलेगी और एक शिफ्ट में कम से कम 100 लोग काम कर सकेंगे।

जिला प्रशासन का दावा है कि इस बीपीओ से कम से कम 250 लोगों को रोजगार मिलेगा। समय बढ़ने के साथ-साथ रोजगार की संख्या भी बढ़ती रहेगी। वहीं 30 सीटों वाले आईटी इनेबल्ड स्किल लैब में हर साल कुल 600 युवाओं को ट्रेनिंग दी जाएगी, जिससे वह रोजगार पाने के योग्य बन सके।

इस बीपीओ सहित राज्य के अन्य परियोजनाओं का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'राज्य के युवा शांति और रोजगार चाहते हैं। वह देश के अन्य हिस्सों से जुड़ना चाहते हैं। आज जिन परियोजनाओं का लोकार्पण, उद्घाटन और शिलान्यास हुआ, उससे देश और दुनिया की कनेक्टिविटी जम्मू-कश्मीर से बढ़ेगी। इससे पर्यटन बढ़ेगा और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।'



बीपीओ खोलना नहीं था आसान

पाकिस्तान सीमा से लगे इस सीमावर्ती जिले में बीपीओ और आईटी इनेबल्ड स्कील लैब खोलने का काम आसान नहीं था। आए दिन यहां पर घुसपैठ और मिलिटेंसी की घटनाएं होती रहती हैं। 14 जनवरी को सुरक्षा बलों ने हिजबुल मुजाहिद्दीन के सरफराज अहमद शीर नाम के एक मिलिटेंट को गिरफ्तार किया था। इसके अलावा इस जिले की भौगोलिक स्थिति भी ऐसी है कि वह राज्य के अन्य जिलों से कटी रहती है।

इस आईएस अधिकारी ने बनाया संभव

बांदीपोरा के डिप्टी कमिश्नर शाहिद इकबाल चौधरी और उनकी टीम ने अपने प्रयासों से इस पिछड़े हुए जिले को राज्य और देश के अन्य हिस्सों से जोड़ने की कोशिश की है। इस अवसर पर शाहिद इकबाल चौधरी काफी उत्साहित नजर आए।

गांव कनेक्शन से फोन पर बात करते हुए उन्होंने कहा, 'यह उनके और उनके क्षेत्र के लिए बहुत गर्व की बात है कि प्रधानमंत्री ने एक छोटे से प्रोजेक्ट के उद्घाटन में इतना उत्साह दिखाया। इससे स्थानीय लोग खासकर क्षेत्र के युवा काफी खुश हैं। इससे प्रधानमंत्री ने लोगों को यह भी संदेश दिया है कि सरकार कश्मीर के सीमापवर्ती क्षेत्रों में भी निवेश करना चाहती है जिससे वहां के स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सके। यह प्रयोग सफल रहने पर अन्य जगहों पर भी बीपीओ खोले जाएंगे।' शाहिद ने बताया कि लगभग 12 कंपनियों ने यहां पर निवेश और कॉल सेंटर खोलने की इच्छा जताई है।

इस पहल से स्थानीय युवाओं में भी खासा उत्साह है। 24 साल के परवेज अहमद गांव कनेक्शन से फोन पर बात-चीत में कहते हैं, 'यह प्रशासन की बहुत ही अच्छी पहल है। यहां का युवा काफी सकारात्मक ढंग से इसे देख रहा है। यहां युवाओं के पास रोजगार के मौकों की कमी है। अभावों की वजह से उन्हें अपनी पढ़ाई भी बीच में ही छोड़नी पड़ती है। उम्मीद है कि बीपीओ खुलने से युवाओं को पार्ट टाइम रोजगार भी मिल सकेगा जिससे वह अपनी पढ़ाई को भी जारी रख सकें।'

आपको बता दें कि इस बीपीओ और स्किल ट्रेनिंग सेंटर के लिए स्थानीय प्रशासन ने अपने स्तर से स्वयं प्रयास किए। बांदीपोरा जैसे सीमावर्ती इलाके में निवेशकों को विश्वास में लाना और उन्हें 24 घंटे बिजली और इंटरनेट उपब्ध कराना एक मुश्किल काम था। लेकिन शाहिद चौधरी और उनकी टीम ने इसे संभव कर दिखाया। जब स्थानीय प्रशासन ने कदम बढ़ाया तो फिर राज्य और केंद्र का भी सहयोग मिलने लगा।

वैसे, यह पहली बार नहीं है जब 2009 बैच के आईएएस अधिकारी शाहिद चौधरी ने कश्मीर जैसे दुर्गम राज्य में कुछ अलग कर के दिखाया है। उनकी नियुक्ति जहां भी हुई है वहां उन्होंने कुछ ऐसे कदम उठाए हैं, जिससे स्थानीय नागरिकों का जीवन और सरल बनाया जा सके।

देश को दिया पहला ई-पंचायत सिस्टम

शाहिद चौधरी को कश्मीर के गावों को इंटरनेट से जोड़ने के लिए भी जाना जाता है। 2012-13 में शाहिद जम्मू कश्मीर के रियासी जिले में तैनात थे। वहां के नागरिकों को अपने छोटे से भी छोटा काम कराने के लिए ब्लॉक या जिले तक जाना पड़ता था। इसमें उनका पूरा दिन लग जाता था।

शाहिद ने नागरिकों के इस परेशानी को समझा और पंचायतों को इंटरनेट से जोड़ने का बीड़ा उठाया। हालांकि यह काफी मुश्किल था, लेकिन जिला प्रशासन ने शाहिद के नेतृत्व में ऐसा कर दिखाया। इस कदम से खासकर मनरेगा मजदूरों को काफी सुविधा मिली।

शाहिद बताते हैं कि उनकी यह पहल इतनी सफल रही कि इसे केंद्र सरकार ने संज्ञान में लिया और फिर पूरे देश के पंचायतों को इंटरनेट से जोड़ना शुरू हुआ। शाहिद को इसके लिए 2014-15 में ई-गवर्नेंस का राष्ट्रीय अवॉर्ड भी मिला। इसके अलावा उन्होंने युवाओं के रोजगार के लिए 'प्रोजेक्ट हिदायत' नाम की एक पहल शुरू की थी, जिसमें युवाओं को रोजगार के बारे में तरह-तरह की जानकारियां दी जाती थी।

शाहिद चौधरी और 'जश्न-ए-जम्हूरियत'

38 साल के इस पहले गुज्जर कश्मीरी आईएएस अधिकारी को जम्हूरियत पर भरोसा करने वाला अधिकारी भी माना जाता है। उनका मानना है कि जम्हूरियत से ही कश्मीर की स्थिति को और बेहतर बनाया जा सकता है। वह भारत की चुनाव-प्रक्रिया और प्रणाली पर भी विश्वास रखते हैं। 2014 में उन्होंने रियासी में ही जश्न-ए-जम्हूरियत नाम से एक पहल शुरू की थी जिसमें मतदाताओं को जागरूक करने और उन्हें घर से निकलकर वोट देने के लिए प्रेरित किया जाता था।

शाहिद का मानना है कि मतदान प्रक्रिया महज एक लोकतांत्रिक खानापूर्ति नहीं बल्कि जम्हूरियत को मनाने का एक जश्न है। इसलिए उन्होंने अपने इस कदम को 'जश्न-ए-जम्हूरियत' का नाम दिया। उनके इस प्रयास का फल भी जल्द ही मिला। 2014 के लोकसभा चुनाव में उनके क्षेत्र में मतदान प्रतिशत 81 रहा जो कि पिछले की तुलना में दोगुना था। 2009 के लोकसभा चुनाव में रियासी में मतदान का प्रतिशत महज 43 ही था। चुनाव-आयोग ने भी शाहिद के इस प्रयास को सराहा और उन्हें इसके लिए सम्मानित भी किया गया।

राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले सबसे युवा भारतीय और पहले कश्मीरी

शाहिद चौधरी का मानना है कि कश्मीर जैसे दुर्गम क्षेत्र को देश से जोड़ने के लिए कनेक्टिविटी की काफी अधिक जरूरत है। कश्मीर के कई क्षेत्र अभी भी ऐसे हैं, जो सिर्फ देश नहीं कश्मीर राज्य से भी कटे हैं। कश्मीर के अनेक गावों में पहुंचना अभी भी काफी मुश्किल कार्य है। शाहिद ने इस कठिनाई को समझा और लगातार इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं।

इसके अलावा आकस्मिक सहायता के लिए उन्होंने जम्मू से राजौरी तक की हेलीकॉप्टर सुविधा शुरू करवाई थी। साल 2015 में उन्हें इसके लिए प्रधानमंत्री के हाथों राष्ट्रीय पुरस्कार मिला भी था। वह इस पुरस्कार को पाने वाले सबसे युवा भारतीय एवं पहले कश्मीरी थे।

मार्च, 2018 में भी उन्हें एक बार फिर प्रधानमंत्री के हाथों सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान लोक प्रशासन और महिला सशक्तिकरण में योगदान देने के लिए मिला था। वह उस समय कठुआ के डिप्टी कमिश्नर थे। उन्होंने तब वहां पर 'प्रोजेक्ट सहायता' नाम की एक पहल शुरू की थी। इसमें उन्होंने सुदूर गांव में बैठे ग्रामीणों के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपाय किया था ताकि किसी मसले पर उन्हें तत्काल प्रशासनिक और अन्य सहायता मिल सके।

'कनेक्टिविटी है बहुत जरूरी'

शाहिद चौधरी जब उधमपुर में तैनात थे तब उन्होंने 'प्रोजेक्ट राहत' के तहत जिले में पुल बनवाने का अभियान शुरु किया था। इस दौरान उन्होंने कुल 170 पुल बनवाए थे। शाहिद कहते हैं, 'बाढ़ के समय में पुलों के ना होने की वजह से कई लोगों की जान चली जाती थी और सैकड़ों गांव जिला मुख्यालय से कट जाते थे। प्रोजेक्ट के लिए सरकारी फंड को अप्रूव होने में भी एक से दो साल लग जाते थे। इसलिए हमने जिले में उपलब्ध फंड की सहायता से ही ये पुल बनवाए।'

चौधरी कहते हैं कि एक सरकारी अधिकारी का किसी जगह पर कार्यकाल ही एक से दो साल का होता है। इसलिए फंड के अप्रूव होने का इंतजार नहीं किया जा सकता।

महिलाओं के मुद्दे पर भी हैं संवेदनशील

शाहिद चौधरी महिलाओं की शिक्षा और उनके अन्य अधिकारों को भी लेकर काफी सजग और जागरूक हैं। उन्होंने 'सखी- One Step Centre' नाम की एक पहल शुरू की है। इस पहल में ऐसे केंद्रों का निर्माण किया गया है, जहां पर महिलाएं बेझिझक जाकर अपनी मुश्किलें बता सकें। इसके बाद उन्हें तत्काल सहायता भी मुहैया कराई जाती है। इस पहल के लिए शाहिद चौधरी को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा पुरस्कृत भी किया गया है।

शाहिद कहते हैं, 'महिलाओं पर हिंसा एक संवेदनशील मसला है। कई महिलाएं हिंसा का शिकार होने के बाद भी रिपोर्ट नहीं दर्ज करा पाती हैं। उन्हें बदनामी का खतरा होता है। सखी-One Stop Centre ऐसी ही महिलाओं के लिए है। यहां पर सभी कर्मचारी और अधिकारी महिलाएं ही हैं। पुलिस, न्याय, शिक्षा जैसी लगभग सभी विभागों की महिला कर्मचारियों को इस सेंटर पर तैनात किया जाता है। इसका लाभ भी हमें मिला है। अब महिलाएं आसानी से अपने ऊपर हुई हिंसा को रिपोर्ट कर रही हैं।'

अगस्त 2018 में पत्थरबाजों ने किया हमला

शाहिद चौधरी के लिए यह सब करना कतई भी आसान नहीं था। 30 अगस्त, 2018 को पत्थरबाजों द्वारा उन पर हमला भी किया गया था। इसमें उन्हें हल्की चोट भी आई थी। शाहिद इस बारे में कहते हैं कि कुछ मिलेटेंसी और अलगाववादी समूहों को यह पसंद नहीं है कि कोई सरकारी अधिकारी जनता के बीच में रहकर काम करे और लोकप्रिय हो।

जनता का सहयोग ही सबसे बड़ा अवॉर्ड

शाहिद आगे कहते हैं, 'यहां के लोग अभी भी मूलभूत सुविधाओं से महरूम हैं। यहां के लोगों को रोटी-कपड़ा-मकान और बिजली-पानी-शिक्षा चाहिए। इसलिए यहां पर काम करना थोड़ा जोखिम भरा भी है। हालांकि उनके बीच पहुंचकर और काम कर इस जोखिम को दूर भी किया जा सकता है। लोगों के बीच पहुंचा जाए और उनके बीच रहकर उन्हें मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराई जाए।'

शाहिद कहते हैं कि जनता का सहयोग और विश्वास ही उनके लिए सबसे बड़ा अवॉर्ड है।

       

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.