बंगाल का रसगुल्ला ही नहीं, मथुरा के पेड़े को भी मिला है जीआई टैग

Ashwani NigamAshwani Nigam   16 Nov 2017 9:09 PM GMT

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बंगाल का रसगुल्ला ही नहीं, मथुरा के पेड़े को भी मिला है जीआई टैगफोटो: इंटरनेट

लखनऊ। रसगुल्ला मिठाई के अधिकार पर बंगाल और उड़ीसा राज्य के बीच चली लंबी लड़ाई के बाद बंगाल की जीत हुई। बौद्धिक सम्पदा कार्यालय ने पश्चिम बंगाल को भागौलिक संकेत यानि जियोग्राफिकल इंडीकेशन (जीआई) टैग दे दिया। इसका मतबल यह हुआ है कि रसगुल्ला असली रूप से बंगाल की मिठाई है। रसगुल्ला को अपना बताने के नाम पर छिड़ी बहस के बीच हम आपको देश की कुछ ऐसी खास मिठाइयों, नमकीनों, कपड़ों और फसलों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनको अलग-अलग राज्यों ने अपना बताते हुए जीआई टैग हासिल किया है।

मथुरा के पेड़े को भी मिला जीआई टैग

इसी तरह देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में खाने-पीने और मिठाइयों की भले ही सैकड़ों किस्में हैं, लेकिन मिठाइयों में मथुरा में बनने वाले पेड़े को ही सिर्फ जीआई टैग हासिल है।

उत्पाद की गुणवत्ता और प्रतिष्ठा को बनाए रखना मकसद

बौद्धिक सम्पदा कार्यालय भारत सरकार के कंट्रोलर जनरल ऑफ पेटेंट, डिजाइन एंड ट्रेड मार्क के उप नियंत्रक एनके मोहंती बताते हैं, “विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सदस्य देश में होने के नाते भारत ने जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट 1999 को 15 सितंबर 2003 से लागू किया है। इसका मकसद मूल उत्पाद की गुणवत्ता और प्रतिष्ठा को बनाए रखना है, इसके चलते इन्हें वैश्विक बाजारों में भी बढ़त मिलती है।''

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होल्डर्स या निर्माताओं के सुरक्षित रखते हैं अधिकार

एनके मोहंती ने आगे बताया, “जिस तरह बौद्धिक संपदा अधिकारों में कॉपीराइट, पेटेंट और ट्रेडमार्क को शामिल किया जाता है, जो होल्डर्स या निर्माताओं के अधिकार सुरक्षित रखते हैं, उसी तरह जियोग्राफिकल इंडीकेशन टैग होता है, जिसके तहत ये माना जाता है कि संबंधित उत्पाद उस जगह की ही पैदाइश है और उस खास भागोलिक क्षेत्र में बनाई या उगाई जाती है।“

पेश करने होते हैं सुबूत

यहां के उप नियंत्रक संजय भट्टाचार्य बताते हैं, ”जीआई टैग को कृषि, प्राकृतिक और मानव निर्मित चीजों के लिए जारी किया जाता है। इसके लिए इनके अपने भौगोलिक मूल से संबंधित कोई विशेषता, गुणवत्ता, ख्याति के सुबूत पेश करने होते हैं।“

डब्ल्यूटीओ से भी मिलता है संरक्षण

संजय आगे बताते हैं, “किसी जीआई का पंजीकरण, इसके पंजीकृत मालिक और अधिकृत प्रयोगकर्ता को जीआई के इस्तेमाल का कानूनी अधिकार प्रदान करता है। गैर-अधिकृत व्यक्ति जीआई टैग का इस्तेमाल नहीं कर सकता। जीआई टैग के साथ बेचे जाने वाले उत्पादों को ज्यादा कीमत का लाभ भी मिलता है। जीआई टैग को डब्ल्यूटीओ से भी संरक्षण मिलता है।“

33 उत्पादों को जीआई टैग, उत्तर प्रदेश का कोई नहीं

भारतीय पेटेंट कार्यालय ने इस साल देश के 33 उत्पादों को जीआई टैग दिया है, जिसमें उत्तर प्रदेश का एक भी उत्पाद शामिल नहीं है। इस साल भारतीय पेटेंट कार्यालय ने जिन उत्पादों को जीआई टैग दिया है, उसमें आंध्र प्रदेश का प्रसिद्ध बंगनपल्ले आम और पश्चिम बंगाल का तुलापंजी चावल भी है। देश में मिठाइयों में सबसे ज्यादा पहचाने जाने वाले लड्डू पर आंध्र प्रदेश को जीआई टैग हासिल है।

पेड़े पर उत्तर प्रदेश और कर्नाटक दोनों को अलग-अलग जीआई टैग

लड्डू के बाद सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाले पेड़े पर उत्तर प्रदेश और कर्नाटक दोनों को अलग-अलग जीआई टैग हासिल है। उत्तर प्रदेश के मथुरा की तरह कर्नाटक के धारवाड़ा क्षेत्र में बनने वाले पेड़े को भी जीआई टैग मिला हुआ है। माना जाता है कि 19वीं शताब्दी के दौरान जब उत्तर प्रदेश में प्लेग फैला था, उस वक्त उन्नाव से एक परिवार कर्नाटक के धारवाड़ आया, इस परिवार ने धारवाड़ में पेड़ा बनाना शुरू किया, जो धारावाड़ के पेड़े के नाम से मशहूर हुआ।

इनको भी मिला जीआई टैग

मिठाइयों के साथ ही अमेरिका और खाड़ी देशों में सबसे ज्यादा डिमांड में रहने वाला मध्य प्रदेश के रतलामी सेव नमकीन का मध्य प्रदेश के पास जीआई टैग है। भारत में घर-घर खाई जाने वाली नमकीन में बीकानेरी भुजिया को राजस्थान की पैदाइश माना जाता है। इसका जीआई टैग राजस्थान को मिला हुआ है। बासमती चावल के लिए इस साल उत्तर भारत के सात बासमती चावल उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर को जीआई टैग मिला है।

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