प्रवासी मजदूरों से न लिया जाए ट्रेन और बस का किराया, राज्य सरकार करें खाने की व्यवस्था : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि अपने मूल स्थान पर पहुंचने के लिए प्रवासियों की कठिनाइयों से हम चिंतित हैं। कई खामियां हैं जो हमने पंजीकरण, परिवहन और भोजन और पानी के प्रावधान की प्रक्रिया में देखी हैं।

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प्रवासी मजदूरों से न लिया जाए ट्रेन और बस का किराया, राज्य सरकार करें खाने की व्यवस्था : सुप्रीम कोर्ट

लॉकडाउन में अपने घरों की ओर लौटने को मजबूर हो रहे देश के प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया और देश की केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी करते हुए जवाब माँगा था। इस पर आज (28 मई) को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा नहीं है कि सरकार कुछ कर नहीं रही है, मगर प्रवासियों की संख्या को देखते हुए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केंद्र और देश भर की राज्य सरकारें बताएं कि अब तक प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए उन्होंने क्या-क्या कदम उठाए हैं? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारों की ओर से उठाए गए कदम अपर्याप्त हैं क्योंकि मीडिया रिपोर्ट्स में सामने आया है कि मजदूर अभी भी सड़कों पर पैदल चल रहे हैं, ट्रेन की पटरियों में आराम रहे मजदूरों की मौत हो रही हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान आज कहा कि अपने मूल स्थान पर पहुंचने के लिए प्रवासियों की कठिनाइयों से हम चिंतित हैं। कई खामियां हैं जो हमने पंजीकरण, परिवहन और भोजन और पानी के प्रावधान की प्रक्रिया में देखी हैं। ऐसी स्थिति में सरकार अदालत में यह स्पष्ट करे।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस संजय किशन कॉल की खंडपीठ ने सरकार से जवाब माँगा। केंद्र सरकार की ओर से जवाब दे रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि प्रवासी मजदूरों की वापसी को लेकर कुछ दुर्भाग्यपूर्ण चीजें हुई हैं और यह बार-बार सामने आ रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस तथ्य पर विवाद नहीं कर रहे हैं कि केंद्र सरकार ने कदम नहीं उठाए हैं। लेकिन जिस किसी को भी मदद की जरूरत है, उसे वह मदद नहीं मिल रही है और राज्य अपना काम नहीं कर रहे हैं।

मेहता ने अदालत को यह आश्वासन देते हुए कहा कि सरकार अपने प्रयासों को तब तक नहीं रोकेगी जब तक कि हर इच्छुक प्रवासी मजदूर को उसके गांव नहीं भेजा जाता।

सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए एक मई से श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलायी जा रही हैं और 27 मई तक इन ट्रेनों से 50 लाख प्रवासी मजदूरों को उनके राज्यों तक पहुँचाया गया है। तुषार मेहता ने कोर्ट को यह भी बताया कि 41 लाख प्रवासी मजदूरों को अब तक सड़क मार्ग से भेजा जा चुका है। । ऐसे में हम करीब एक करोड़ से ज्यादा प्रवासी मजदूरों को भेजने में सफल हुए हैं।

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अपने जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि प्रवासियों को चिंता और स्थानीय स्तर की अस्थिरता के कारण चलना पड़ रहा है जहाँ उनसे कहा जाता है कि अभी चलें, ट्रेनें नहीं चलेंगी, लॉकडाउन बढ़ाया गया है।

इस बीच सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने प्रवासियों को भेजने-ले जाने के लिए एक सामान नीति की आवश्यकता पर जोर दिया। कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों से वसूले गए रेल किराये के बारे में भी पूछा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि रेल किराये के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है और बिचौलिए इसका फायदा उठा रहे हैं। जिस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि कुछ राज्यों ने शुरू में इन पर शुल्क लगाया, और कुछ ने मुफ्त यात्रा की। इसके अलावा सॉलिसिटर जनरल ने यह दावा किया कि भारतीय रेलवे की ओर से प्रवासियों को 80 लाख से अधिक भोजन और एक करोड़ बोतल दी गईं।

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि घर वापसी के लिए प्रवासी मजदूरों से ट्रेन और बस का किराया नहीं वसूला जाना चाहिए।

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सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा कि परिवहन का इंतजार कर रहे प्रवासियों को क्या भोजन आपूर्ति की जा रही है और कौन प्रवासियों को भोजन उपलब्ध करा रहा है?

जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट को बताया कि एनजीओ (स्वयं सहायता समूह) प्रवासी मजदूरों के लिए भोजन का प्रबंध कर रहे हैं। इसके अलावा उद्योग और नियोक्ताओं की ओर से भी भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि ऐसा नहीं है कि सरकार कुछ कर नहीं रही है, मगर प्रवासियों की संख्या को देखते हुए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। खंडपीठ ने कहा कि भारत में, बिचौलिया हमेशा रहेगा। लेकिन हम नहीं चाहते कि बिचौलियों को किराए के भुगतान की बात आती है। यह स्पष्ट नीति होनी चाहिए कि भुगतान कौन करेगा। यदि सभी राज्यों के लिए तंत्र अलग है। तब यह भ्रम पैदा करेगा।

सुनवाई के दौरान कई राज्य और केंद्र शाषित प्रदेशों की ओर से नोटिस के बावजूद जवाब दाखिल किये। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने पांच जून को अगली सुनवाई करने का आदेश दिया है।

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