बच्चों को अब अपना नाम नहीं दे सकते पालक अभिभावक 

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बच्चों को अब अपना नाम नहीं दे सकते पालक अभिभावक gaonconnection

नई दिल्ली (भाषा)। यामिनी और उनके पति भानु भंडारी तथा सिंगल मदर चारु लता शर्मा ने हाल ही में बच्चा गोद लिया है, लेकिन अभी वे अपने बच्चों का किसी भी दस्तावेजों पर अपना नाम नहीं दे सकते। भानु और यामिनी 24 जून को उनके घर आयी चार वर्षीय परी के हर उद्देश्य के लिये उसके अभिभावक हैं और इसी तरह चारु भी छह वर्षीय चांदनी की पालक अभिभावक हैं। चांदनी 24 जनवरी को चारु के घर आयी थी।

पालक देखभाल के लिये मॉडल दिशानिर्देश, 2016 के जारी होने के बाद ये दोनों ऐसे पहले बच्चे होंगे, जिन्हें महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से उनके पालकों के सुपुर्द किया जायेगा। और जब तक उनके परिवार से उनका पुनर्मिलन नहीं होता या उन्हें गोद नहीं लिया जाता, तब तक वे अपने पालक अभिभावकों के साथ रहेंगे। बहरहाल, पांच साल तक इनका लालन पालन करने के बाद इन अभिभावकों के पास भी इन बच्चियों को गोद लेने का अधिकार होगा। आपको बता दें कि परी और चांदनी दोनों की माताओं का मानसिक संतुलन ठीक नहीं है। ये महिलाएं उदयपुर में एक मनोरोगियों के एक देखभाल केंद्र में रहती हैं।

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पालक अभिभावकों के उन्हें अपने साथ ले जाने और अपने घर ले जाने का फैसला करने से पहले ये दोनों बच्चियां अनाथालय में रह रही थीं। यामिनी ने परी को एक नई साइकिल और खूब सारे कपडे दिलाये हैं। उन्होंने उदयपुर से पीटीआई-भाषा को फोन पर बताया, ''वह मुझे मम्मा और मेरे पति को पापा कहती है। इस वक्त मैं बहुत खुश हूं, लेकिन भविष्य को लेकर आशंकित भी हूं। मुझे पांच साल का इंतजार करना होगा, इसके बाद ही वह पूरी तरह मेरी हो सकेगी।'' यामिनी (43) ने कहा, ' 'हमारी प्राथमिकता उसे बेहतर शिक्षा देना और उसे सेहतमंद रखना है।'' यामिनी हर छह महीने पर अपने पालक देखभाल आवेदन को नवीनीकृत कराती हैं।

बदलाव को कानूनी अधिकारों की कमी मानती हैं चारु

पहले से ही 10 वर्षीय बेटी का दत्तक ग्रहण कर चुकी 50 वर्षीय चारु एअर इंडिया में कार्यरत हैं। चारु ने कहा, ''मैं ऐसे बच्चे को घर जैसा माहौल देना चाहती थी, जिसे अपना सारा जीवन किसी संस्थान में बिताना पड़ सकता था। वह मेरे लिये ईश्वर का वरदान है और मुझे पूरी उम्मीद है कि वह मेरी ही होगी।''

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उन्होंने कहा कि कानूनी अधिकारों की कमी उनके बच्चे के लिये बैंक खाता खोलने और एक परिवार के सदस्य के तौर पर चांदनी को हर हक दिलाने में बाधक बन रही है। बहरहाल, बच्चे के पालन पोषण का खर्च, उनकी शिक्षा और चिकित्सकीय खर्च उनके पालक अभिभावक वहन करते हैं।

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