दाल इंडस्ट्री अब प्रदूषण की ग्रीन कैटेगरी में, 3 की जगह 15 साल का मिलेगा लाइसेंस

ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के मुताबिक भारत में करीब 6000 दाल मिलें हैं,जिनमें चना, अरहर, उड़द, मसूर, मटर, मूंग आदि की दाल बनाई जाती है। एक मिल रोजाना करीब 10 टन दाल का उत्पादन करती है।

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दाल इंडस्ट्री अब प्रदूषण की ग्रीन कैटेगरी में, 3 की जगह 15 साल का मिलेगा लाइसेंस

इंदौर/नई दिल्ली। दाल मिल वालों के लिए राहत की ख़बर है। अब उन्हें 3 की जगह लाइसेंस 15 साल के लिए मिलेगा। पिछले दिनों केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने दाल मिल इंडस्ट्री को प्रदूषण के लिहाज से मानक ऑरेंज कैटेगरी से हटाकर ग्रीन (हरित कैटेगरी) में कर दिया है। हालांकि मिल मालिक सरकार से सफेद वर्ग में करने की मांग कर रहे थे।

ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल ने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया, "केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर (जी) से हम लोगों की 2 अगस्त को दिल्ली में बैठक हुई थी, जिसके बाद उन्होंने दाल मिलों को ग्रीन कैटेगरी में कर दिया है। हमारी ये मांग कई सालों से थी, क्योंकि दाल मिलें अब आधुनिक हो गई हैं और वो प्रदूषण नहीं करतीं। 2016 में डॉ. हर्षवर्धन ने भी हम लोग मिले थे।"

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ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के मुताबिक भारत में करीब 6000 दाल मिलें हैं,जिनमें चना, अरहर, उड़द, मसूर, मटर, मूंग आदि की दाल बनाई जाती है। सुरेश अग्रवाल बताते हैं, एक मिल रोजाना करीब 10 टन दाल का उत्पादन करती है। लाखों लोगों को इस इंड्रस्टी से रोजगार मिला हुआ। पहले दाल मिलों की मशीनें लकड़ी की हुआ करती थी, जो अब स्टेनलेश स्टील की हैं, नई मशीनें है, जिनसे वायु प्रदूषण नहीं होता, लेकिन हम लोगों को हम लोगों को प्रदूषण विभाग आदि से एनओसी के लिए चक्कर लगाने पड़ते, लंबी कागजी कार्रवाई थी, इसलिए हम लोग लाइसेंस की प्रक्रिया मुक्त करने की मांग कर हे थे।'

जल और वायु अधिनियम के अंतर्गत भारत में दाल मिलों को अभी तक ऑरेंज कैटेगरी में रखा गया था। उन्हें 3 साल के लिए लाइसेंस मिलता है। लेकिन अब ये लाइसेंस 15 साल के लिए होगा।

सुरेश अग्रवाल बताते हैं, "सरकार ने हमारी सफेद कैटेगरी की मांग तो नहीं मानी लेकिन ग्रीन से भी काफी राहत मिलेगी। केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को आदेश कर दिया है, अब राज्य सरकार को इस पर फैसला लेना है। उम्मीद है राज्य सरकारें मिलों के हितों का ध्यान रखेंगी।"


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दाल मिलर्स के लिए प्रदूषण विभाग से ली जाने वाली एनओसी से साल में करीब 5000 रुपए की आय होती है। ग्रीन कैटेगरी में आने के बाद नए मिलों को 15 साल के लिए लाइसेंस मिलेगा, जबकि पुराने मिल लाइसेंस की अवधि (तीन साल) तक ओरेंज कैटेगरी में ही रहेंगे, नवीनीकरण कराने पर वो भी ग्रीन कैटेगरी में आ जाएंगे। व्हाइट कैटेगरी को लेकर मिल एसोसिएशन की सरकार से वार्ता जारी है। इस संबंध में दिल्ली में 26 अगस्त को भी दिल्ली में एक मीटिंग हुई। जिसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव प्रशात गार्गव और डिविजनल प्रमुख पीके गुप्ता के साथ ही मिल एसोसिएशन और संबंधित मंत्रालय और विभाग के अधिकारी मौजूद रहे।

ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन ने अपने समर्थन में ये तर्क दिए

1- दाल मिलों पर सिर्फ दाल बनाने का काम होता है, उसको बारीक कर बेसन बनाने का काम नहीं होता। बेसन प्लांट की मशीनीरियां दाल इण्डस्ट्रीज के मशीनों से अलग होती हैं।

2- दाल इंडस्ट्रीज में कभी किसी प्रकार का धुआं नहीं होता, न ही इस इंडस्ट्रीज में भट्टियों की जरूरत होती है। दाल इंडस्ट्रीज आधुनिक उपकरणों और बिजली पर संचालित होती हैं।

3- दाल इंडस्ट्रीज को वायु प्रदूषण धारा अधिनियम 1981 के तहत लाइसेंस दिया जाता है। इसमें बार-बार एनओसी के लिए आनलाइन आवेदन डाला जाता है और नवीनीकरण किया जाता है।

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4- दाल इंडस्ट्रीज के छोटे बड़े कारखानों से प्रतिवर्ष 5 हजार रूपये का राजस्व प्राप्त होता है। किन्तु उद्योगपति और दाल इंडस्ट्रीज मालिक कई महीनों चक्कर लगाते हैं। कागजी आवश्यकताएं पूरा करते हैं, जिससे दाल मिलर्स काफी परेशान होते हैं।

5-छोटी-छोटी दाल इंडस्ट्रीज पर प्रदूषण विभाग के लाइसेंस लागू नहीं होने चाहिए। विभाग से लाइसेंस लेने के लिए अनेक दस्तावेज और कागज प्रस्तुत करना पड़ता है, जिससे उन्हें परेशान होना पड़ता है।


   

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