लखनऊ: काम की तलाश में मजदूर, लॉकडाउन में ही गांव के पास के कस्बों-शहरों की ओर लौटना शुरू

लॉकडाउन में अपने गांवों तक पहुँचने में कामयाब हुए मजदूरों को अब तक गांवों में काम न मिल पाने की वजह से वे अब अपने आसपास के कस्बों-शहरों की ओर रुख करने को मजबूर हो रहे हैं।

Kushal MishraKushal Mishra   27 May 2020 9:29 AM GMT

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लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। लॉकडाउन के दो महीने बीत चुके हैं। एक ओर जहाँ अभी भी बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर दूसरे राज्यों में फँसे हैं और किसी भी तरह अपने गाँव, अपने घर लौटना चाहते हैं। दूसरी ओर लॉकडाउन में अपने गांवों तक पहुँचने में कामयाब हुए मजदूर फिर काम की तलाश में अपने आसपास के कस्बों-शहर लौटने को मजबूर हो रहे हैं।

लॉकडाउन के बाद भारत आजादी के बाद सबसे बड़ा रिवर्स माइग्रेशन (गांवों की ओर पलायन) देख रहा है। शहरों में बेरोजगारी और भुखमरी झेल रहे लोग कुछ भी करके अपने परिवार के पास गांव लौट रहे हैं। इनमें से काफी लोग कह रहे कि वापस शहर नहीं जाएंगे। मजदूर और कामगार जिन हालातों में गांव को पहुंचे और पहुंच रहे हैं, उससे बहुत लोगों को लगा कि ये शायद ही वापस आएं लेकिन रोजी-रोटी के लिए कुछ मजदूर फिर अपने गांवों के पास के कस्बों-शहरों में लौटे हैं।

"कहीं काम नहीं मिल रहा, अभी भी भुखमरी जैसे हालात हैं, जो कमाया था, वो भी चला गया, कमाई एक पैसे की भी नहीं है और खर्चे वैसे ही हैं, तो कहाँ जाएंगे? काम तो चाहिए ही, इसलिए वापस शहर आए कि कुछ न कुछ तो काम मिल ही जाएगा," लॉकडाउन में ही उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के टिकरिया गाँव से काम की तलाश में लखनऊ पहुंचे निर्माण श्रमिक शिव कुमार निर्मल बताते हैं।

शिव कुमार लॉकडाउन में ही 10 दिन पहले लखनऊ पहुंचे हैं और काम की तलाश में हर दिन सुबह राजाजीपुरम के ई-ब्लॉक में अपने जैसे दूसरे मजदूरों के साथ ग्राहक मिलने का इंतज़ार करते नज़र आते हैं। उनकी मुश्किल ये है कि वापस आकर भी मायूसी हाथ लगी है।

लॉकडाउन के दौरान लखनऊ के राजाजीपुरम के ई-ब्लॉक चौराहे पर काम की तलाश में पहुँच रहे दिहाड़ी मजदूर। फोटो : गाँव कनेक्शन

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वह कहते हैं, "हमें 10 दिन आए हो चुके हैं लेकिन तक हमको एक दिन भी काम नहीं मिला है यहाँ, बिना काम के कितने दिन गुजारा चल सकेगा?"

शिव कुमार की तरह निर्माण श्रमिक हुकुमवीर भी सीतापुर के अटरिया के हमीरपुर गांव से 21 मई को काम की तलाश में लौटे हैं। लखनऊ कैसे पहुंचे, के सवाल पर हुकुमवीर कहते हैं, "हम लोग को लखनऊ में थोड़ा बहुत काम शुरू होने के बारे में पता चला तो हम चार-पांच लोग गांव से मोटरसाइकिल से आ गए थे।" क्या पास बनवाना पड़ा? के सवाल पर हुकुमवीर कहते हैं, "नहीं पास नहीं बनवाया, बस मोटरसाइकिल से किसी तरह पहुँच गए।"

दिहाड़ी मजदूर शिव कुमार और हुकुमवीर की तरह सोनू कुमार भी हरदोई के रामकरवा गाँव के रहने वाले हैं और वो भी लॉकडाउन में अपने गाँव पहुँच गए थे, मगर सोनू भी अब काम की तलाश में लखनऊ लौट आये हैं।

सोनू कहते हैं, "हम शनिवार (23 मई) को लखनऊ आये, तब से रोज सुबह यहाँ आते हैं मगर अभी काम नहीं मिल रहा, सन्नाटा है। कुछ ही मजदूर लोग अब आना शुरू हुए हैं, जो बड़ी मुश्किल से पहुँच पा रहे हैं।"

गाँव में मनरेगा में काम नहीं मिला? इस सवाल के जवाब में सोनू कहते हैं, "अभी मेरे गाँव में मनरेगा का काम शुरू नहीं हुआ है, इसलिए फिर यहीं भाग आये हैं, लॉकडाउन में किसी तरह कर्जे में गाड़ी चलायी है, 09-10 हज़ार रुपए कर्जा हो चुका है, काम मिले तो धीरे-धीरे चुकायेंगे।"

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कभी इस चौराहे पर रोज सुबह सैकड़ों मजदूरों की लगती थी भीड़, मगर लॉकडाउन की वजह से कुछ ही मजदूर नज़र आ रहे। फोटो : गाँव कनेक्शन

लॉकडाउन के दौरान पर्याप्त राशन न मिलने और रोजगार खोने की वजह से इन मजदूरों पर कर्ज का दबाव भी काफी बढ़ गया है। सामाजिक रूप से बहिष्कृत समुदायों के मानवाधिकारों को लेकर काम कर रही संस्था जन साहस की ओर से लॉकडाउन के दौरान 3,127 मजदूरों से बातचीत के आधार पर एक रिपोर्ट पेश की गयी।

इस रिपोर्ट के अनुसार 78.7 प्रतिशत प्रवासी मजदूरों को इस बात का डर है कि परिवार के लिए जो उन्होंने कर्ज ले रखा है, अगर उन्हें रोजगार नहीं मिला तो वे कैसे इस कर्ज को चुका पायेंगे।

दिहाड़ी मजदूर सोनू की तरह महेंद्र अपने घर नहीं जा सके थे और लॉकडाउन में लखनऊ में ही फँस गए। महेंद्र भी छह-सात दिन से रोज इसी चौराहे पर काम की तलाश में आ रहे हैं। लखनऊ जैसे शहरों में ऐसे कई केंद्र होते हैं, जिन्हें लेबर अड्डा कहा जाता है, से लोग घर बनाने, रंगाई-पुताई, नींव खोदने, बढ़ाई आदि का काम कराने के लिए लोग ले जाते हैं, लेकिन आजकल ये अड्डे भी सूने हैं।

महेंद्र बताते हैं, "लॉकडाउन में 10 हज़ार रुपए अब तक उधार हो चुका है, काम कोई मिला नहीं, बस किसी से उधार ले-देकर ही गुजारा चल रहा है, किराया भी देना होता है, 400 रुपए दिहाड़ी मिलती है, जब कमाएंगे तो ही तो कर्जा चुकायेंगे।" वह कहते हैं, "अभी काम नहीं भी चल रहा है, इक्का-दुक्का कोई (काम देने वाला) आ गया तो एक-दो मजदूर को मिल गया, वरना सभी वापस लौट जाते हैं।"

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लॉकडाउन के दौरान काम मांगने के लिए सड़क पर डब्बे में रखे दिखाई दिए एक निर्माण श्रमिक के जरूरी सामान। फोटो : गाँव कनेक्शन

राजाजीपुरम के इस चौराहे पर सालों से निर्माण श्रमिकों की भीड़ लगती आई है। आम दिनों में सुबह के समय यहाँ 150 से 200 मजदूर इकठ्ठा होते थे, मगर इन दिनों लॉकडाउन के दौरान मुश्किल से 20-25 मजदूर ही सड़क पर नजर आये।

हरदोई के संडीला तहसील के मवई गांव से 21 मई को लखनऊ वापस लौटे एक और निर्माण श्रमिक रुपेश कुमार बताते हैं, "लॉकडाउन में अभी डर का माहौल है, चौराहे पर खड़े होना भी मुश्किल होता है, हम लोगों को भी लगता है कि कोई ग्राहक हमको ले जाएगा या नहीं ले जायेगा। मगर फिर भी हम लोग शहर आये हैं कि कम से कम यहाँ काम मिल सकेगा।"

'मनरेगा में हम फावड़ा नहीं चला सकते ना'

गाँव में मनरेगा का काम शुरू हो रहा है, गाँव में ही काम नहीं ढूँढा, के सवाल पर रुपेश के पास ही खड़े एक और मजदूर अशोक कुमार कहते हैं, "हम लोग पेंटिंग का काम करते हैं, गाँव में मनरेगा में कहा जाता है कि फावड़ा चालिए, तो फावड़ा हम लोग कहाँ चला पायेंगे, डलिया लादकर कहाँ ढो लेंगे, पेंटिंग का काम जानते हैं, तो पेंटिंग का काम करेंगे।"

उत्तर प्रदेश में घर लौटने वाले श्रमिकों की स्किल मैपिंग कराई जा रही है। यूपी में अब तक 24 लाख के आसपास मजदूर और श्रमिक वापस अपने घरों को लौट चुके हैं। अभी 22 मई तक 9 लाख से ज्यादा श्रमिक-कामगारों की हुनर मैपिंग भी हो चुकी थी, कि वो क्या काम करते हैं। स्किल मैपिंग के तहत निर्माण मजदूर, पेंटर, ड्राइवर, नर्स, मोटर मैकेनिंक समेत 64 ग्रेड में डाटा तैयार किया जा रहा है।

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि वो स्किल मैपिंग के साथ माइग्रेशन कमीशन बनवा कर इन श्रमिक-कामगारों को उनके कौशल के अनुरूप प्रदेश में ही रोजगार की सुनिश्चित कराने के लिए कोशिश में है। यूपी में एक बड़ी संख्या निर्माण श्रमिकों की है।

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लखनऊ के राजाजीपुरम में सड़क किनारे और गाड़ियों के बीच खड़ी दिखी एक मजदूर की साइकिल।

देश में अगर निर्माण श्रमिकों से जुड़े दिहाड़ी मजदूरों की बात करें तो 5.50 करोड़ श्रमिकों के साथ इनकी संख्या सबसे ज्यादा है और ये देश की जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद में नौ फीसदी का योगदान देते हैं। ऐसे में लॉकडाउन में ही काम की तलाश में शहरों की ओर लौटना इनकी मजबूरी है।

लखनऊ के राजाजीपुरम के इसी चौराहे पर काम की तलाश में आने वाले एक बुजुर्ग श्रमिक राकेश कुमार वैसे इटावा के बिलवा गाँव से हैं। गाँव में काम मिलने के सवाल पर राकेश कहते हैं, "गाँव छोड़ दिया, यहीं कमाना है यहीं खाना है। खेती-बाड़ी है नहीं, इसलिए यहीं काम चलता है और ऐसे ही गुजारा चलता है।" राकेश भी और मजदूरों की तरह छह-सात दिन से इसी चौराहे पर आकर खड़े होते हैं।

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने लॉकडाउन में रोजगार खोने वाले प्रदेश के इन मजदूरों के लिए 20 मार्च को आर्थिक राहत पैकेज का ऐलान किया था। इसके तहत 20.37 लाख निर्माण श्रमिकों और 15 लाख दिहाड़ी मजदूरों को उनकी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए 1000-1000 रुपये प्रति माह का भत्ता देने की घोषणा की। प्रदेश सरकार ने 27 मई को श्रमिकों से यह भी अपील की है कि यदि किसी श्रमिक का बैंक खाता निष्क्रिय हो गया हो तो अविलम्ब उसे सक्रिय करायें ताकि ऐसे कामगार अपने भरण पोषण भत्ते की धनराशि को निकाल सकें।

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संगठित निर्माण श्रमिकों का कार्ड दिखाते दिहाड़ी मजदूर राकेश और अशोक कुमार, लॉकडाउन में इन मजदूरों को सरकार की ओर से नहीं मिल सकी आर्थिक सहायता। फोटो : गाँव कनेक्शन

कार्ड रिन्यू होता तो 1000 रुपए मिलते

क्या आपको योगी सरकार की ओर से लॉकडाउन में कोई मदद मिल सकी, के सवाल पर राकेश के साथ खड़े अशोक कुमार अपना संगठित मजदूरों का कार्ड दिखाते हुए कहते हैं, "हम लोगों का कार्ड बना है, मगर हम लोग एक-दो साल से नया नहीं बनवाए, इस वजह से हम लोगों को पैसा भी नहीं मिल सका।" अशोक यह भी कहते हैं, "यह हम लोगों की बेवकूफी है कि कार्ड रीन्यू नहीं कराये वरना हम लोगों को फायदा मिलता।"

पास में खड़े रुपेश कहते हैं, "बस हम लोगों को दो बार सरकारी राशन जरूर मिला, परिवार के जितने लोग हैं उस हिसाब से, कम से कम इतना तो मिला।"

लॉकडाउन-4 अब 31 मई को खत्म हो रहा है। शर्तों के साथ कामकाज भी जारी हैं। लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते हुए लॉकडाउन का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष खामियाजा भुगत रहे रोज कमाकर अपना और अपने परिवार का पेट पालने वाले मजदूरों के सामने रोजगार अब सबसे बड़ी जरूरत बन गयी है।

दूसरे राज्यों में फंसे कई मजदूर भी नहीं आएँगे वापस

कई प्रवासी मजदूर जो दूसरे राज्यों में फँसे थे और उन्होंने ट्रेन से घर वापसी के लिए टिकट के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था। वे भी अब वहां काम शुरू होने की वजह से रुक रहे हैं।

कर्नाटक के कुल्लुर में लॉकडाउन में फँस कर रह गए गुप्तचंद उनमें से ही एक मजदूर हैं। उत्तर प्रदेश के महाराजगंज के अट्टा बाजार के रहने वाले गुप्तचंद ने कर्नाटक में काम शुरू होने पर घर वापस न लौटने का फैसला लिया।

कारपेंटर का काम करने वाले गुप्तचंद फ़ोन पर बताते हैं, "इधर कुल्लुर में चार मई से थोड़ा-थोड़ा काम शुरू हुआ है और हमको काम भी मिल गया है तो अब गांव जाकर क्या करेंगे, इसलिए हमने अब यहीं काम करने का फैसला लिया है।"

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