जयपुर (राजस्थान)। टीबी की बीमारी में शरीर में पोषक तत्वों की कमी सबसे बड़ी वजहों में से एक होती है। भारत में कुपोषण बच्चों से लेकर वयस्कों तक के लिए बड़ी समस्या है। कुपोषण की समस्या से राजस्थान भी अछूता नहीं है। प्रदेश के कई जिलों में आज भी सैंकड़ों की संख्या में बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं और अपना इलाज करा रहे हैं। भारत सरकार की इंडिया टीबी रिपोर्ट-2021 के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में 4,08,745 टीबी के एक्टिव केस आए हैं। ऐसे में राजस्थान सरकार द्वारा चलाया गया न्यूट्री गार्डन यानी सुपोषण वाटिका कार्यक्रम कुपोषण मिटाने में देश के सामने मिसाल पेश कर सकता है।
कुपोषण के मामले में राजस्थान असम और बिहार के बाद तीसरे नंबर पर है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के अनुसार प्रदेश में 38.4% बच्चों का वजन औसत से कम है। 23.4 फीसदी बच्चे शारीरिक रूप से कमजोर, 8.7% बच्चे अति कमजोर और 40.8 फीसदी बच्चे अविकसित है। अविकसित या पोषण की कमी से टीबी जैसी बीमारी के होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ग्रामीण इलाकों में लोगों को पोषण युक्त खाना मिले तो कुपोषण के साथ-साथ टीबी के खतरे को भी काफी कम किया जा सकता है।
2025 तक टीबी के जड़ से खात्मे के लिए केन्द्र सरकार ने टीबी उन्मूलन कार्यक्रम चला रखा है। विशेषज्ञों की मानें तो खान-पान में पोषण की कमी टीबी बीमारी का मुख्य स्त्रोतों में से एक होता है। ऐसे में राजस्थान में चलाए गए न्यूट्री गार्डन यानी सुपोषण वाटिका कार्यक्रम कुपोषण मिटाने में देश के सामने मिसाल पेश कर सकता है। जानकारों का कहना है कि कुपोषित बच्चों या वयस्कों में टीबी होने की संभावना सबसे अधिक होती है।
कुपोषण के उपचार के बाद भी पौष्टिकता के अभाव में लोग फिर से कुपोषित होते हैं और बीमारियों का शिकार बनते हैं। देखा गया है कि एक बार इलाज के बाद टीबी के लक्षण वापस विकसित हो जाते हैं। इन लक्षणों को रोकने पर ही टीबी उन्मूलन जैसे कार्यक्रमों सफल बन सकते हैं। इसके लिए सरकार को लोगों के खान-पान में पौष्टिक आहार को शामिल कराना होगा।
क्या होता है न्यूट्री गार्डन या सुपोषण वाटिका
न्यूट्री गार्डन एक ऐसा क्षेत्र है, जहां विभिन्न फल, सब्जियों को पारिवारिक पोषण संबंधित आवश्यकताओं को परिपूर्ण करने के अलावा आय अर्जित करने के लिए उगाया जाता है। इसे आप घर के आगे या पीछे खाली पड़ी जगह पर आसानी से विकसित कर सकते हैं।
हरा-भरा दिखाई देने के साथ ही न्यूट्री गार्डन से आपको भरपूर पोषक तत्वों वाली सब्जियां भी मिल जाएंगी। न्यूट्री गार्डन का एक प्रमुख उद्देश्य कीटनाशी रहित ताजी सब्जियां उगाना है। इससे परिवार के सदस्यों की आवश्यकता अनुसार प्रतिदिन कुछ न कुछ सब्जियां प्राप्त होती रहे।
एसोसिएशन फॉर रूरल एडवांसमेंट थ्रू वॉलेन्ट्री एक्शन एंड लोकल इनवॉल्वमेंट (अरावली) के प्रोग्राम डायरेक्टर वरूण शर्मा ग्रामीण इलाकों में गरीबी उन्मूलन जैसे कार्यक्रमों में राजस्थान सरकार के साथ काम करते हैं।
वे कहते हैं, ‘शहरों की तुलना में ग्रामीण भारत में टीबी के केस अधिक हैं। क्योंकि वहां गरीबी है और इसकी वजह से लोग आहार पर ध्यान नहीं दे पाते। लगातार पौष्टिकता नहीं मिलने से शरीर में ऐसे विषाणु विकसित हो जाते हैं जो बाद में टीबी जैसी बीमारी में बदल जाते हैं। टीबी का वायरस शरीर में लगभग मृत अवस्था में हमेशा रहता है। जैसे ही हमारे शरीर में भोजन या पौष्टिक चीजों की कमी होती है टीबी के विषाणु एक्टिव हो जाते हैं, जो दूसरे विषाणुओं के साथ मिलकर बीमारी का रूप ले लेते हैं। इसीलिए सबसे पहले यह जरूरी है कि टीबी के लक्षणों को पहचाना जाए।’
वरूण आगे कहते हैं, ‘केन्द्र सरकार 2025 तक देश से टीबी खत्म करने के लिए कार्यक्रम चला रही है, लेकिन अक्सर देखा जाता है कि टीबी का इलाज लेने वाले लोग वापस से रोगग्रस्त हो जाते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण उनके खाने में पौष्टिक आहारों की कमी ही होती है। चूंकि इलाज के दौरान उन्हें दवाइयों के रूप में जरूरत मुताबिक न्यूट्रिशन मिल जाते हैं, लेकिन इलाज के बाद वे वापस से उसी स्थिति में होते हैं जहां पहले थे। पौष्टिक खाना नहीं मिलने से वे वापस टीबी के मरीज बन जाते हैं।’
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बांसवाड़ा में आईसीडीएस की डिप्टी डायरेक्टर मंजू परमार बताती हैं, ‘कुपोषण और उससे होने वाली बीमारियों को कम करने में सुपोषण वाटिका या न्यूट्री गार्डन काफी मददगार साबित हो सकते हैं। दरअसल, ये बीमारियों को होने नहीं देने की दिशा में एक पहल है। हमने सर्दियों में गाजर, पालक, मटर उगाकर कुपोषित बच्चों और उनके परिवार को पौष्टिक सब्जी उपलब्ध कराई। इसके सकारात्मक नतीजे मिले हैं, लेकिन अब गर्मियों में इन बगीचों के लिए पानी की व्यवस्था नहीं है। इसीलिए लगभग सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों में ये बगीचे सूख चुके हैं।’
परमार कहती हैं, ‘अगर पानी की उपलब्धता और पूरी प्लानिंग के साथ इन बगीचों को विकसित किया जाए तो राजस्थान में कुपोषण और उससे होने वाली टीबी जैसी गंभीर बीमारी पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।’
मंजू परमार की बात से वरूण भी सहमत होते हैं। वे कहते हैं, ‘अगर सरकार पूरी प्लानिंग, गंभीरता और स्थानीय लोगों की मदद लेकर इस पर काम करे तो टीबी उन्मूलन का लक्ष्य 2025 से पहले ही हासिल किया जा सकता है।’
आईसीडीएस ने उपलब्ध कराए 10 हजार रुपए
आईसीडीएस (Integrated Child Development Services) ने प्रत्येक न्यूट्री गार्डन के लिए 10 हजार रुपए जारी किए थे। मनरेगा की मदद से आंगनबाड़ी केन्द्रों में ये गार्डन तैयार भी किए गए। उदयपुर जिले के कोटड़ा ब्लॉक में तो कुपोषित बच्चों के घरों पर न्यूट्री गार्डन तैयार किए गए।
हालांकि गर्मी आते-आते अधिकतर जगह पानी की कमी से ये न्यूट्री गार्डन सूखने लगे हैं। चूंकि पिछले साल ही ये कार्यक्रम शुरू किया गया है और 2020 मार्च में लगे लॉकडाउन की वजह से अधिकतक जगह इनका काम बंद हो गया। अब कई जिलों में न्यूट्री गार्डन को फिर से बनाया जा रहा है।
आईसीडीएस में अतिरिक्त निदेशक (पोषाहार) राजेश वर्मा ने गांव कनेक्शन को बताया कि न्यूट्री गार्डन ग्रामीण क्षेत्रों में उन लोगों पौष्टिक आहार देने का विचार है जो गरीबी के कारण इससे वंचित रहते हैं। कई जिलों में कुपोषित बच्चों और लोगों के घरों में भी ऐसे गार्डन बनाए गए हैं। इस कार्यक्रम में सरकार की ओर से स्पष्ट निर्देश हैं जिन्हें सभी को मानना जरूरी है। आईसीडीएस ने न्यूट्री गार्डन के लिए 10 हजार रुपए प्रत्येक आंगनबाड़ी के लिए उपलब्ध कराए हैं। इसमें उस स्थान की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार सब्जी, फलदार पेड़ लगाए जा सकते हैं।
वर्मा कहते हैं, ‘उदयपुर जिले में इस पर काफी अच्छा काम हुआ है। न्यूट्री गार्डन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे कुपोषण और उससे होने वाली बीमारियों से लड़ना काफी आसान हो सकता है। हालांकि इस कार्यक्रम के साथ कुछ चुनौतियां भी हैं। जिनके समाधान निकाले जाएंगे।’
कई जिलों में बने न्यूट्री गार्डन, पानी की कमी सबसे बड़ी समस्या
राजस्थान के कई जिलों में आईसीडीएस की फंडिंग और मनरेगा के जरिए सैंकड़ों न्यूट्री गार्डन तैयार किए गए हैं। दौसा, बांसवाड़ा, हनुमानगढ़, गंगानगर, उदयपुर, पाली, राजसमंद, प्रतापगढ़ और चित्तौड़गढ़ जैसे जिलों में बीती सर्दियों में न्यूट्री गार्डन बनाए गए हैं। इनमें से कई न्यूट्री गार्डन बेहद कारगर तरीके से सफल हुए हैं तो कहीं भौगोलिक परिस्थितियों के चलते उतने सफल नहीं हो पाए। अधिकतर जगह पानी की कमी के कारण न्यूट्री गार्डन सूख गए हैं। हालांकि सर्दियों के दौरान जब ये गार्डन तैयार किए तब उन घरों के सदस्यों को पौष्टिक सब्जियां मिली और इससे परिवारों के स्वास्थ्य पर असर भी देखा गया।
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बांसवाड़ा में आईसीडीएस ने 10 पंचायत समितियों के 149 आंगनबाड़ी केन्द्रों पर न्यूट्री गार्डन बनाए थे। इन आंगनबाड़ियों में 300 से ज्यादा कुपोषित बच्चे रजिस्टर्ड थे। न्यूट्री गार्डन और सही इलाज के बाद यहां अब 73 बच्चे ही कुपोषित रह गए हैं। हालांकि गर्मियों में पानी नहीं होने के कारण लगभग सभी न्यूट्री गार्डन फिलहाल सूख गए हैं।
राजस्थान में स्वास्थ्य के मुद्दों पर काम करने वाली प्रयास संस्था की निदेशक छाया पचौली कहती हैं, ‘न्यूट्री गार्डन कुपोषण को कम करने में कारगर हो सकता है। क्योंकि कुपोषण से टीबी होने का रिस्क काफी बढ़ जाता है, लेकिन इसके लिए पहले पूरी व्यवस्था और ढांचा तैयार करना पड़ेगा।
अभी जो न्यूट्री गार्डन बने हैं वो सिर्फ प्रयोग के तौर पर बनाए गए हैं, जिनमें से अधिकतर अब खत्म हो चुके हैं। साथ ही मेरा तो ये भी मानना है कि खाद्य सुरक्षा जैसे योजनाओं में अधिक से अधिक लोगों को जोड़ना चाहिए और ऐसी योजनाओं पर सरकारी खर्च भी बढ़ाया जाना चाहिए। ताकि गरीब लोगों की राशन जैसी मूलभूत जरूरत पूरी हो सके। भरपूर राशन मिलने से गरीब तबके के लोगों की पोषण संबंधी जरूरतें पूरी हो सकेंगी।’
(यह स्टोरी SATB फेलोशिप के तहत प्रकाशित हुई है)