ODF घोषित हो गया मैनपुरी, लेकिन अब भी 1 लाख 5 हजार शौचालय की दरकार
2 अक्टूबर 2019 तक बेस लाइन के आधार पर उत्तर प्रदेश को खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया जाएगा, लेकिन क्या सही मायनों में यह हो पाएगा।
Ranvijay Singh 4 Jan 2019 6:12 AM GMT
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले को 2 अक्टूबर 2018 को ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) घोषित कर दिया गया। लेकिन अब इस जिले में आधे अधूरे बने शौचायल और उनको बनाने में घोटाले की बात सामने आ रही है। साथ ही अधिकारी इस बात को भी मान रहे हैं कि जिले को ओडीएफ घोषित करने का दबाव था, ऐसे में गड़बड़ियां हुई हैं।
ये मामला सबसे पहले मैनपुरी के नौनेर गांव से उठा। नौनेर गांव के निवासी सर्वेश चौहान की ओर से शौचायल बनाने में गड़बड़ियों की शिकायत भारत सरकार के पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय में की गई। सर्वेश की ओर से मंत्रालय को बताया गया कि नौनेर पंचायत में स्वच्छ भारत मिशन के तहत दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि में घोटाला किया गया है। बता दें, प्रशासन की ओर से शौचालय बनाने के लिए पात्र व्यक्ति को 6-6 हजार की दो किस्त दी जाती है। यानी 12 हजार रुपए लाभार्थी को मिलते हैं।
सर्वेश ने मंत्रालय को बताया कि जब पहली किस्त जारी की गई तो कई लोगों के खाते में दो बार प्रोत्साहन राशि भेजी गई। इन लोगों के गांव के नाम बस अलग-अलग थे, इसके अलावा बैंक खाता और पिता का नाम एक ही था। इस तरह से एक ही व्यक्ति को दो बार प्रोत्साहन राशि भेजकर घोटाला किया गया है। इसके अलावा ये भी बताया कि गांव में कई शौचालय अभी भी अधूरे हैं। मंत्रालय ने इस शिकायत के आधार पर जांच के आदेश दे दिए हैं।
इस मामले पर मैनपुरी के डीपीआरओ यतेंद्र सिंह गांव कनेक्शन से बताते हैं, ''जैसा मामला दिख रहा है वैसा है नहीं। पैसा लाभार्थी के खाते में गया है, ऐसे में घोटाला कैसे हो जाएगा।'' यतेंद्र कहते हैं, ''मैनपुरी की एक कमी रही कि जो काम 4 साल पहले शुरू होना था उसकी शुरुआत जून 2018 में हुई। मैंने 4 जुलाई को चार्ज लिया और मुझे जानकारी हुई कि 2 अक्टूबर 2018 को जिले को ओडीएफ घोषित करना है। मेरे पास जुलाई, अगस्त और सितंबर सिर्फ तीन महीने थे।''
यतेंद्र सिंह बताते हैं, ''हम ग्राम प्रधान को पैसा भी नहीं दे सकते थे। तो हमने इस योजना के पात्र लोगों के बैंक खाता नंबर गांव से मंगाए। अब एक साथ तो सबके खाते आ नहीं रहे थे। गांव वालों की ओर से पहले कुछ नाम भेजे गए। फिर जब दूसरी बार लोगों के बैंक खाते मंगाए गए तो जिन लोगों ने पहले अपने खाते भेजे थे उन्होंने फिर से अपना नाम और खाता संख्या भेज दिया। हमारे पास समय बहुत कम था और काम ज्यादा। रात दिन ऑपरेटर काम कर रहे थे। इस हालात में नाम दो बार फीड हो गए। हालांकि, हमने उन लोगों को चिन्हित किया है। हमें 12 हजार रुपए ही देना है। अगर किसी के खाते में 12 हजार गए हैं तो हम उसको दूसरी किस्त नहीं देंगे।'' यतेंद्र सिंह यह भी बतात हैं कि ऐसा कोई शासनादेश नहीं हैं कि लाभार्थी को 6-6 हजार की दो किस्त देनी है। यह सिर्फ अपनी सुविधा के लिए प्रशासन की ओर से किया जाता है, ताकि लाभार्थी शौचालय का काम शुरू कर दे। एक बार पैसा देने में कई बार लाभार्थी पूरा लेकर बैठ जाते हैं, यानि शौचायल नहीं बनाते।
इस सवाल पर कि लिस्ट में एक ही नाम वो बैंक खाते वाले कई लोग शामिल हैं, बस उनके गांव के नाम अलग है। इसके जवाब में यतेंद्र सिंह कहते हैं, ''नौनेर बहुत बड़ा गांव है। 5905 लोग पात्र थे और इनके बैंक खातों की फीडिंग होनी थी। हमारे पास समय बहुत कम था। ऐसे में गांव के नाम अलग हो गए, लेकिन खाता तो लाभार्थी का ही है। पैसा लाभार्थी को ही मिला है।'' जब डीपीआरओ से पूछा गया कि पहली लिस्ट में ऐसे भी नाम हैं जिन्हें तीन बार 6 हजार की किस्त भेजी गई है। इस पर डीपीआरओ कहते हैं, ''हमें इस बात की भी जानकारी है। हमने इसके लिए बैंकों को पत्र भेजकर पैसा वहीं रुकवा दिया था। अगर किसी के खाते में पैसा गया है तो उसकी रिकवरी भी की जाएगी।''
यह तो हुई पहली किस्त भेजने में गड़बड़ी की बात। इसके अलावा एक और बात है जो मैनपुरी के लोगों द्वारा बताई गई। यह बात कि जिले को सिर्फ कागजों में ओडीएफ घोषित किया गया है, असल हकीकत कुछ और ही है। इसका जवाब भी यतेंद्र सिंह देते हैं। वो कहते हैं, ''हमारे पर दबाव था कि 2 अक्टूबर तक जिले को ओडीएफ घोषित करना था। 2012 में एक सर्वे हुआ था। उसके आधार पर 1 लाख 84 हजार लोगों को शौचालय निमार्ण के लिए चुना गया। ये ही वो बेस लाइन थी जो हमको पानी थी। यानी मैनपुरी में 1 लाख 84 शौचालय 2 अक्टूबर 2018 तक बनाकर तैयार करने थे, ताकि जिले को ओडीएफ घोषित किया जा सके। हमने ऐसा ही किया है। बेस लाइन के मुताबिक जिले को ओडीएफ घोषित कर दिया गया है।''
''मेरे पास 1 लाख 5 हजार लोगों का हालिया सर्वे रखा हुआ है। ये सभी लोग पात्र हैं शौचालय के लिए। असल में जब 1 लाख 5 हजार शौचालय और बन जाएंगे तब जाकर मैनपुरी ओडीएफ होगा। सरकार की तरफ से 61 हजार शौचालय का पैसा मिल गया है, लेकिन तब भी 44 हजार शौचालय बच रहे हैं।'' - मैनपुरी के डीपीआरओ यतेंद्र सिंह
बता दें, 14 सितंबर 2018 को 'स्वच्छ ही सेवा आंदोलन' की लॉन्चिंग के वक्त सीएम योगी आदित्यनाथ ने नमो एप के जरिए पीएम मोदी से संवाद में कहा था, ''हम मार्च 2017 में सत्ता में आए। हमने सफाई अभियान को एक आंदोलन की तरह लिया और केवल 17 महीने में हम 1.36 करोड़ शौचालय का निर्माण करने में सक्षम हुए हैं।'' साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया कि ''2 अक्टूबर 2019 तक छोटे परिवारों के बेस लाइन सर्वे के बाद कोई भी परिवार राज्य में बिना शौचालय के नहीं रहेगा।'' हालांकि सीएम योगी के इस दावे को उत्तर प्रदेश का एक जिला ही गलत साबित कर देता है। मैनपुरी के नौनेर पंचायत में आधे अधूरे बने शौचालय इस बात को गलत साबित करते नजर आते हैं।
नौनेर गांव के सर्वेश की शिकायत पर पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय की ओर से स्वच्छ भारत प्रेरक विलास नंदा को गांव में जांच के लिए भेजा गया था। विलास नंदा दिसंबर 2018 में नौनेर गांव में दो बार जांच के लिए गए। पहली बार तो सब ठीक रहा लेकिन दूसरी बार में प्रधान के लोग और सर्वेश के लोगों के बीच मारपीट की नौबत आ गई। चूकि विलास महाराष्ट्र से आए थे, ऐसे में वो इस मारपीट को देखकर घबरा गए। विलास दबी जबान में गांव में शौचालय का काम पूरा न होने की बात कहते हैं। विलास फोन पर बताते हैं, ''मैं बहुत दूर से आया हूं। मैनपुरी राजनीतिक तौर पर बहुत दबाव का जिला है। मेरी सुरक्षा भी जरूरी है।'' जब विलास नंदा से पूछा गया कि क्या आप असुरक्षित महसूस कर रहे हैं? विलास कहते हैं, ''आप समझ सकते हैं इस बात को।'' विलास बताते हैं, ''उन्होंने करीब 50 शौचालय देखे जिनमें से ज्यादातर का काम पूरा नहीं था।'' विलास नंदा का गांव में जांच करते हुए एक वीडियो भी गांव कनेक्शन के पास है। उसमें साफ तौर पर देखा जा सकता है कि शौचालय आधे अधूरे बने हैं।
आधे अधूरे शौचालय की बात पर डीपीआरओ यतेंद्र सिंह कहते हैं, ''शौचालय का निमार्ण आदत पर आधारित है। लोगों पर सख्ती नहीं कर सकते। हमने लाभार्थी को पैसा दे दिया है। ज्यादातर लोग तो बना रहे हैं, जो लोग नहीं बना रहे उनसे बात की जाएगी। हमने निगरानी समिती गठित की है। यह समिती इस बात को देखेगी कि किसने पैसा लेकर शौचालय नहीं बनाया है। ऐसे लोगों को मोटिवेट किया जाएगा।'' फिलहाल मैनपुरी के डीपीआरओ भी इस बात को मानते हैं कि जिले को ओडीएफ बेस लाइन के आधार पर किया गया है। असल में जिला पूर्ण रूप से खुले में शौच मुक्त यानी ओडीएफ नहीं हुआ है।
बात करें ओडीएफ की तो यह पीएम नरेंद्र मोदी के महत्वकांक्षी अभियान स्वच्छ भारत से जुड़ा हुआ है। इसलिए राज्यों को ओडीएफ घोषित करने के लिए तेजी से काम किया जा रहा है। पीएम मोदी ने 2 अक्टूबर 2018 को महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन में बोलते हुए कहा था, ''भारत में खुले में शौच से मुक्त गांवों (ओडीएफ) की संख्या 5 लाख को पार कर चुकी है। भारत के 25 राज्य खुद को खुले में शौच मुक्त घोषित कर चुके हैं। चार साल पहले खुले में शौच करने वाली वैश्विक आबादी का 60 प्रतिशत हिस्सा भारत में था, आज ये 20 प्रतिशत से भी कम हो चुका है। इन चार वर्षों में सिर्फ शौचालय ही नहीं बने, गांव शहर ओडीएफ ही नहीं बने बल्कि 90 प्रतिशत से अधिक शौचालय का नियमित उपयोग भी हो रहा है।''
पीएम मोदी की बात के मुताबिक, भारत के 29 राज्य में से 25 ओडीएफ घोषित हो चुके हैं। लेकिन अगर बात करें ओडीएफ घोषित करने के तरीके पर तो वो बेस लाइन के आधार पर किया जा रहा है। मतलब 2012 में किया गया एक सर्वे जिसमें पात्रों का चुनाव किया गया था। लेकिन इस सर्वे में तब से लेकर अब तक बहुत अंतर आ गया है। ऐसा खुद अधिकारी भी मानते हैं। ऐसे में मैनपुरी सिर्फ एक उदाहरण है कि देश में राज्यों को ओडीएफ सिर्फ कागजों में घोषित किया जा रहा है। जमीनी हकीकत कुछ और ही बयान कर रही है। 2 अक्टूबर 2019 तक बेस लाइन के आधार पर उत्तर प्रदेश को भी खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया जाएगा, लेकिन क्या सही मायनों में यह हो पाएगा। फिलहाल ऐसा होते नहीं दिखता।
जिसने की शिकायत उसपर ही एफआईआर
वहीं, इस मामले को उजागर करने वाले सर्वेश और उनके साथियों पर प्रधान के साथ मारपीट करने के जुर्म में एफआईआर दर्ज कर ली गयी है। इसमें एससी एसटी एक्ट और 307 की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है। सर्वेश के भांजे गोपाल भदोरिया कहते हैं, हमारी गलती क्या थी कि हमने घोटाले को उजागर किया। आनंद आरोप लगाते हैं कि प्रशासन हमें जान बूझकर फंसा रहा है। उन्हें बस इस बात की नाराजगी है कि हमने शिकायत क्यों की। क्या घोटाले के खिलाफ आवाज उठाने की यह सजा मिलती है।
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