गाँव कनेक्शन विशेष : नोटबंदी की मार से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लगा झटका

Ashwani NigamAshwani Nigam   8 Nov 2017 10:23 AM GMT

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गाँव कनेक्शन विशेष : नोटबंदी की मार से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लगा झटकानोटबंदी के एक साल पूरे। फोटो : गाँव कनेक्शन

आज नोटबंदी का एक साल पूरा हो गया। देश के वितमंत्री अरुण जेटली ने नोटबंदी को ऐतिहासिक फैसला बताते हुए कहा कि आने वाली पीढ़ियां इस पर गर्व करेंगी, लेकिन देश के पूर्व प्रधानमंत्री और प्रख्यात अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इसे सबसे बड़ी सामाजिक विपत्ति बताया।

माना ग्रामीण अर्थव्यबवस्थाि नोटबंदी से प्रभावित

राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और अर्थशास्त्रियों के आंकलन से परे नोटबंदी ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर डाला है। गांव कनेक्शन देश के कई राज्यों के किसानों और सीधे ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़े लोगों से इस बारे में बात की। ज्यादातर लोगों ने माना ग्रामीण आज भी नोटबंदी की मार से प्रभावित हैं।

उद्योगों को बंद करने का काम किया

भारत में भूख, अकाल, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और मनरेगा जैसे मुद्दों पर सालों से काम कर रहे दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने नोटबंदी को केंद्र सरकार की ओर से खेला गया एक प्रकार का जुआ बताया। वो आगे कहते हैं, “नोटबंदी ने भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था पर ब्रेक लगाने के साथ ही देश में बेरोजगारी और महंगाई का बढ़ाया है। लघु और कुटीर उद्योग, जो देश में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देते हैं, उन उद्योगों बंद करने काम किया है।”

ग्रामीण क्षेत्र अभी भी उभर नहीं पाया

ज्यां द्रेज अपने एक साल के अध्ययन के आधार पर कहते हैं, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नोटबंदी करने का फैसला एक घातक कदम था, जिसका असर से देश और ग्रामीण क्षेत्र अभी भी उबर नहीं पाया है।” प्रति व्यक्ति आय के मामले में सबसे गरीब राज्यों में शुमार बिहार में भागलपुर जिले के कोरचक्का गांव के किसान अवधेश मंडल अर्थशास्त्री नहीं है, लेकिन 500-1000 की नोटे बंद होने को किसानों की अर्थव्यवस्था चौपट करने वाला बताते हैं।

फोटो- इंटरनेट

तब रबी की बुवाई का समय था

“जब नोटबंदी हुई, उस समय रबी की बुआई का समय था, लेकिन न वक्त पर बीज मिला न उर्वरक। उस वक्त घर में जो अनाज रखा था कौड़ियों के भाव बिका। किसान के लेनदेन की पूरी गणित बिगड़ गई।” अवधेश मंडल फोन पर बताते हैं। सिर्फ नोट बंद होने से अर्थव्यस्था कैसे चौपट हो गई, इस सवाल के जवाब में अवधेश बताते हैं, “खेती में जो हुआ सो हुआ, मेरा एक लड़का सूरत में साड़ी कारखाने में काम करता था, 8 नवंबर को प्रधानमंत्री के फैसले के बाद वो कुछ दिनों में बंद हो गया। अब वो लड़का भी घर आ गया है, फिलहाल वो कोई नया काम खोज रहा है।”

बेरोजगार होकर गांव लौटे

नोटबंदी का ये दर्द अवधेश की तरह कई राज्यों के किसानों और ग्रामीणों को अपना सा लगेगा। बिहार से सटे झारखंड और यूपी के पूर्वांचल तक में पंजाब, गुजरात, दिल्ली, जलंधर, लुधियाना और मुंबई से लोग मायूस लौटे हैं। खुद ज्यां द्रेज इसकी पुष्टि करते हुए बताते हैं, “मैं झारखंड के पिछड़े जिले डाल्टनगंज के गाँवों में पिछले कई सालों से काम कर रहा हूं। नोटबंदी होने के बाद से जहां रोजगार की तलाश में शहर गए लोगों का बेरोजगार होकर गाँव लौटना पड़ा है, वहीं नगदी नहीं होने से गाँवों में भी मजदूरों का काम नहीं मिल रहा है।”

नौ गुणा का अंतर आ गया

बात सिर्फ कुछ महीनों की नहीं थी, घर के बचे नोट बैंक पहुंचे और बेरोजगार लोगों की गांवों में बढ़ी संख्या ने गांव और शहर के बीच की खाईं की और चौड़ा कर दिया है। “नोटबंदी के कारण स्थिति यह है कि शहरी और गाँव के लोगों की आय में नौ गुणा का अंतर आ गया है। इसके साथ ही ग्रामीणों की आय लगातार घट भी रही है।”

सरकार ने पूरी तैयारी नहीं की

इस पूरी समस्या के लिए द्रेज नोटबंदी को लेकर किए गए दावों को हकीकत में नहीं बदलना मानते हैं। उनके मुताबिक सरकार ने योजना को जमीन पर उतारने के लिए पूरी तैयारी नहीं की थी।

सबसे बड़ा वादा याद आता है

दावों की बात चली है, तो नोटबंदी के दौरान प्रधानमंत्री का किया गया सबसे बड़ा वादा याद आता है। नोटबंदी से काला धन आएगा। लेकिन विश्लेषकों का तर्क कुछ और है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के स्कूल ऑफ सोशल साइंस, सेंटर फॉर इकोनॉमिस्ट स्टडीज एंड प्लानिंग के अर्थशास्त्री, डॉ. सुरजीत दास, जो पिछले एक साल से नोटबंदी के असर को लेकर कई सारे रिसर्च पेपर्स लिख चुके हैं।

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क्योंकि कालाधन पर ब्याज नहीं मिलता

वो बताते हैं, “प्रधानमंत्री का नोटबंदी का फैसला काला धन को लाने में नाकाम रहा है क्योंकि अर्थशास्त्र की जो थ्योरी और प्रैक्टिकल है, वह बताता है कि लोग नगदी के रूप में काला धन नहीं रखते हैं क्योंकि इस पर उनको ब्याज नहीं मिलता। ऐसे लोग अपने काले धन को कुछ खास बिजनेस में निवेश करते हैं इसलिए नोटबंदी को लेकर सरकार के दावे हैं, उसमें सरकार फंस गई है।” ‘Why Black Money is Not in Cash’ नाम से लिखे शोध पत्र में डॉ. सुरजीत दास ने नोटबंदी को लेकर सरकार की जो असफलता रही, उसका विश्लेषण किया है।

बिचौलियों ने बहुत फायदा उठाया

खेती में लगातार पिछड़ रहा पंजाब भी नोटबंदी से प्रभावित हुआ। होशियारपुर जिले के शेरगढ़ गाँव के किसान बलजीत सिंह बताते हैं, “नोटबंदी का कमीशन एजेंट (बिचौलियों) ने बहुत फायदा उठाया। कर्ज में दबे किसानों उस वक्त धान के पैसे मिलने में देरी हुई। सालभर बाद भी अभी गाड़ी पटरी पर नहीं आई है।” जब नोटबंदी हुई थी, रांची के राजेंद्र महतो बहुत खुश थे। काधा धन पकड़ा जाएगा तो गरीब लोगों का भला होगा। सुविधाएं बढ़ेंगी। लेकिन 12 महीने बाद महतो को लगता है, जो कहा गया वो पूरा नहीं हुआ। खाता खुलवाकर थोड़ी बहुत जो बचत थी वो बैंक पहुंचा दी लेकिन अब लेनदेन में होने वाली मशक्कत उन्हें परेशान करती है।

लोग डरते हैं

महिलोंग गांव के राजेंद्र महतो अपना अनुभव बताते हैं, “बैंकों में आज भी घंटों लाइन में लगने के बाद भी पैसा नहीं मिल पाता है। गाँव के लोग आपस में जो अनाज के बदले पैसे का लेन-देन करते थे, वह भी अब नहीं हो रहा, लोग डरते हैं कि पता नहीं कब फिर से नोट बंद हो जाएं।”

नोटबंदी से कोई विशेष फायदा नहीं मिला

मध्य प्रदेश के सागर जिले के पंबोरी गाँव के किसान सिद्धार्थ चचोधिया बताते हैं, “पिछले साल रबी की बुवाई के समय ही सरकार ने नोटबंदी की थी, जिससे बुवाई बहुत प्रभावित हुई थी और उससे फसल की उपज पर असर पड़ा था, लेकिन अब स्थति में सुधार आ रहा है, मगर नोटबंदी से कोई विशेष फायदा नहीं मिला।'' हरियाणा में जींद जिले के किसान राजवीर चौधरी भी असमंजस में हैं। वो न इसे अच्छा फैसला बताते हैं न बुरा, बस इतना कहते हैं, “जो फायदे गिनाए गए थे वो हमारे गांव में तो नजर नहीं आए।”

लेकिन खरीददार नहीं मिले

गुजरात के सूरत जिले के कुड़सद गाँव के प्रगतिशील किसान नवनीत पटेल देश नगदी को अभी बड़ा संकट मानते हैं। उस वक्त टमाटर की फसल तैयार थी, लेकिन खरीददार नहीं मिले। आज भी नगदी उतनी नहीं है जो होनी चाहिए। कस्बों में जो एटीएम मशीनें लगी हैं,उनमें पैसे नहीं निकलता। बैंक वाले अधिक काम का रोना रोते हैं।”

‘जल्द ग्रामीण क्षेत्रों को मिलेगा सबसे ज्यादा फायदा’

नोटबंदी को केंद्र सरकार का साहसिक फैसला बताने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के अध्यापक और स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक डॉ. अश्विनी महाजन बताते हैं, “नोटबंदी को लेकर शुरुआत में लोगों को परेशानियां आई, लेकिन अब सबकुछ ठीक हो रहा है। कालाधन से चलने वाली कंपनियों पर रोक लगी है। डिजिटल लेन-देन बढ़ा है, टैक्स चोरों पर लगाम लगी है, लोग अब टैक्स जमा कर रहे हैं, जिसका आने वाले दिनों में सबसे ज्यादा फायदा भारत के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को मिलेगा।“

‘नोटबंदी काला धन लाने में नाकाम’

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के स्कूल ऑफ सोशल साइंस, सेंटर फॉर इकोनॉमिस्ट स्टडीज एंड प्लानिंग के अर्थशास्त्री, डॉ. सुरजीत दास, जो पिछले एक साल से नोटबंदी के असर को लेकर कई सारे रिसर्च पेपर्स लिख चुके हैं, उन्होंने बताया, “प्रधानमंत्री का नोटबंदी का फैसला काला धन को लाने में नाकाम रहा है क्योंकि अर्थशास्त्र की जो थ्योरी और प्रैक्टिकल है, वह बताता है कि लोग नगदी के रूप में काला धन नहीं रखते हैं क्योंकि इस पर उनको ब्याज नहीं मिलता। ऐसे लोग अपने काले धन को कुछ खास बिजनेस में निवेश करते हैं इसलिए नोटबंदी को लेकर सरकार के दावे हैं, उसमें सरकार फंस गई है।“ ‘Why Black Money is Not in Cash’ नाम से लिखे शोध पत्र में डॉ. सुरजीत दास ने नोटबंदी को लेकर सरकार की जो असफलता रही, उसका विश्लेषण किया है।

‘मेहनत की कमाई रद्दी बन गई’

उत्तर प्रदेश के बुंदलेखंड क्षेत्र के ललितपुर जिले के महरौनी ब्लॉक के गुमची गाँव के लखनलाल बुनकर कहते हैं, “नोटबंदी ने हमारे जैसे लोगों को कमर तोड़ दी है। नगदी का अभाव पहले के मुकाबले इतना ज्यादा है कि सूत के लिए भी पैसा नहीं मिल पा रहा है।“ नोटबंदी के समय लखनलाल की पत्नी जयंती गर्भवती थी, डिलीवरी के बाद बच्ची की देखरेख में भूल गईं कि 16 नोट पांच-पांच सौ के, 2 नोट एक-एक हजार के कुल दस हजार रुपए अपने पास रखे हैं, कुछ माह बाद जयंती को ध्यान आया तब तक बैंकों ने पुराने नोट लेना बंद कर दिया, अब दस हजार के नोट रद्दी कागज बन गए हैं। लखनलाल बुनकर बताते हैं, "मेहनत की कमाई रद्दी बन गई। तमाम बैकों के चक्कर काटे, लेकिन किसी ने पुराने नोट नहीं लिए और कह दिया कि डेड लाईन निकल चुकी है, तुम्हारे पुराने नोट कोई बैंक वाला नही लेगा, फिर क्या निराश होकर घर बैठ गए। तब से पुराने दस हजार के नोट रद्दी हो गए।

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गांव कनेक्शन दैनिक का पेज एक.. www.gaonconnection.com

    

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