महाराष्ट्र के किसान क्यों कर रहे हैं 'हमारा प्याज हमारा दाम' आंदोलन

लगातार घाटा सह रहे महाराष्ट्र के किसान 'हमारा प्याज हमारा दाम' आंदोलन कर रहे हैं, प्याज किसानों का कहना है कि एक किलो प्याज का दाम कम से कम तीस रुपए मिलना चाहिए।

Divendra SinghDivendra Singh   25 March 2021 12:49 PM GMT

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महाराष्ट्र के किसान क्यों कर रहे हैं हमारा प्याज हमारा दाम आंदोलन

 किसानों ने आंदोलन की शुरूआत महाराष्ट्र के नाशिक जिले की लासलगाँव मंडी से की, जो देश ही नहीं एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी है। Photo:By Arrangement

दिल्ली में किसान आंदोलन के 4 महीने पूरे होने वाले हैं। तीन कृषि कानूनों के विरोध और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गारंटी कानून के लिए किसानों ने अनिश्चित कालीन आंदोलन का ऐलान कर रखा है। इसी बीच महाराष्ट्र में प्याज किसानों ने एक आंदोलन शुरु कर दिया है। महाराष्ट्र के किसान 'हमारा प्याज हमारा दाम' आंदोलन के जरिए अपनी फसल का दाम खुद तय करने की मांग कर रहे हैं।

महाराष्ट्र कांदा उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले आंदोलन के बारे में गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "इस आंदोलन से हम किसानों को जागरूक कर रहे हैं, कि हम किसान मिलकर खुद प्याज का दाम तय करें। हम किसान मेहनत करके प्याज उगाते हैं और इसका फायदा व्यापारियों को मिलता है।" आंदोलन की शुरूआत प्याज के गढ़ नासिक जिले की लासलगांव मंडी से की गई।

पिछले कई वर्षों में साल 2020 ऐसा साल रहा है जब प्याज फुटकर में 200 रुपए किलो तक पहुंच गया था, यहां तक कि मंडी में 100 रुपए तक किलो रेट पहुंच गया था। लेकिन इसका ज्यादा फायदा किसानों को नहीं मिल पाया था, एक तो बारिश के चलते पहले कि किसानों की फसल आधी हो चुकी थी ऊपर से जब रेट बढ़ना शुुरु हुआ तब किसानों की एक बड़ी आबादी प्याज व्यापारियों को बेच चुकी थी।

"आजादी के 74 साल बीत गए, इस बार आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनायी जाएगी और अभी तक किसानों को अपने उत्पाद का सही दाम तक नहीं मिलता है। हम किसान के प्याज की बात कर रहे हैं, क्योंकि कभी-कभी तो प्याज का दाम 100 रुपए से ऊपर भी चला जाता है, लेकिन उसका फायदा व्यापारियों को मिलता है, न कि किसानों को उसका फायदा मिलता है, "भारत दिघोले ने आगे कहा।

महाराष्ट्र के अलग-अलग जिलों में किसान इस आंदोलन में साथ आ रहे हैं। Photo:By Arrangement

महाराष्ट्र के पुणे में स्थित प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय (ICAR-DOGR) के अनुसार देश में सबसे अधिक प्याज उत्पादन महाराष्ट्र में होता है, उसके बाद कर्नाटक, गुजरात, बिहार, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य आते हैं। महाराष्ट्र के नाशिक, अहमदनगर, पुणे, धुले, शोलापुर जिले में किसान प्याज की खेती करते हैं।

भारत दिघोले कहते हैं, "इस आंदोलन में महाराष्ट्र ही नहीं दूसरे किसान को शामिल किया जा रहा है और अलग-अलग तरह के लोगों का सपोर्ट भी ले रहे हैं। ग्राम पंचायत, सोसाइटी, जिला पंचायत सदस्य, विधायक, सांसद, मंत्री, पूर्व मंत्री सबसे मिल रहे हैं कई लोग लिखित में सपोर्ट भी कर रहे हैं। इस आंदोलन की शुरूआत हमने एशिया की सबसे बड़ी मंडी लासलगाँव में पिछले सोमवार ( 22 मार्च) को कर दी है। हमारी यही मांग है कि किसानों को कम से कम तीस रुपए किलो प्याज का दाम तो मिलना ही चाहिए, वो किसान चाहे महाराष्ट्र का हो या फिर उत्तर प्रदेश का।"

महाराष्ट्र में साल में चार बार (अगेती खरीफ, खरीफ, पछेती खरीफ और रबी) प्याज की खेती होती है। अगेती खरीफ में फरवरी-मार्च में बीज की बुवाई, अप्रैल-मई में प्याज की रोपाई और अगस्त-सितम्बर महीने में प्याज की हार्वेस्टिंग होती है। खरीफ में मई-जून में बीज की बुवाई, जुलाई-अगस्त में रोपाई और अक्टूबर-दिसम्बर महीने में हार्वेस्टिंग होती है। पछेती खरीफ में अगस्त-सितम्बर में बीज की बुवाई, अक्टूबर-नवंबर में रोपाई और जनवरी-मार्च में हार्वेस्टिंग होती है। जबकि रबी मौसम में अक्टूबर-नवंबर में बीज बुवाई, दिसम्बर-जनवरी में रोपाई और अप्रैल मई में प्याज की हार्वेस्टिंग होती है।

किसानों का कहना है कि महाराष्ट्र ही नहीं देश के दूसरे राज्यों, जहां पर प्याज की खेती होती है, वहां के किसानों को इस आंदोलन में जोड़ेंगे। Photo: By Arrangement

भारत बताते हैं, "अभी हमारे फेसबुक ग्रुप में एक लाख 43 हजार के किसान जुड़े हैं, सबका सहयोग मिल रहा है। इसी तरह हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से भी लाखों किसानों आंदोलन का सहयोग कर रहे हैं। ये तो सोशल मीडिया से जुड़े हैं, बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो फेसबुक या फिर व्हाट्सएप पर नहीं हैं। ढाई-तीन लाख किसान तो होंगे ही। आने वाले समय में हम हर एक तालुका, हर एक गाँव जहां पर प्याज की खेती होती है, उसके बाद हम मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात जैसे राज्य जहां पर प्याज की खेती होती है, वहां पर जाएंगे और किसानों को जागरूक करेंगे।"

किसान प्याज तैयार होने के बाद जल्दी ही उसे मंडी लेकर जाते हैं, क्योंकि उनके पास स्टोरेज की सुविधा नहीं होती है। अहमदनगर जिले के पाथर्डी तालुका के मिरी गाँव के किसान जितेंद्र शिंदे को काफी नुकसान हुआ था, क्योंकि उनके पास भंडारण की अच्छी सुविधा नहीं थी।

"किसी गाँव में 100 किसान हैं तो मुश्किल से 10 के पास ही स्टोरेज का इंतजाम है। सरकार स्टोर बनाने के लिए बहुत कम आर्थिक मदद देती है। 25 टन के स्टोरेज के लिए चार लाख रुपए लगते हैं, जबकि सरकार अधिकतम 87,500 रुपये ही देती है। अगर एक तहसील में 2000 किसानों ने स्टोर के लिए आवेदन किया तो लॉटरी में 100 का नंबर आता है। इस तरह इसके लिए लंबा इंतजार करना होता है। इसलिए किसान को मजबूरी में भी व्यापारियों को प्याज बेचनी पड़ती है, "दिघोले ने आगे कहा।

साल 2021 में भी फरवरी और मार्च में हुई ओलावृष्टि से प्याज के किसानों को काफी नुकसान हुआ है। ऐसे में किसानों का कहना है किसान की फसल जब मंडी पहुंचती है तो उसका जो रेट मिलता है कई बार उसमें लागत नहीं निकल पाती है इसलिए 30 रुपए किलो का रेट फिक्स होना चाहिए।

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