ऑनलाइन गेमिंग का जाल: PUBG में हारने से बढ़ती है लत, न खेलने से आता है गुस्‍सा

Ranvijay SinghRanvijay Singh   8 Feb 2019 7:33 PM GMT

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ऑनलाइन गेमिंग का जाल: PUBG में हारने से बढ़ती है लत, न खेलने से आता है गुस्‍सा

लखनऊ। ''मैं दिन में आठ से नौ घंटे पब्‍जी (PUBG) खेतला हूं। दिल्‍ली में काम करते हुए लोगों से उतना मिलना नहीं होता, ऐसे में यही मनोरंजन का जरिया है।'' यह बात राजन नाथ कहते हैं। राजन दिल्‍ली में प्राइवेट जॉब करते हैं। वो बताते हैं कि उन्‍हें इस गेम की ऐसी लत है कि दिन में अगर न खेलें तो अजीब सा खालीपन लगता है।

राजन की तरह ही बहुत से युवाओं और बच्‍चों में इन दिनों ऑनलाइन गेमिंग का फितूर देखा जा सकता है। इन दिनों PUBG (Player Unknown's Battle grounds) को लेकर खासा जुनून देखने को मिल रहा है। खबरों पर गौर करें तो मुंबई के कुर्ला में रहने वाले एक 19 साल के लड़के ने सिर्फ इसलिए मौत को गले लगा लिया, क्योंकि घरवालों ने उसे PUBG गेम खेलने के लिए स्‍मार्टफोन नहीं दिलाया। नदीम नाम के इस लड़के के घरवालों का कहना है कि वो 37 हजार के स्‍मार्टफोन की मांग कर रहा था, जब घरवालों ने इतने रुपए देने में असमर्थता जताई तो इसके बाद नदीम ने यह कदम उठा लिया।

यानी खबरों की मानें और हाल के कुछ ट्रेंड्स को देखें तो साफ होता है कि ऑनलाइन गेम बच्‍चों और नौजवानों पर काफी हद तक गलत असर डाल रहे हैं। साईक्लोजिस्ट और करियर काउंसलर राजेश पांडेय कहते हैं, ''गेम गलत नहीं हैं, गेम का नेचर गलत होता है। पब्‍जी जैसे गेम उत्‍तेजित करने वाले गेम की कैटगरी में आते हैं। यानी हम कुछ ऐसा कर रहे होते हैं जहां किसी को मारना, ढूंढना, गोली चलाना या जीतने जैसे कॉन्‍सेप्‍ट होते हैं।''

''नुकसान जीतने से नहीं है नुकसान तब है जब हम हारते हैं। असल जीवन में हम हारते हैं तो उसे मान लेते हैं, लेकिन गेम में हम इसे मान ही नहीं पाते कि हम हार सकते हैं, क्‍योंकि हमें तो यह आता है। हर हार के बाद हम इसमें और शामिल हो जाते हैं।'' साईक्लोजिस्ट राजेश पांडेय कहते हैं

हारने के बाद गेम में और इंट्रेस्‍ट आने की बात को मनीष पोद्दार भी सही ठहराते हैं। मनीष कहते हैं, ''मैं दिन में 4 से 5 घंटे PUBG खेतला हूं। जब इस गेम में हारते हैं तो दो तरह के ख्‍याल आते हैं। पहला कि अब इसे छोड़ दें, दूसरा ये कि एक बार और प्रयास करते हैं। अक्‍सर दूसरे ख्‍याल को ही करते हुए एक के बाद एक कई गेम खेल लेता हूं।'' मनीष पंजाब के चंडीगढ़ में पोस्‍ट ग्रेजुएट गवर्नमेंट कॉलेज में पढ़ाई करते हैं।

जब मनीष से पूछा गया कि मान लीजिए कल से PUBG बंद हो जाए या उसपर बैन लग जाए तो? इसपर मनीष कहते हैं, ''यह सुनकर ही बुरा लग रहा है। इस गेम से बहुत जुड़ाव हो गया है।''


दिल्ली कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (DCPCR) ने दिल्ली के सभी स्कूलों में एक नोटिस भेजा है। इस नोटिस में कहा गया है कि पब्‍जी और फोर्टनाइट जैसे हिंसक गेम को देखने और खेलने से बच्चों की मानसिक स्थिति काफी प्रभावित हो रही है। ये गेम्स महिला विरोधी हैं। इसकी वजह से बच्चे नफरत, छल-कपट, हिंसा सीख रहे हैं। बच्चों के सीखने वाली उम्र में ऐसे गेम्स उनके ऊपर मानसिक तौर पर कई नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। DCPCR ने नोटिस में कहा है कि स्कूलों में शिक्षक बच्चों को ऐसे गेम से दूर रहने के लिए प्रेरित करें और माता-पिता से भी इसमें सहयोग करने की बात कहें। इससे पहले गुजरात सरकार ने अपने राज्य के स्कूलों में पब्‍जी गेम पर बैन लगा दिया है।

पिछले महीने ही एक खबर आई थी कि पब्‍जी की वजह से जम्मू-कश्मीर के एक फिटनेस ट्रेनर को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा है। दरअसल, यह ट्रेनर लगातार 10 दिन से पब्‍जी खेल रहा था, उसके दिमाग पर इस गेम का असर इस कदर हावी हो गया कि वो मानसिक संतुलन खो बैठा। इसके बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया।

वर्ल्‍ड हेल्‍थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) ने जून 2018 में ऑनलाइन गेमिंग को एक मानसिक स्वास्थ्य विकार के रूप में वर्गीकृत किया था। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 'गेमिंग डिसऑर्डर' गेमिंग को लेकर बिगड़ा नियंत्रण है। यह गेमिंग को दी जाने वाली प्राथमिकता को दिखाता है। इस हद तक कि अन्य दैनिक गतिविधियों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। डब्ल्यूएचओ ने इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज के ताजा अपडेट में यह भी कहा कि गेमिंग कोकीन और जुए जैसे पदार्थों की लत जैसी हो सकती है।

साईक्लोजिस्ट और करियर काउंसलर राजेश पांडेय

साईक्लोजिस्ट और करियर काउंसलर राजेश पांडेय लत और खेल में अंतर समझाते हुए कहते हैं, ''सबसे पहले गेम का मतलब क्‍या है यह हमें समझना होगा। कोई भी एक्‍टिविटी जो हम मनोरंजन के लिए करते हैं, जिसमें शारीरिक और मानसिक तौर पर हम शामिला होते हैं, उससे हमें अच्‍छा लगता है, उसे हम गेम कह सकते हैं। दिक्‍कत यहां है कि बच्चों का अब शारीरिक तौर पर गेम में शामिल होना नहीं हो पा रहा। ऐसे में मोबाइल में ही उसका ज्‍यादा वक्‍त गुजर रहा है। और ऑनलाइन गेमिंग ऐसा है कि एक बार आप इसमें घुसते हैं तो उसी दुनिया में बंध जाते हैं। यह दिमाग पर बहुत बुरा असर डालता है।''

साईक्लोजिस्ट राजेश पांडेय कहते हैं, ''इन गेम्‍स से हममें बदला लेने की भावना आती है। हम इसके प्रभाव में कई चीजों को उत्‍तेजना के साथ करते हैं। हालांकि, ये गेम ग्रुप में खेले जाते हैं, लेकिन इसके बावजूद इसमें 'मैं' वाली बात होती है। एक दूसरे की मदद करने की भावना नहीं होती। साथ ही हारने पर बच्‍चों में हीन भावना आती है। इसके बाद बच्‍चा जीतने के लिए और प्रयास करता है। अब इस प्रयास से कुछ हासिल होता नहीं। हां, वक्‍त और एनर्जी खत्‍म जरूर हो रही है। बच्‍चा पढ़ाई में वक्‍त देना कम कर देता है। सोशल लाइफ नहीं बचती। अभ‍िभावकों से बातचीत नहीं होती।''

मां-बाप की जिम्‍मेदारी ज्‍यादा

राजेश पांडेय कहते हैं, ''हम हर बार ये नहीं कह सकते कि बच्‍चे ऐसा कर रहे है। कहीं न कहीं प्राथमिक तौर पर अभ‍िभावकों की जिम्‍मेदारी बनती है। मां बाप बच्‍चों को समय नहीं दे रहे। आज कोइ भी व्‍यक्‍ति बिना मोबाइल के नहीं रह सकता। बच्‍चे अपने आस पास से ही सीखते हैं। जब वह देखता है कि घर के लोग भी मोबाइल में ही लगे है तो वो भी ऐसा ही करता है, जिसके बाद वो ऐसे गेम्‍स के चक्‍कर में पड़ जाता है। हम (अभ‍िभावक) सिर्फ टीचर बन के न रह जाएं। हमारी सोच उनके रिजल्‍ट में आए नंबरों तक नहीं रहनी चाहिए। बल्‍कि हम बच्‍चों से बात करें, उनकी पढ़ाई में मदद करें।''

बच्‍चे को लग गई गेम खेलने की लत तो क्‍या करें?

अगर किसी बच्‍चे को इस गेम की लत लग गई है तो क्‍या करें? इसके जवाब में साईक्लोजिस्ट राजेश पांडेय कहते हैं, ''अगर किसी को इसकी लत लग गई है तो उसे तुरंत इसे छोड़ना सही नहीं होगा। अभ‍िभावकों को बार बार ये कहने की जगह कि 'गेम मत खेलो', बच्‍चे को किसी और शारीरिक गेम की ओर ले जाने का काम करना चाहिए। वहीं, बच्‍चों के साथ उनके दोस्‍तों से भी घुले मिलें, देखें कि उनकी कंपनी कैसी है। इससे बच्‍चे से हमारा संबंध अच्‍छा होगा और तब जाकर हम उसे गेम खेलने से मना भी कर सकते हैं।''


''मोबाइल एक ऐसी चीज है जिसकी हमें ट्रेनिंग नहीं दी गई है। इसको चलाने के लिए कोई गाइड लाइन भी तय नहीं है। मोबाइल को लेकर गाइड लाइन होनी चाहिए। कोशिश करके एक दिन मोबाइल ऑफ डे मनाया जाए। इससे बहुत फायदा होगा।'' - साईक्लोजिस्ट राजेश पांडेय कहते हैं

राजेश पांडेय कहते हैं, ''पैरंट्स को बच्‍चों के लिए रोल मॉडल बनना होगा। खुद भी मोबाइल का कम इस्‍तेमाल करें। बच्‍चों से ज्‍यादा अभिभावकों की जिम्‍मेदारी है। बच्‍चे की सोशल बनाने की ओर अभ‍िभावकों को ध्‍यान देना चाहिए। पहले हम एक दूसरे के घर जाते थे, लेकिन आज तो शादी का कार्ड भी वॉट्सएप पर आ जाता है। यह बदलवा दिखाता है। आप से आपका बच्‍चा सीखेगा, इस लिए अपना बर्ताव सही रखें।''

क्या है पब्जी ? (What is PUBG)

PUBG एक ऑनलाइन गेम है, जिसे सबसे पहले पर्सनल कम्प्यूटर, iOS और एक्स बॉक्स वर्जन पर लॉन्च किया गया था। लेकिन अब यह फोन पर भी लॉन्च हो चुका है। इस गेम को छोटी उम्र के बच्चों को टारगेट करते हुए डिजाइन किया गाय था, लेकिन इसका खुमार युवाओं में भी देखने को मिल रहा है। इससे पहले ब्‍लू व्‍हेल गेम भी आया था। इसकी वजह से कई लोगों के मारे जाने की खबरें आई थीं।

 

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