यूपी: 'कामकाज बंद पड़ा है, बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई के लिए बड़ा मोबाइल कहां से खरीदूं'

Ajay MishraAjay Mishra   11 July 2020 11:57 AM GMT

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कन्नौज (उत्तर प्रदेश)। कोरोना की वैश्विक महामारी में लाभ दिलाने के लिए सरकार की मंशा तो अच्छी है, लेकिन गांव के लोगों की परेशानियां कम नहीं हो रही हैं। पिछले चार महीनों से परिषदीय स्कूलों के बच्चों की पढ़ाई ठप है। परिवार के पास स्मार्ट फोन नहीं हैं, जिसकी वजह से बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई का हिस्सा नहीं बन पा रहे हैं।

मार्च में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में जब वार्षिक परीक्षाओं का दौर था तो कोरोना का संक्रमण हावी हो गया, जिसकी वजह से प्रदेश के सभी स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए। पहली जुलाई से शिक्षक-शिक्षिकाओं के लिए परिषदीय स्कूल तो खोल दिए गए हैं, लेकिन छात्र-छात्राओं को नहीं बुलाया जा रहा है। फिलहाल इस महीने शिक्षण कार्य भी नहीं होगा। लेकिन राज्य परियोजना निदेशक ने सभी बीएसए को पत्र भेजकर ऑनलाइन पढ़ाई, टेलीविजन, रेडियो व व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर पढ़ाने को कहा था। करीब दो महीने हो गए हैं, लेकिन 12 फीसदी भी छात्र-छात्राएं घर में स्मार्ट फोन न होने की वजह से ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं।

यूपी के कन्नौज से 13 किमी दूर राजकीय मेडिकल कॉलेज के निकट तिर्वा फोनलेन मार्ग किनारे खेल रहे तीन बच्चों से जब पूछा गया तो बताया कि स्कूल बंद हैं, वह पढ़ाई कैसे करें। उसी में से ब्लॉक उमर्दा क्षेत्र के प्राथमिक स्कूल सखौली में कक्षा तीन के छात्र अंश ने बताया कि स्कूल में छुट्टी चल रही है, इस वजह से पढ़ाई नहीं कर रहा हूं। अभी नई किताबें भी नहीं मिली हैं, उसका मन पढ़ने का है, लेकिन पढ़ नहीं पा रहा है। पूछने पर बताया कि घर पर बड़ा मोबाइल नहीं है और न ही किसी ने बताया कि मोबाइल से पढ़ाई होती है।


अंश के साथी सूरज ने बताया कि वह कक्षा तीन में पढ़ता है। कई दिनो से पढ़ाई नहीं हो रही है और न ही गुरुजी ने बताया कैसे पढ़ाई करनी है। अब तक किताबें भी नहीं दी गई हैं। घर पर बड़ा मोबाइल भी नहीं है।

प्राथमिक पाठशाला रानीअवंती बाई नगर तिर्वागंज में कक्षा तीन में पढ़ने वाले छात्र कृष्णा की मां शशि राजपूत बताती हैं, "लॉकडाउन से स्कूल बंद है। बच्चे को किताबें भी नहीं मिली हैं। कामकाज करके खर्च चलाती हूं तो बड़ा मोबाइल कहां से खरीदें। स्कूल के सर ने बताया था कि ऑनलाइन पढ़ाई चल रही है, लेकिन मेरे पास छोटा मोबाइल है, उससे सिर्फ बात हो सकती है।"

शशि ने आगे बताया कि सरकारी स्कूलों में ज्यादातर गरीब परिवार के ही बच्चे जाते हैं, उनके पास स्क्रीन टच वाले मोबाइल नहीं हैं, वह अपने बच्चों की किस तरह पढ़ाई कराएं।

गरीब परिवारों के पास अभाव, कुछ बाहर लेकर चले जाते

ब्लॉक सदर कन्नौज क्षेत्र से करीब सात किमी दूर इंग्लिश मीडियम प्राथमिक स्कूल दंदौराखुर्द के हेडटीचर और एसआरजी अमित मिश्र ने बताया कि कन्नौज जिले में 13 हजार एक्टिव छात्र व्हाट्सएप ग्रुप से शिक्षण कार्य का फायदा ले रहे हैं। यह संख्या अन्य जिलों से अधिक है। वैसे तो अधिक छात्र-छात्राएं जुड़े हैं। सरकारी स्कूलों में गरीब व किसानों के ही बच्चे पढ़ने आते हैं, इस वजह से सभी के पास मोबाइल नहीं हैं। फिर भी अभिभावकों को मोटीवेट किया जा रहा है कि जिनके पास मोबाइल हैं, उससे बच्चों को पढ़ाई करने दें। जिनके पास मोबाइल हैं भी वह कभी काम करने निकल गए या बाहर गए तो मोबाइल साथ ले जाते हैं, ऐसे में भी बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है। अभिभावकों को भी आगे आना होगा।

अभिभावक व शिक्षक मिलकर सफल बनाएं

बीएसए कन्नौज केके ओझा ने बताया कि एसपीडी सर के निर्देश पर ई-पाठशाला के जरिए पूरे जिले में 97 प्रतिशत स्कूलों के वाट्सएप ग्रुप बना दिए गए हैं। दीक्षा एप के 95 फीसदी ग्रुप बन गए हैं। 20-30 छात्र-छात्राएं एक ग्रुप में हैं। शिक्षक तैयारी के साथ लगे हैं। कहा गया है कि हर शिक्षक वीडियो बनाए और वाट्सएप ग्रुप पर पोस्ट करें। लर्निंग आउटकम परीक्षाफल में उत्तर प्रदेश में कन्नौज जिला ए प्लस में यानि पहला स्थान आया। बच्चों को लाभ मिल रहा है। बीएसए ने आगे बताया कि जिले में 1200 प्राथमिक स्कूल और 453 उच्च प्राथमिक स्कूल हैं। इनमें 138981 छात्र-छात्राएं नामांकित हैं। बीएसए ने दावा किया कि इसके सापेक्ष 60 से 70 हजार छात्र-छात्राएं जुड़ गए होंगे। आगे प्रयास होगा कि और बच्चे फायदा उठाएं। उन्होंने कहा कि हालांकि कई परिवार गरीब हैं वह अभी ऑनलाइन पढ़ाई से नहीं जुड़ सके हैं, उनके परिवार के पास मोबाइल नहीं हैं। इसके लिए कहा गया है कि पड़ोस में अगर किसी के पास मोबाइल है तो दो-तीन बच्चे बैठकर एक मोबाइल से पढे़ं। जब तक स्कूलों में शिक्षण कार्य नहीं हो रहा है, इस अभियान को अभिभावक और शिक्षक मिलकर सफल बनाएं। जब शासन का निर्देश होगा तब शिक्षण कार्य के लिए विद्यालय खोल दिए जाएंगे। फिलहाल शिक्षकों को स्कूल बुलाया जा रहा है और वह बच्चों को पुस्तकों को बांटे।

दो सप्ताह बाद भी पुस्तकें नहीं मिलीं

जनपद में बच्चों के लिए करीब साढ़े छह लाख पुस्तकें आ गई हैं। कुल 10 लाख 85 हजार पुस्तकों की जरूरत है। पुस्तकें आने के बाद भी नौनिहालों के हाथों में नहीं पहुंच सकी हैं। बीएसए का दावा है कि किताबों को बीआरसी पर भेजा जा रहा हैं, जल्द ही बांट दी जाएंगी। उन्होंने बताया कि छह लाख से अधिक किताबें आ चुकी हैं।

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