मात्र 20 रुपए में पराली की समस्या से मिलेगा छुटकारा, प्रदूषण भी नहीं होगा और किसानों की लागत भी घटेगी
धान की कटाई के बाद फसलों का कुछ भाग बचा ही रह जाता है जिसे बाद में किसान जला देते हैं। पंजाब और हरियाणा धान उत्पादन के मामले में सबसे बड़े राज्य हैं। ऐसे में वहां पराली जलानी की घटनाएं बहुत होती हैं जिस कारण राजधानी दिल्ली में ठंड के मौसम में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है।
गाँव कनेक्शन 29 Sep 2020 11:00 AM GMT
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने फसल अवशेषों (पराली) की समस्या को खत्म करने के लिए एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिसमें मात्र 20 रुपए का खर्च आयेगा। इसके उपयोग से खेती में किसानों की लागत भी घट सकती है।
धान की कटाई के बाद पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में पाराली जलाने से राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का स्तर हर साल बढ़ जाता है। सर्दियों के मौसम में लोगों का दम घुटने लगता है। ऐसे में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) के वैज्ञानिकों ने डीकंपोजर कैप्सूल तैयार किए हैं।
इन कैप्सूल्स को पूसा डीकंपोजर कैप्सूल भी कहा जाता है। ये फसल बुआई से पहले खेत को तैयार करने में भी मदद करेंगे। इनके इस्तेमाल के बाद पराली जलाने की समस्या से छुटकारा मिलेगा।
पंजाब और हरियाणा के किसान कटी हुई फसलों के बच्चे हुए हिस्सों को जिसे पराली या पुआल कहते हैं, को अक्सर जला देते हैं। इससे दूसरी फसल के लिए खेत तैयार करना तो आसान होता ही है, इसमें लागत भी इसमें न के बराबर आती है।
पूसा डीकंपोजर कैप्सूल धान के पुआल को डीकंपोज करने में कम समय लगायेगा और इससे मिट्टी की गुणवत्ता पर भी असर नहीं पड़ेगा। वैज्ञानिकों ने यह भी दावा किया है कि इसके प्रयोग से किसानों की उर्वरक पर से निर्भरता भी कम होगी। ऐसे में किसानों की लागत घट सकती है।
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इंडिया टुडे में छपी खबर के अनुसार एक पैकेट में आने वाले 4 कप्सूल से 25 लीटर घोल बन सकता है। इस घोल को 2.5 एकड़ खेत में इस्तेमाल किया जा सकता है और इसकी लागत भी मात्र 20 रुपए आयेगी।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पूसा डीकंपोजर कैप्सूल को दूसरे राज्यों में भी उपयोग कराने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से मांग की है। उन्होंने पत्र लिखकर कहा है कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने बेहद सस्ता तकीनक इजाद किया है। इससे किसानों को दूसरे फायदे भी होंगे।
Our scientists seem to be have developed an effective soln
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) September 26, 2020
I know we r late for this season. But lets put all efforts to prevent as many fires as we can in the available time. https://t.co/Hbx66LFrEW
फरवरी 2020 में अपने बजट में हरियाणा ने किसानों से पराली खरीदने के लिए हर ब्लॉक में सेंटर बनाने का ऐलान किया था।
पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर ने 23 सितंबर, 2019 से 26 नवंबर, 2019 के बीच पराली जलाने के आंकड़े जारी किए थे। इन आकंड़ों के अनुसार 2019 में पराली जलाने के कुल 52,942 मामलों को दर्ज किया, जो कि 2018 के 50,590 मामलों से 2352 बार अधिक था। इस दौरान पराली जलाने के मामले में 23,277 मामलों में किसानों पर जुर्माना लगाया गया, वहीं 1,737 मामलों में एफआईआर दर्ज की गई। इसके अलावा 266 मामलों में वायु अधिनियम, 1981 की धारा 39 के तहत मैजिस्ट्रियल शिकायतें भी दर्ज की गई।
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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के आंकड़ों के अनुसार, 2018 में हरियाणा में पराली जलाने के कुल 9225 मामले सामने आए थे, हालांकि 2019 में यह घटकर 6364 हो गया था।
इसी तरह उत्तर प्रदेश में 2018 में यह आंकड़ा 6623 था, जो कि 2019 में घटकर 4230 हो गया। इस तरह पंजाब एकमात्र ऐसा राज्य रहा, जहां पर 2019 में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ीं।
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