देश की मिट्टी में रचे बसे देसी बीज ही बचाएंगे खेती, बढ़ाएंगे किसान की आमदनी
हरित क्रांति के दुष्परिणामों के बाद खेती के तरीकों में बदलावों के बीच जैविक खेती की बात हो रही है और पुराने बीजों पर भरोसा जताया जा रहा है, खेती के बदलते स्वरूप पर गाँव कनेक्शन की विशेष सीरीज .. 'खेती में देसी क्रांति'
Arvind Shukla 4 Sep 2018 7:34 AM GMT
देश में लाखों ऐसे किसान हैं जो आज भी देसी बीज उगाते हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तरपूर्व और उत्तराखंड के बड़े भूभाग में आज भी धान-गेहूं से लेकर मोटे अनाज तक में देसी बीजों का बोलबाला है। कई किसान ऐसे हैं जो भले ही अख़बारों में न छपे हों लेकिन अपने स्तर पर बीजों को बचाने में लगे हैं।
नीचे दी गई तस्वीर कर्नाटक में मैसूर जिले के मैसूरहल्ली गांव के एमके शंकर की है। 50 वर्षों से धान की खेती कर रहे एमके शंकर गुरू ने धान की नई किस्म एनएमएस-2 विकसित की है। वो 1992 से ही विभिन्न किस्मों के बीजों को एकत्र और संरक्षित करने में जुटे हैं।
ज्यादा जानकारी यहां पढ़ें- कर्नाटक के इस किसान ने विकसित की धान की नई किस्म, अच्छी पैदावार के साथ ही स्वाद में है बेहतर
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