धान की बालियों में लग रहे हैं गंधी, बग, भूरा फुदका जैसे रोग, किसान कृषि वैज्ञानिकों से लें सलाह

इस समय जब धान की बालियां निकल रही हैं तो किसानों को खास ध्यान देने की अवश्कता होती है। इस समय गंधी, बग, भूरा फुदका और सैनिक कीट के प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है।

Virendra SinghVirendra Singh   29 Sep 2018 6:39 AM GMT

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धान की बालियों में लग रहे हैं गंधी, बग, भूरा फुदका जैसे रोग, किसान कृषि वैज्ञानिकों से लें सलाह

बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)। कई वर्षों की अपेक्षा इस वर्ष बरसात अच्छी होने से धान की फसल भी अच्छी हो रही है सितंबर माह के अंतिम सप्ताह तक खेतों में कुछ किसानों के धान लगभग पक चुके हैं, जबकि साठ प्रतिशत देरी से होने वाले धान अभी बालिया देना ही शुरू किया है। इस समय धान की फसल में कई प्रकार के रोग लगते हैं जो धान की फसल को काफी हद तक नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। अगर किसान थोड़ी सी सावधानी बरते तो इस नुकसान से बच सकता है।

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बाराबंकी जिला कृषि रक्षा अधिकारी प्रीति किरण बाजपेई बताती हैं," इस समय जब धान की बालियां निकल रही हैं फसल तैयार होने की अवस्था में है तो किसानों को खास ध्यान देने की अवश्कता होती है। इस समय मुख्यतः गंधी, बग, भूरा फुदका और सैनिक कीट के प्रकोप की संभावना के दृष्टिगत फसल की नियमित निगरानी के साथ साथ प्रकोप की दशा में ससमय नियंत्रण करना अति आवश्यक है। इन कीटों से बचाव हेतु सुझाव एवं संस्तुतियों को अपनाकर फसल को बचाया जा सकता है।"

वहीं काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर डॉ. विनोद कुमार श्रीवास्तव का कहना है, " धान को कीट पतंगों और रोंगों से मुक्त करने के लिए बुआई के समय ही बीज सोधन कराना चाहिए। संतुलित उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए। इसके साथ ही फसल को पानी की कमी न होने दें। अगर रोग लग गया है तो उसके हिसाब से कीटनाश दवाओं का प्रयोग करें।"


भूरा धब्बा रोग

फफूंद से होता है इसमें पत्तियों पर भूरे धब्बे पड़ जाते हैं जो बाद में बढ़कर आपस में मिल जाते हैं जिस से सुख सी जाती है पत्ती सूखने से पौधा भोजन नहीं बना पाता है और उपज भी प्रभावित हो जाती है

उपचार

छोटे छोटे धब्बे दिखाई देते हैं एम 45 की 2 पॉइंट 5 केजी मात्रा 100 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़कना चाहिए साथ ही अपने खेतों में केवल यूरिया का आधा धुंध प्रयोग न करके फास्फोरस पोटाश और माइक्रो न्यूट्रिएन्ट का संतुलित प्रयोग करना चाहिए

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जीवाणु झुलसा रोग

इस रोग में पत्तियों पर पुआल के रंग जैसे पीली धारियां पत्ती के शीर्ष से नीचे की ओर बढ़ती हैं और जल्दी ही पत्ती को सुखा देती है जिससे भी तैयार फसल में पोषक तत्व ना पहुंचने से उत्पादन में गिरावट आती है

उपचार

स्ट्रेप्टोसाइकिलन दवा50mको 100 लीटर पानी मे और कॉपर ऑक्सिक्लोराइड आधा किलो को चार लीटर पानी में अलग-अलग घोलकर फिर बाद में मिलाकर एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में डालने से इस रोग से छुटकारा मिल जाता है और उत्पादन भी बढ़ जाता है

गंधी कीट

इस समय जिन खेतों में बालिया निकल रही हैं और जिन खेतों में बालिया निकल चुके हैं उनमें गंधी कीट का प्रकोप मुख्य रूप से पाया जाता है और इस कीट के प्रकोप से फसल को काफी क्षति पहुंचती है ये कीट बालियो से दूध को चूस लेते हैं जिससे बाली में दाने नहीं आ पाते हैं।

बैक्टीरियल ब्लाइट के लिए प्रतिरोधी धान विकसित

जैविक उपचार

नीम तेल (एजाडिरैकिटन) दवा जो कृषि रक्षा इकाई पर उपलब्ध होती हैं 2 पॉइंट 5 लीटर मात्रा 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर स्प्रे करने से इस कीट से छुटकारा मिल जाता है। रसायनिक उपचार फेनवरलेट या मैलाथियान धूल 25 प्रीति हेक्टेयर छिड़काव करने से इस कीट से छुटकारा मिल जाता है।

सैनिक कीट कीट के प्रकोप की दशा में फेनवरलेट 0,04 प्रतिशत धूल अथवा मैलाथियान 5% धूल 20 -25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से शामकालीन बुरकाव करने से इस कीट से छुटकारा मिल जाता है।


कण्डुआ रोग

आज के दौर में किसानों ने ज्यादातर नई प्रजाति के धान की रोपाई अपने खेतों में की है और नई प्रजातियों में कण्डुआ रोग का प्रकोप पाया जाता है।

उपचार

इसके रोकथाम के लिए प्रोंपीकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी 500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से घोलकर छिड़काव करने से इस रोग से छुटकारा मिलता है। फसल का उत्पादन काफी हद तक बढ़ जाता है।

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