पूर्वांचल: सरकारी योजनाओं और एमएसपी से दूर बटाईदार किसानों का दर्द

पूर्वांचल में गोरखपुर, बलिया और बनारस समेत 12 जिलों मे ज्यादातर किसान छोटे और मध्यम जोत के हैं, जिनकी पूरे देश में संख्या 86 फीसदी से ज्यादा है। पूर्वांचल में ज्यादातर जमीन बटाई पर है, ऐसे में बटाईदार किसानों की मुख्य समस्याएं क्या हैं?

ShashwatShashwat   23 March 2021 9:58 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
पूर्वांचल: सरकारी योजनाओं और एमएसपी से दूर बटाईदार किसानों का दर्दलोकसभा में सरकार ने कहा कि देश में कितने बटाईदार किसान हैं, सरकार के पास इसकी कोई जानकारी नहीं है। न ही ऐसा कोई सर्वे हुआ है। फोटो- शाश्वत

बीते दिनों भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने बलिया के सिकंदरपुर तहसील में किसान-मज़दूर महापंचायत की। चेतन किशोर मैदान में राकेश टिकैत ने पूर्वांचल के किसानों से किसान आंदोलन के लिए दिल्ली चलने को तैयार रहने की बात कही। चंद्रशेखर, मंगल पांडेय और बलिया की बागी धरती का जिक्र करते हुए कहा कि यहां की इस महापंचायत से बिहार के सीमा पर लगे जिलों और उधर नेपाल के सीमा तक असर होगा। मगर पूर्वांचल में खेती-किसानी की मूल समस्या और यहां के भूमिहीन किसानों का मुद्दा न तो किसान महापंचायत में उठाया गया और न ही इससे निपटने के किसी प्लान की चर्चा हुई।

क्या हैं पूर्वांचल की मौजूदा हालत

17 जिले, 117 विधायकों और 23 लोकसभा सदस्यों वाले इस हिस्से ने देश को प्रधानमंत्री और प्रदेश को मुख्यमंत्री दिए हैं, लेकिन प्रदेश के दस सर्वाधिक गरीब जिलों में पूर्वांचल के नौ जिले हैं। देश में सर्वाधिक घनी आबादी वाले इस हिस्से की खेती-किसानी की मूल समस्याएं भी प्रदेश के बाकी हिस्सों से अलग हैं। पूर्वांचल में मुख्यत: रबी, खरीफ और जायद की फसलें होती हैं। गेहूं के लिए सर्वाधिक उत्पादकता का क्षेत्र गंगा यमुना का दोआब है। प्रदेश में गेहूं उत्पादन में गोरखपुर का पहला स्थान है। वहीं प्रदेश के तराई क्षेत्रों में जिनमें पूर्वांचल के भी कई जिले आते हैं, धान का अच्छा उत्पादन होता है।

मॉडल कृषि भूमि अधिनियम 2016 बटाईदारों को किसानों वाली सुविधाएं देता है लेकिन लिखापढ़ी न होने के चलते बटाईदार को लाभ नहीं मिल पाता। फोटो गांव कनेक्शन

लेकिन इस उपजाऊ धरती पर रहने वालों लोगों के सामने आजीविका बड़ी समस्या है, समाचार वेबसाइट दी वायर की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2011-12 में पूर्वांचल के 28 जिलों की सालाना प्रति व्यक्ति आय मात्र 13,058 रुपये थी। यह उत्तर प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 18,249 रुपये की तीन-चौथाई व देश की प्रति व्यक्ति आय की लगभग एक-तिहाई है।

राकेश टिकैत की किसान महापंचायत में पहुंचे हजारों की भीड़ में ज्यादातर किसान थे। किसान महापंचायत के संयोजकों में से एक और भारतीय किसान यूनियन के पदाधिकारी अजीत राय के पास 1.6 हेक्टेयर (6.5 बीघा) खेती है। उन्होंने बताया कि वे अपनी खेती योग्य आधे से अधिक जमीन पर मछली पालन शुरू कर चुके हैं। अजीत कहते हैं, 'मैं बस उतनी ही खेती करता हूं कि अनाज खरीदना न पड़े, बाकी जमीन पर मछली पालन कर रहा हूं। अनाज का उचित रेट नहीं मिलता था, तो हमने यही कर लिया।

पूर्वांचल के बनारस जिले के कैथी गाँव में 1.5 हेक्टेयर (6 बीघे) की खेती करने वाले वल्लभ पांडेय के मुताबिक पूर्वांचल के लगभग 75% किसान भूमिहीन हैं। ऐसे में बाढ़ अथवा सूखा राहत सहित किसी भी तरह के सरकारी कार्यक्रमों का लाभ बटाईदार को नहीं मिलता है। बटाईदार के साथ खेत मालिक के किसी एग्रीमेंट या लिखित सहमति का प्रावधान नहीं है। ऐसे में सब्सिडी युक्त खाद-बीज का लाभ असल में खेती कर रहे किसान को नहीं मिल पाता।

वल्लभ पांडेय ने बताया, 'हम खुद तीन भाई हैं, खेत भी तीनों के नाम से है लेकिन मैं ही खेती करता हूं। पीएम किसान सम्मान निधि के 2000 रुपए मेरे भाइयों के अकाउंट में भी आते हैं। ऐसी स्थिति भूमिहीन किसानों के सामने भी आ रही है।'

लोकसभा में बीजेपी सांसद डॉ. मनोज राजोरिया के सवाल के जवाब में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया, "देश में भूमिहीन किसान का विशिष्ट गणना या सर्वेक्षण नहीं हुआ है। इसलिए देश में भूमिहीन किसानों की संख्या उपलब्ध नहीं है। कृषि और भूमि राज्य का विषय हैं वहां केंद्र सरकार की भूमिका केवल सलाहकार की होती है।"

पट्टेदारी के क्षेत्र समस्याओं को सुलझाने के लिए नीति आयोग ने राज्यों के लिए मॉडल कृषि भूमि अधिनियम 2016 को बनाया है। ये अधिनियम भू-मालिक के स्वामित्व संबंधी अधिकारों की रक्षा करता है तो बटाईदार को बैंक लोन, बीमा आदि सुविधाएं दिलाना और कृषि की प्रभावशीलता बढ़ाकर गरीबी को कम करना और समाज में समता लाना है।

मॉडल कृषि भूमि अधिनियम 2016 बटाईदारों को किसानों वाली सुविधाएं देता है लेकिन जैसा की वल्लभ पांडे कहते हैं कि कोई जमीन मालिक बटाईदार या ठेके पर खेती करने वाले से लिखित एग्रीमेंट नहीं करता है।

यूपी के बलिया जिले में धान का उत्पादन।

खाद बीज गोदामों पर सब्सिडी का हाल

सरकार खाद की सब्सिडी सीधे कंपनियों को दे देती है। मसलन यूरिया की कीमत 1166 रुपए है मगर वह किसान को 266 रुपए में उपलब्ध होती है। बलिया के बांसडीह में खाद गोदाम संचालक राजू तिवारी बताते हैं।

'एक किसान को महीने में अधिकतम 50 बोरी तक यूरिया और 5 बोरी DAP दी जा सकती हैं। इसके लिए बस आधार कार्ड की जरूरत पड़ती है।'

गाजीपुर में न्याय पंचायत स्तर पर एक सहकारी खाद बीज भंडार संचालक ने नाम न छापने की शर्त पर बात की। उन्होंने बीज देने की प्रक्रिया के बारे में बताया, "किसानों को बीज भी सब्सिडी पर दिया जाता है। यह उनको मिलती है जिनके नाम जमीन है। इसमें गेहूं के बीज पर, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन के हिसाब से 40 किलो वजन की अधिकतम 5 बोरी 50 प्रतिशत सब्सिडी पर दी जाती है। यह बैंक अकाउंट में मिलती है। इन दिनों गेहूं के बीज पर औसतन लगभग 750 रुपए की सब्सिडी है।"

बीज की किस्मों का जिक्र करते हुए वह बताते हैं, 'सब्सिडी वाले बीज की कम किस्में ही आती हैं। किसान भी लेने से कतराते हैं। बिना जमीन वाले किसान को ऐसे बीज अथवा खाद देने का कोई प्रावधान नहीं है।'

बलिया के दोआब में दो दशकों से बटाई लेकर खेती कर रहीं मालती देवी बताती हैं कि खेत लेने के बाद सारी जिम्मेदारी उनकी हो जाती है। निराई-गुड़ाई से लेकर फसल कटने तक का सारा खर्च वे वहन करती हैं और फिर अनाज का आधा हिस्सा खेत के मालिक को देना होता है।"

मालती आगे कहती हैं, 'एक बार खेत ले लेने के बाद फसल की जिम्मेदारी मेरी है। आधा अनाज दे देने के बाद सिर्फ खाने भर का बचता है, किसी-किसी साल सूखा हो जाए तो और भी मुश्किल हो जाती है।'

एक एकड़ में लागत और मुनाफे का गणित

बलिया के ही चकचितु गांव में प्रेम प्रकाश उपाध्याय 5 एकड़ जमीन पर खेती करते हैं, जिसमें कुछ खेत के वो मालिक हैं और कुछ बटाई लिए हैं। वो पूर्वांचल में खेती में लागत और मुनाफे का गणित समझाते हैं।

'डीजल के दाम बढ़ने से पहले अब तक एक एकड़ (1.5 बीघा) गेहूं बोने में 1900 रुपए जुताई, 1400-1900 रुपए का बीज, बुआई से लेकर कटाई तक करीब 2900 रुपए की खाद, 2500-3000 रुपए के कीटनाशक और मजदूरी में 1500 रुपए खर्च होते हैं। कुल मिलाकर एक एकड़ की बुवाई में लगभग 8000 से 8500 रुपयों का खर्च है। इसके बाद औसतन तीन बार सिंचाई में 2000-2200 रुपए का खर्च आता है और फिर आखिर में कटाई का भी 1500-2000 कम से कम खर्च होता है। इस तरह कुल खर्च देखें तो 12,000 रुपए से ज्यादा का होता है।"

पूर्वांचल में ज्यातादर सिंचाई डीजल पंपिंग सेट से होती है और 150 रुपए घंटे का किराया देना पड़ता है। एक एकड़ में औसतन 6 से 7 घंटे लगते हैं।

खर्च के बाद बात उत्पादन और बाजार मे उसके भाव की करें तो प्रेम प्रकाश उपाध्याय अपना गुभाभाग बताते हैं, 'मौसम ने साथ दिया तो एक एकड़ में लगभग 15 क्विंटल (1.5 मीट्रिक टन) गेहूं होता है। पिछले साल सरकार की एमएसपी भले 1925 रुपए प्रति क्विंटल थी लेकिन हम जैसे ज्यादातर किसानों को 1500-1600 रुपए का भाव मिला था। ऐसे में जिस फसल की कीमत 28,000-29,000 रुपए मिलनी थी, हमें 23,000 तक मिलती है। अगर खर्च निकाल दें तो 4 महीने में 11,000 रुपए बचते हैं। वहीं अगर ये किसान बटाईदार हुआ जैसा कि हमारे पूर्वांचल में होता है तो आधी फसल जमीन का मालिक ले लेगा फिर सोचिए क्या बचेगा?

राजनीतिक उपेक्षा का शिकार हुआ पूर्वांचल

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में कृषि विज्ञान संस्थान में पशुपालन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. डीसी राय पूर्वांचल के किसानों की समस्याओं के लिए राजनीतिक उपेक्षा को जिम्मेदार मानते हैं।

'पूर्वांचल को लेकर ना ही सरकार ने कोई गंभीरता दिखाई और ना ही नेताओं ने अपनी दावेदारी प्रस्तुत की। सरकारी सपोर्ट सिस्टम के फेल हो जाने का यह परिणाम रहा कि किसानी कमजोर होती गई और लोगों ने नई तरह की खेती न करके धान-गेहूं पर ही ध्यान लगा दिया। यहां के सभी जिलों की मिट्टी देश में सबसे उपजाऊ मिट्टियों में है। ऐसे में यहां खेतिहर मज़दूरों की यह स्थिति अकस्मात नही हैं। इसका बड़ा कारण राजनीतिक है। दिल्ली के पास होने का लाभ पंजाब और हरियाणा को मिला। अधिकतर कृषि मंत्री उस तरफ के ही हुए।'

साल 2018-19 के ताजा आंकड़ों के हिसाब से औसतन 3.6 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर गेंहू की उपज करने वाले बलिया में 3700 मिट्रिक टन गेहूं की ऊपज हुई।बलिया के ही आकंडों की मानें तो 32 लाख की जनसंख्या वाले बलिया में कुल 10 लाख किसान हैं जिनमें 1.61 लाख खेतिहर मजदूर हैं। इनमें लगभग 38 हज़ार परिवार हैं जो कृषि से प्रत्यक्ष तौर पर जुड़े हैं। ऐसे में पूर्वांचल में बटाईदार किसानों की हर बार फसल की लागत न निकल पाने की समस्या उनकी स्थिति को और दयनीय बनाती जा रही है।

पूर्वांचल में गोरखपुर, बलिया और बनारस समेत 12 जिलों मे ज्यादातर किसान छोटे और मध्यम जोत के हैं। कम जोत वाले किसानों की संख्या देश में 86 फीसदी से ज्यादा है। पूर्वांचल में ज्यादातर जमीन बटाई भी है, ऐसे किसानों की अपनी अलग समस्याएं, जिसके चलते न उन्हें सरकारी की योजनाओं का लाभ मिल पाता और न फसल तैयार होने पर एमएसपी का।

पूर्वांचल के जिले

वाराणसी

जौनपुर

भदोही

मिर्ज़ापुर

गाज़ीपुर

गोरखपुर

कुशीनगर

देवरिया

   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.