सिंगरौली रिलायंस ऐश डैम हादसा: जीजा का दाह संस्कार करने के बाद नंदलाल अब भाभी, भांजे और भतीजी के शव का इंतजार कर रहे हैं

Mithilesh DharMithilesh Dhar   12 April 2020 11:43 AM GMT

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सिंगरौली रिलायंस ऐश डैम हादसा: जीजा का दाह संस्कार करने के बाद नंदलाल अब भाभी, भांजे और भतीजी के शव का इंतजार कर रहे हैंमलबे से निकले शवों की निगरानी करती पुलिस।

नंदलाल ने सोचा कि भांजा अभी बीमारी से ठीक हुआ है, घर आयेगा तो उसे अच्छा लगेगा। इसी बहाने दीदी और जीजा जी भी घर आ जाएंगे, लेकिन उन्हें क्या पता था इसके बाद वे कभी अपने भांजे को गले नहीं लगा पाएंगे, जीजा जी से फिर नहीं मिल पाएंगे। क्या पता था कि पावर प्लांट के ऐश डैम से निकला जहरीले राख वाला पानी पल भर में ही उनके परिवार के सात लोगों को अपने साथ बहा ले जायेगा।

शुक्रवार (10 अप्रैल 2020) को शाम लगभग चार बजे मध्य प्रदेश के जिला सिंगरौली के ग्राम पंचायत हिर्रवाह, गांव सिद्धकला के पास बना रिलायंस पावर प्लांट (सासन) का ऐश डैम टूट जाता है। इसमें कंपनी के एक मजदूर सहित आठ लोग बह जाते हैं। त्रासदी तो यह है कि इन आठ लोगों में से सात लोग एक ही परिवार के थे।

"तीन साल का था मेरा भांजा। उसे देखने की जिद नहीं करता तो शायद वह जिंदा रहता है। काले पानी ने सब काला कर दिया।" यह कहते-कहते नंदलाल साहू का गला भर आता है।

फोटो में अपनी बड़ी बहन के साथ खड़ा अंकित

"भैया मना किये थे, जाने दो लॉकडाउन का समय है, मत बुलाओ उन्हें, लेकिन मैं ही नहीं माना। यह मेरे जीवन की बहुत बड़ी भूल थी। कम से कम वे लोग तो बच ही जाते।" नंदलाल झुंझलाहट में कहते हैं।

नंदलाल (28) के परिवार के कुल सात लोग इस हादसे की चपेट में आ गये। मां और दीदी तो किसी तरह बच गये लेकिन जीजा और भतीजे को नहीं बचाया सका। भांजा, भतीजी और भाभी अभी भी लापता हैं।

इस हादसे में उनके जीजा दिनेश साहू (35 वर्ष ) और भतीजे अभिषेक (8 वर्ष) के शव बरामद किये जा चुके हैं। तीन साल का भांजा अंकित, भाभी चूनकुमारी (27 वर्ष) और नौ साल की भतीजी सीमा कुमारी अभी भी गायब हैं। घटना के दूसरे दिन वाराणसी से आई एनडीआरएफ (राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल) की टीम ने दिनभर प्रयास किया लेकिन इन्हें खोजा नहीं जा सका। इसके बाद रविवार को स्थानीय पुलिस ने प्रयास किया लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ।

यह भी पढ़ें- रिलायंस पावर प्लांट के जिस ऐश डैम को अधिकारियों ने रिपोर्ट में सही बताया था, उसके टूटने से दो की मौत, कई लापता, फसलें बर्बाद

मलबे में दबी मां केशपती (45) और दीदी रीना कुमारी को कड़ी मशक्कत के बाद निकाला गया, जिनका नेहरू शताब्दी अस्पताल में इलाज चल रहा है जिनकी स्थिति अभी भी गंभीर बनी हुई है।

"मानने को तो मैं तब तक नहीं मानूंगा जब तक भांजे, भतीजी और भाभी के शव मिल नहीं जाते, लेकिन मैंने जो कुछ भी देखा था, उसके हिसाब से तो वे लोग भी शायद ही बचे होंगे। मैं इसीलिए भतीजे के शव को घर पोस्टमार्टम हाउस से घर नहीं लाया हूं। बॉडी मिल जाये तो सबका दाह संस्कार एक साथ करूंगा।" नंदलाल कहते हैं।

दिनेश साहू और अभिषेक के शव।

नंदलाल को हमने शनिवार दोपहर में जब फोन किया तब वे अपने जीजा के दाह संस्कार में शामिल होने गये थे। रात को बात होगी कहके उन्होंने फोन काट दिया। इसके बाद रविवार (12 अप्रैल) को हमारी दोबारा बात हुई।

शुक्रवार को क्या हुआ था, कैसे उनका पूरा परिवार इस हादसे की चपेट में आ गया, इस बारे में वे बताते हैं, "मेरे भांजे की तबियत खराब थी। नेहरू शताब्दी अस्पताल में उसका इलाज चल रहा था। एक दिन पहले मैं देखने गया था। शुक्रवार को उसे अस्पताल से छुट्टी मिली तब मैंने जीजा जी को घर आने को बोला था। दीदी काफी दिनों से घर नहीं आई थीं। जीजा जी ने एक बार मना किया, लेकिन मेरी छुट्टी थी तो मैंने सोचा कि भांजे के साथ खेलूंगा। तो मैंने बुला लिया।"

"दोपहर लगभग 12 बजे वे लोग आ गये। नहाने खाने के बाद थोड़ा आराम किये और फिर शाम चार बजे के आसपास अपने घर भमौरा जाने लगे। मैं उनके साथ घर से बाहर निकला और फिर पीछे से दीदी आईं। उसी समय बहुत तेज आवाज आने लगी। तब हमें लगा कि प्लांट के पास घर होने के कारण ऐसी आवाज तो आती रहती है, लेकिन तभी दीदी ने कहा कि बांध टूट गया है, पानी आ रहा।" नंदलाल आगे कहते हैं।

अपनी बात जारी रखते हुए वे आगे कहते हैं, "इतना सुनते ही हम भागने लगे। दीदी और जीजा जी भांजे को लेने गये। भाभी अपने बच्चों को लेने गईं। मैं अपनी पत्नी और मां के साथ भागने लगा। जीजा भांजे को लेकर पीछे की तरफ भागे। उनके पीछे भाभी भतीजे, भतीजी को लेकर भागीं। मम्मी भागते-भागते बिछड़ गई। हम लोग दूसरी दिशा में लगभग दो किलीमीटर तक भागते रहे। बहुत देर तक वहीं रुके रहे। तब तक हमें उम्मीद थी कि दूसरे लोग भी बच गये होंगे, लेकिन जब लौटकर आया तब सक कुछ बह चुका था।"

बेटे अंकित का जन्मदिन मनाते दिनेश साहू। (पुरानी तस्वीर है)

"दो घंटे बाद दीदी और मां को निकाला गया। तब तो हमें लगा कि वे खतम हो गये लेकिन अस्पताल लेकर गये तो उनकी सांसे चल रही थी। अब बस भगवान उन्हें बचा ले।" वे आगे कहते हैं।

घटना वाले दिन नंदलाल के बड़े भाई भैया राम शाह और पिता राम बरन शाह खेतों में काम करने गये थे। भैया राम भी रिलायंस पावर प्लांट के अंदर ही मजदूरी का काम करते हैं। गांव में लगभग 500 घर हैं। नंदलाल का घर ऐश डैम से लगभग 100 मीटर की ही दूरी पर था।

इस बारे में वे कहते हैं, "मैं तो विस्थापित हूं। मेरी आधी जमीन पावर प्लांट में गई है। डैम में काफी पहले से लीकेज था। इसके लिए हम धरने पर भी बैठे थे, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।"

पारिवारिक कार्यक्रम में नंदलाल

नंदलाल के साथ पावर प्लांट में ही काम करने वाले उनके पड़ोसी छोटे लाल शाह बताते हैं, "तीन घर तो पूरी तरह से बह गये हैं। यह डैम जहां बना है वहां गलत तरीके से बना है। सासन पावर डैम के लिए तो ऐश डैम गांव से दो किमी दूरी बना है। नंदलाल की जमीन अधिग्रहित होने के बाद जो बची उनका परिवार उसी पर रहने लगा।"

खबर लिखी जाने तक बाकी के लापता लोगों को खोजा नहीं जा सका था।

  

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