ग्राउंड रिपोर्टः अपने हुनर से अंधेरी जिंदगी में रोशनी ला रहे पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी

उबड़-खाबड़ पहाड़ीनुमा जगह पर 250 झोंपड़ियां बनी हुई हैं, जिनमें पाकिस्तान के सिंध से आए 1200 हिंदू शरणार्थी रहते हैं। माटी और गोबर से लिपी ये झोंपड़ियां खुद में सिंध और उसकी यादों को भी समेटे हुए हैं। लिपे हुए फर्श पर महिलाओं ने मांढने बनाए हुए हैं जो तमाम तकलीफों भरे इन घरों में सुकून भर रहे हैं।

Madhav SharmaMadhav Sharma   21 Jan 2021 6:17 AM GMT

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ग्राउंड रिपोर्टः अपने हुनर से अंधेरी जिंदगी में रोशनी ला रहे पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थीराजस्थान में बसे पाकिस्तानी हिंदु शरणार्थी जो अपने हुनर से रोजी-रोटी चला रहे हैं। सभी फोटो- माधव शर्मा

जोधपुर (राजस्थान)। शहर से उत्तर-पूर्व 16 किलोमीटर दूर पाबू जी के मंदिर की तरफ एक गांव बसा है, नाम है आगणवां। पक्की सड़क पर 13 किमी चलने के बाद एक कच्चा रास्ता है जिसके दोनों ओर कीकर (जंगली बबूल) ऐसे झुककर आए हुए हैं कि बाइक पर उनके कांटें आपके कपड़ों को छूकर निकलते हैं। इस कच्ची पगडंडीनुमा और धूल भरे रास्ते पर करीब 3 किमी चलने के बाद उबड़-खाबड़ पहाड़ीनुमा जगह पर 250 झोंपड़ियां बनी हुई हैं। इन झोंपड़ियों में पाकिस्तान के सिंध से अलग-अलग वक्त में आए 250 हिंदू परिवार रह रहे हैं। इस छोटी सी बस्ती की आबादी करीब 1200 है। माटी और गोबर से लिपी ये झोंपड़ियां खुद में सिंध और उसकी यादों को भी समेटे हुए हैं। लिपे हुए फर्श पर महिलाओं ने मांढने बनाए हुए हैं जो तमाम तकलीफों भरे इन घरों में सुकून भर रहे हैं।

घास के इन घरों की कुछ छतों पर सोलर पैनल लगे हैं। इसीलिए 10-20 घरों में टीवी, फ्रिज, म्यूज़िक सिस्टम के साथ-साथ कम्प्यूटर भी लगे हैं, लेकिन इन घरों में एक चीज़ है जो सभी के पास है। वो है सिलाई मशीन। बिजली से चलने वाली ये सिलाई मशीनें सभी 60 घरों में है। 15 से लेकर 60 साल तक की महिला और पुरुष इन सिलाई मशीनों पर कुछ ना कुछ सिल रहे होते हैं। सबसे ज़्यादा सिलाई बच्चों की शर्ट और मास्क की होती है।

पाकिस्तान से भारत में आने वाले ज्यादातर हिंदू सिंध प्रांत से ही आते हैं। ये लोग बहुत दुख और तकलीफों को अपने सीने में दबा कर आते हैं। यहां इन लोगों के सामने नागरिकता से ज्यादा बड़ा सवाल जिंदगी जीने का है। इसीलिए हमने इनकी स्किल का उपयोग करते हुए सिलाई का प्रशिक्षण दिलाया।- हिंदू सिंह सोढ़ा, संस्थापक, सीमांत लोक संगठन

कोरोनावायरस के दौरान जब लॉकडाउन की वजह से जब सभी के कामकाज प्रभावित हो रहे थे तब पाकिस्तानी शरणार्थियों की बस्ती में इस सिलार्ई मशीन की वजह से लोगों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट पैदा नहीं हुआ। इस बस्ती के लोगों ने सिलाई के अपने हुनर का इस्तेमाल मास्क बनाने में किया। इस बस्ती में कपड़े के मास्क की सिलाई अब एक उद्योग की शक्ल ले चुका है।

राजस्थान में जोधपुर जिले के आगणवां गांव में सिलाई करती हिन्दू रिफ्यूजी महिला। फोटो- माधव शर्मा

पाकिस्तान में सिंध के मीरपुरखास से आए थे परिवार, सिलाई ने दिया आर्थिक सहारा

बस्ती में छह महिलाओं के इस समूह में बाएं से दायीं ओर गंगा (30), भूरी (40), गीता (30), अनीता (18), तख्खू (60) और भूरी (19) बैठी हुई हैं। ये सभी अपने आधे-अधूरे परिवारों के साथ एक से पांच साल पहले सिंध के मीरपुरखास से धार्मिक वीज़ा पर हिंदुस्तान आई थीं। इसके बाद यहां से कभी वापस नहीं गए। पाकिस्तान में भेदभाव से परेशान होकर वतन तो छोड़ दिया, लेकिन भारत आकर जिंदगी कैसे गुज़रेगी ये पता भी नहीं था, लेकिन यहां पाकिस्तानी शरणार्थियों के लिए काम करने वाली संस्था, यूनिवर्सल जस्ट एक्शन सोसायटी (उजास) ने इनकी मदद की। ये संस्था सभी पाकिस्तानी शरणार्थी महिलाओं और रूचि लेने वाले युवाओं को सिलाई का प्रशिक्षण दिलाती है। ये छह महिलाएं भी प्रशिक्षण लेने वालों में से हैं।

गीता बताती हैं, "मैं पाकिस्तान से 2 साल पहले ही यहां आई हूं। थोड़ी सिलाई मुझे पहले से आती थी, लेकिन यहां की ट्रेनिंग से मैं काफी कुछ सीख गई हूं। अब यहां शर्ट और मास्क सिलने का काम मिला है। एक शर्ट सिलने का 12 रुपए और मास्क का 4-5 रुपए मिलता है। एक दिन में 30-35 शर्ट और करीब 100 मास्क सिल लेती हूं। फिलहाल मैं शर्ट सिल रही हूं क्योंकि लॉकडाउन के दौरान मास्क काफी संख्या में सिले जा चुके हैं। इसके अलावा हम अपने सिंध में एम्ब्रॉइडरी, एप्लिक आर्ट का काम भी करते हैं।"

गीता आगे बताती हैं कि कंपनी की तरफ से उन्हें शर्ट का कटा हुआ कपड़ा दिया जाता है। इस पर उन्हें सिर्फ सिलाई करनी होती है। "मेरे घर में बिजली कनेक्शन है और सिलाई मशीन उजास ने उपलब्ध कराई है। सिलाई से घर का रोज़ाना का खर्च आराम से निकलता है। पति बेलदारी करते हैं और 300-350 रुपए रोज़ाना कमाते हैं। बच्चे भी स्कूल जाते थे, लेकिन कोरोनावायरस के कारण स्कूल बंद हैं। हालांकि उजास संस्था ने ऑनलाइन स्कूलिंग के लिए कम्प्यूटर दिया है। जिस पर बस्ती के सभी बच्चे एक साथ क्लास अटेंड करते हैं," गीता ने कहा।

कोरोना वायरस के चलते हुए लॉकडाउन से इन परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया था।

आगणवां गांव की इस बस्ती की ज़िम्मेदारी संभाल रहे हेमसिंह पांच साल पहले सिंध के मीरपुरखास से यहां आए थे। वे बताते हैं, "जोधपुर में पाकिस्तानी हिंदुओं की चार बस्तियां हैं। सभी बस्तियों में महिलाओं को सिलाई की ट्रेनिंग दिलाई गई है। इसके अलावा जोधपुर नगर निगम के दिए रैनबसेरे में भी शरणार्थी सिलाई का काम करते हैं।"

जोधपुर में पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों के लिए काम करने वाली संस्था सीमांत लोक संगठन के कार्यकर्ता अशोक सुथार इस बारे में गांव कनेक्शन से बात करते हुए बताते हैं, "सीमांत लोक संगठन जहां पाकिस्तानी हिंदुओं की नागरिकता और अन्य समस्याओं को देखता है। उसी तरह उजास, सीमांत लोक संगठन की बनाई एक गैर लाभकारी संस्था है जो पाकिस्तान से आए इन शरणार्थियों को किसी ना किसी तरह के रोज़गार से जोड़ने की कोशिश करती है।"


"समस्या यह थी कि जो लोग भारत आ गए वे यहां काम क्या करें? पुरुष मज़दूरी भी कर लेता है, लेकिन बाहर से आई हुई महिलाओं के लिए यह एकदम से संभव नहीं था। इसीलिए हमने सिलाई का प्रशिक्षण इन्हें दिया। आगणवां और पाल रोड बस्ती में 200 परिवारों को अब तक सिलाई मशीन दी जा चुकी हैं। एक गारमेंट कंपनी से संस्था ने संपर्क किया। ये कंपनी कपड़े काट कर इन्हें देकर जाती है और सिलने के बाद खुद ही लेकर जाती है। काम के बाद तुरंत महिलाओं के हाथों में नकद पेमेंट होता है," अशोक सुथार ने आगे बताया।

सुथार बताते हैं कि उजास ने जोधपुर में राजस्थान सरकार के इंड्रस्टीज विभाग के साथ मिलकर 20 स्वयं सहायता समूह बनाए हैं। साथ ही 10 स्वयं सहायता समूह ईश्वर सेवा फ़ाउंडेशन की मदद से बनाए हैं। ये सभी शरणार्थियों की पारंपरिक कलाओं को निखारने और ट्रेनिंग के बाद इनके बनाए प्रोडक्ट को बाजार में बिकवाने में भी मदद करते हैं। इनकी स्किल को निखारने के लिए 50 महिलाओं को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी से भी ट्रेनिंग दिलवाई गई है।

पाकिस्तान से आए इन हिंदू परिवार की महिलाओं के स्किल को निखारने के लिए 50 महिलाओं को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी से भी ट्रेनिंग दिलवाई गई है।

लॉकडाउन से अब तक बनाए 1.5 लाख से ज्यादा मास्क

अशोक सुथार बताते हैं, "ट्रेनिंग पाई हुई महिलाओं में से 250 महिलाओं ने मार्च में लगे लॉकडाउन से अब तक 1.5 लाख से ज्यादा मास्क बनाकर बाजार में बेचे हैं। उजास की टीम ने मास्क बनाने में भारत सरकार की दी गई गाइड लाइंस को ध्यान में रखकर टू और थ्री लेयर मास्क बनवाए। सिलाई ट्रेनिंग के जरिए इनकी पारंपरिक कला को भी यहां जीवित रखने की कोशिश की जा रही है। हैंडीक्राफ्ट, एम्ब्रॉइडरी और एप्लिक आर्ट को भी उजास के जरिए बढ़ावा दे रहे हैं। साथ ही इनके बनाए उत्पादों के लिए बाजार भी उपलब्ध कराया जा रहा है। इनमें हेंडबैग्स, डॉल, कसीदाकारी के अन्य प्रोडक्ट शामिल हैं।"

सीमांत लोक संगठन के संस्थापक हिंदू सिंह सोढ़ा इस पूरी पहल के बारे में गांव कनेक्शन को विस्तार से बताते हैं। "पाकिस्तान से भारत में आने वाले ज्यादातर हिंदू सिंध प्रांत से ही आते हैं। ये लोग बहुत दुख और तकलीफों को अपने सीने में दबा कर आते हैं। यहां इन लोगों के सामने नागरिकता से ज्यादा बड़ा सवाल जिंदगी जीने का है। इसीलिए हमने इनकी स्किल का उपयोग करते हुए सिलाई का प्रशिक्षण दिलाया। इनमें ज्यादातर महिला शामिल हैं," सोढ़ा ने बताया।

सिंध प्रांत से आए हिंदू रिफ्यूजी परिवारों के बच्चों के लिए यहां पढ़ाई का इंतजाम किया गया है।

सोढ़ा आगे बताते हैं, "इन ट्रेनिंग की बदौलत लॉकडाउन जैसे मुश्किल वक्त में भी सैंकड़ों परिवार भूख से मरने से बच गए। सरकार ने तो लॉकडाउन में बहुत बाद में इनके लिए मदद पहुँचाई, लेकिन जो परिवार सिलाई कर रहे थे, उन्हें राशन की दिक्कत नहीं हुई। जोधपुर के अलावा बाड़मेर और जैसलमेर में भी बड़ी संख्या में पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थी रहते हैं। सोढ़ा के अनुसार राजस्थान में पाकिस्तान से आए हुए करीब 6 हजार परिवार बसर करते हैं, जिनकी जनसंख्या 30-35 हजार के बीच है। इनमें से ढाई हजार परिवार अकेले जोधपुर में रहते हैं।'

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