कहीं आपकी केले की फसल को भी तो बर्बाद नहीं कर रहा है पनामा विल्ट

आईसीएआर ने पनामा विल्ट को नियंत्रित करने के लिए आईसीएआर-फ्यूजीकांट दवा भी बनाई है, जिससे कुछ हद तक इस बीमारी को नियंत्रित करने में मदद मिली है।

Divendra SinghDivendra Singh   3 Aug 2020 11:46 AM GMT

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यहाँ के किसानों ने परंपरागत खेती छोड़ कर केला की खेती शुरू की थी कि अच्छा मुनाफा हो जाएगा, लेकिन केले की फसल में लगने पनामा विल्ट बीमारी ने किसानों को परेशान कर रखा है।

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी, अयोध्या, सीतापुर, महाराजगंज जैसे कई जिलों में केले की खेती होती है, लेकिन पिछले तीन साल से अयोध्या के कुछ भाग और महाराजगंज किसानों को पनामा विल्ट से काफी नुकसान उठाना पड़ा है। अयोध्या के सोहावल ब्लॉक के किसान अरुण की फसल में भी पनामा विल्ट बीमारी लग गई। वो बताते हैं, "हमारे यहां तो ज्यादातर किसान अब केले की खेती करने लगे हैं, इसमें फायदा रहता है, लेकिन पिछले कुछ साल से फसल सूखने लगी, पास की कीटनाशक की दुकान से दवा लेकर छिड़काव भी किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। जब कृषि वैज्ञानिक आए तो उन्होंने बताया कि ये पनामा विल्ट नाम की बीमारी है।"

पनामा विल्ट ने पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका, अफ्रीका, ताईवान जैसे कई देशों में केले की करोड़ों की फसल बर्बाद कर दी है।राष्ट्रीय केला अनुसंधान केंद्र द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पता चला है कि अभी तक पनामा विल्ट भारत में बिहार के कटिहार और पूर्णिया, उत्तर प्रदेश के फैजाबाद, बाराबंकी, महाराजगंज, गुजरात के सूरत और मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिलों में पनामा विल्ट से फसल प्रभावित हुई है।

पिछले कुछ वर्षों में बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में केले की फसल का क्षेत्रफल तेजी से बढ़ा है, नकदी फसल होने की वजह से किसानों को खूब भा रही है। लेकिन नई-नई बीमारियों से किसान प्रभावित भी हुए हैं। पनामा विल्ट रोग लगने पर कुछ दिनों तक तो किसान समझ ही नहीं पाए कि उनकी फसल में कौन सा रोग लगा है, वो आसपास की कीटनाशक की दुकानों से कई तरह की दवाईयां लेकर छिड़काव करते रहे, लेकिन कोई फायदा नहीं दिखा।

पनामा विल्ट, फंगस से होने वाली बीमारी होती है, जिसका नाम फ्यूजेरियम विल्ट टीरआर2 है। केंद्रीय मृदा लवणता संस्थान और केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिक इस पनामा विल्ट से किसानों को निजात दिलाने कर प्रयास कर रहे हैं। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक डॉ. शैलेंद्र राजन कहते हैं, "शुरू में तो किसान समझ ही नहीं पाए कि उनकी फसल में कौन सा रोग या कीट लगा है, लेकिन बाद में वैज्ञानिकों ने पता किया तो पता चला कि ये पनामा विल्ट नाम की बीमारी है, जो फंगस की वजह से फैलती है।"

पनामा विल्ट बीमारी से केले के पौधों की वृद्धि रुक जाती है, पत्तियां भूरे रंग की होकर गिर जाती हैं, और तना सड़ने लगता है। डॉ. शैलेंद्र राजन आगे कहते हैं, "ये बीमारी मिट्टी के जरिए फैलती है, बीमारी एक खेत से दूसरे खेत तक सिंचाई, फावड़े-कुदाल एक दूसरे से फैलती है। इसलिए इसे रोकने में सबकी जिम्मेदारी बनती है, सोहावल में केला किसानों का 'उत्तर प्रदेश केला उत्पादक संघ' नाम से एक संगठन बनाकर उन्हें जागरूक भी कर हैं, ताकि लोगों को इस बीमारी के बारे में पता चले और एक खेत से दूसरे खेत में न फैल पाए।"

आईसीएआर ने इस बीमारी को रोकने के लिए आईसीएआर-फ्यूजीकांट दवा भी बनाई है, जिससे कुछ हद तक इस बीमारी को नियंत्रित करने में मदद मिली है। वैज्ञानिकों और किसानों के सहयोग से इस भयानक बीमारी को सफलतापूर्वक नियंत्रण करने में सफलता मिली जोकि विश्व के लिए एक अनूठा उदाहरण है।

आईसीएआर- फ्यूजीकांट उत्तर प्रदेश के सोहावल के लिए ही नहीं बल्कि बिहार में भी कारगर सिद्ध हुई। सोहावल की तर्ज पर बिहार में भी केला उत्पादकों के सामुहिक प्रयास से विल्ट का नियंत्रण किया जा रहा है। वर्तमान में अधिक मात्रा में आईसीएआर- फ्यूजीकांट को बनाने की सुविधा उपलब्ध नहीं है और आगामी एक या दो माह में सुविधा उपलब्ध होने पर इसे किसानों को अधिकाधिक मात्रा में उपलब्ध कराया जाएगा। सोहावल की देखा देखी संत कबीर नगर, मेदावल और सिसवा बाजार के किसानों ने भी भारतीय अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों के सहयोग के लिये निवेदन किया है। माटी फाउंडेशन नामक सामुदायिक संगठन के साथ सहयोग करके इस क्षेत्र में इस बीमारी पर नियंत्रण प्राप्त करने का प्रयास प्रारंभ कर दिया गया है। इस दिशा में किये गये प्रयासों में काफी सफलता मिली है जो केवल वैज्ञानिकों और किसानों के आपसी तालमेल के कारण संभव हो पाया है।

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